Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 405
________________ सुबोधिनी टीका सु. १६१ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् ३६५ ततः खलु स प्रदेशी राजा श्रमणोपासको जातः अभिगत-जीवाजीवः यावद् विहरति, यत्प्रभृति च खल्ल प्रदेशी राजा श्रमणोपासको जातः, तत्प्रभृति च खलु राज्य च राष्टं च बलच वाहन च कोशच कोष्ठागार' च अन्तःपुरं च जनपदं च अनाद्रियमाणश्चापि विहरति । ॥सू० १६१॥ ____टीका-"तए णं से पएसी" इत्यादि-ततः खलु स प्रदेशी राजा कल्प यावत् एकोनषष्टयधिकैकशततम १५९ सूत्रोक्तपाठानुसारेण सूर्ये तेजसा-दीप्त्या ज्वलति-प्रकाशमाने सति श्वेतांविकाप्रमुखानि सप्त ग्रामसहस्राणि-ग्रामाणां सप्त कूटागार शाला बनकर तैयार हो गई तब उसमें उसने अनेक पुरुषों द्वारा यावत् चारों प्रकार का अशन-आहार निष्पन्न कराकर उससे अनेक श्रमणादि जनोंको प्रतिलाभित करता था याने देता था "तएणसे पएसी राया समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ-" इसके बाद वह प्रदेशी राजा श्रमणोपासक हो गया. जीव तच्च और अजीव तत्व के स्वरूप का भलीमांति से ज्ञाता बन गया. इत्यादि. जप्पभिइ च ण पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभियं च णं रज्ज च रटु च बलं च वाहण च-कासं च काटागारं च-पुरं च अंतेउरं च जणवयं च अणाढायमाणे यावि विहरइ--" अब वह प्रदेशी राजा जिस दिन से श्रमणापासक बना. उसी दिन से अपने राज्य के प्रति. राष्ट्र के प्रति बल के प्रति. वाहन के प्रति, कोष के प्रति, काष्ठागार के प्रति अंतःपुर के प्रति और जनपद के प्रति उपेक्षाभाव धारण करलिया. इस सूत्र का टीकार्थ-स्पष्ट है, यहां यावत्पद से"कल्लं जाव" के इस यावत् पदसे १५९ वें सूत्र है जो पाठ इसके विषय में જ્યારે કૂટાગારશાળા તૈયાર થઈ ગઈ ત્યારે તેમાં તેણે ઘણા પુરૂષો વડે યાવત્ ચારે જાતને અશન આહાર બનાવ ાવ્યા અને તેનાથી ઘણું શ્રમણ વગેરેને પ્રતિલાભિત કર્યા. "तए ण' से पएसी राया समणावास ए जाव अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ" ત્યાર પછી તે પ્રદેશ રાજા શ્રમણોપાસક થઈ ગયે, જીવતત્વ અને અજીવત્વના २१३५ने। सारी ते ज्ञाता थ६ गया वगेरे. "जप्पभिई च ण पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभियं च ण रज च रहें च, बलं च वाहणं च, कासं च, काहागारं च, पुरं अंतेउरं च, जणवयं च अणाढायमाणे यावि विहरई" હવે તે પ્રદેશી રાજાએ જે દિવસથી શ્રમણોપાસક થયે, તે જ દિવસથી પોતાના રાજ્ય त२३, राष्ट्र त२३, सेना त२५, पाडन त२३, म १२ (आप) त२५ ॥२ प्रति, અંતઃપુર પ્રતિ અને જનપદ પ્રતિ ઉપેક્ષા ભાવ ધારણ કરી લીધો. साथ-सा सूत्रनी स्पष्ट छे. मही यावत पहथी "कल्लं जाव" ना मा યાવત પદથી ૧૫૯ મા સૂત્રમાં જે પાઠ એના વિષે ગૃહીત થયેલ છે તે જાણવો. શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્રઃ ૦૨

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