Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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राजप्रश्नीयसूत्रे टीका-"तए णं केसीकुमारसमणे" इत्यादि-ततः खलु केशीकुमारश्रमणः प्रदेशिराजम् एवमवादीत्-हे प्रदेशिन् ! त्वं खलु पश्चादनुतापिकः-पश्चात्तापयुक्तो मा भवेः, यथा-येन प्रकारेण सः-वक्ष्यमाणः अयोहारकः-लोहवणिक पश्चादनुतापिकोऽभूत् ।, प्रदेशी तत्परिचयं पृच्छति-कः खलु हे भदन्त ! सः अयोहारकः ? इति प्रश्नः । केशीकुमारश्रमण आह-ते यथानामकाः अनिर्दिष्टनामानः केचित् पुरुषाः अर्थार्थिकाः-धनार्थिनः, अर्थगवेषिका -धनान्वेषिणः, अर्थलुब्धकाः-धनलोलुपाः अर्थकाङ्किताः-धनकालायुक्ताः, अर्थपिपासिताः-धनपिपासायुक्ताः, अर्थगवेषणायै-धनगवेषणार्थ विपुलं पणितभाण्डं-क्रयाणकवस्तुजातम् आदाय तथा-सुबहु-पर्याप्तं भक्तपानपथ्यदनम् अशनपानरूपं पाथेयं गृहीत्वा एकां जैसा यह अयोहारक पुरुष पश्चात्तापयुक्त हुआ है-इसी प्रकारसे तुम्हें न होना पडे-अतःतुम मेरे कहे हुए पर श्रद्धा करो और माना किजीव और शरीर मिन्न है इत्यादि।
टीकार्थ-इसी मूलार्थ के जैसा है-परन्तु जहां पर विशेषता है-वह इस प्रकार से है "हद्वतुट्ठा जाव :हियया" में जो यावत पद आया है उससे"चित्तानन्दिताः, परमसौमनस्थिताः, हर्षवशविसर्पद्" इन पदों का संग्रह हुआ है. इन पदों की व्याख्या पूर्णोक्त जैसी ही है. "इटे, कंते जाव" में जी यह यावत-पद आया है-उससे यहां पर "प्रियः, मनोज्ञः' मन आमः" इन पदांका ग्रहण हुआ है. इष्ट शब्द का अर्थ-मनोरथ को पूरा करनेवाला है. कान्त शब्द का अर्थ-सहायकारी होने से अभिलषणीय है, पिय शब्द का अर्थ-उपकारक होने से प्रेम का उत्पादक है, तथा-मनोज्ञ शब्द का अर्थ-हितकारी होने से मनोहर ऐसा है और मन आम शब्द का अर्थ आतिहर होने से मनोगम्य ऐसा હારક પુરૂષ પશ્ચાત્તાપ-યુકત થયે છે તેમ તમારી પણ સ્થિતિ થાય નહિ, એથી તમે મારી વાત પર શ્રદ્ધા રાખે અને મારી વાત માની લે કે જીવ અને શરીર मिन्न भिन्न छे. त्याहि.
ટીકાળું—આ મૂલાર્થ છે. પણ જયાં વિશેષતા છે તે આ પ્રમાણે છે. "हद्वतुट्ठा जाव हियया"
५६ छे तेथी 'चित्तानन्दिताः, परमसौमनस्थिताः हर्षवशविसर्पद' मा पानी सड थये। छ. २. पहानी व्याच्या पाया भु०४५ ४ छे. 'इटे, कते जाव" यापत् ५४ छे तेथी 2ी 'प्रियः, मनोज्ञः, मनः आम" २५ पहानु अहए थयु.ट शहना अर्थ मनोरथ ने પૂરનાર છે. કાંત શબ્દનો અર્થ સહાયકારી હોવાથી અભિલષણીય છે, પ્રિય શબ્દને અર્થ-હિતકારી હોવાથી પ્રેમને ઉત્પાદક છે, તથા મને શબ્દને અર્થ-હિતકારી હોવાથી મનહર એ થાય છે. મને આમ શબ્દનો અર્થ આહિર લેવાથી મને
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨