Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 413
________________ सुबोधिनी टीका सू. १६३ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् ३७३ सरीरंसि वेयणा पाउठभूया उज्जला विउला पगाढा कक्कसा कडया फरुसा निहुँरा चंडा तिव्वा दुक्खा दुग्गा दुरहियासा पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक ते यावि विहरइ ॥ सू० १६३ ॥ छाया-ततः खलु सा सूर्यकान्ता देवी अन्यदा कदाचित् प्रदेशिनो राज्ञः अन्तरं जानाति अशन-पान-खादिम-स्वादिम- सर्ववस्त्रगन्धमाल्यालङ्कारेषु विष प्रयोगं प्रयुनक्ति, प्रदेशिने राज्ञे स्नाताय यावत् सुखासनवरगताय तान् विषसंयुक्तान अशन-पान-खादिम-स्वादिम-सर्ववस्त्रगंन्धमाल्यालङ्कारान् निसृजति । ततः खलु तस्य "तएणं सूरियकतादेवी" इत्यादि मूलार्थ---'तएणं' इसके बाद 'सरियकंतादेवी' सूर्यकान्तादेवीने 'अन्नयाकयाइ" किसी एकदिन 'पएसिस्स रन्नो' प्रदेशी राजाके 'अंतर जाणई' षष्ठपारणा के अवसररूप अन्तर को जान लिया और असण-पाणखाइम- साइम सव्ववस्थगंधमल्लालंकारेसु विसप्पओगं पउंजइ-" अशन-पान खाद्यरूप आहारों में, तथा-वस्त्र-गन्ध-माला अलङ्कारों में विष का संप्रयोग करदिया. पएसिस्स रणो ह ए जाव सुह सणवरगयस्स ते विससंजु-ते असण पाण खाइमसाइमसव्ववस्थगंधमल्लालंकारे निसिरेइ--'' प्रदेशी राजा जब स्नान करके यावत् सुनदरूप श्रेष्ठ आसनपर आसीन था. तब उसके लिये उसने-उन विषसंप्रयुक्त अशन पान-खाद्य-स्वाद्यरूप आहार को परोसा. तथा-पहिरने के लिये वस्त्र-गन्ध-माला. एवं-अलङ्कारों को दिया. “तए णं तस्स पएसिस्स रणो ते विससंजुत्तं असण "तए णं सरियकंता देवी" इत्यादि। भूदार्थ -"तएणं' त्या२ पछी "सूरियकता देवी" सूर्य तो वीमे"अन्नया कयाइ"। ये हिवसे “पएसिस्स रनो” प्रदेशी रागने "अंतरं जाणइ" ५०४ पाणाना भवस२ ३५ मत२ (as) onet सीधी भने “असणपाणखाइमसाइमसव्वब थगंधमल्लालंकारेसु विसप्पओग पउंजइ' मशन, पान, माघ અને રવાદરૂપ આહારમાં તેમજ વસ્ત્ર ગબ્ધ માલા અલંકારમાં વિષ સંપ્રયાગ કરી દીધું. "पएसिरस रप्णो व्हायरस जाव सुहासणवरगयस्स ते विससंजुत्ते असणपाणखाइमसाइमसव्ववत्थगंधमल्लाल कारे निसिरेइ" प्रदेशी २ion न्यारे स्नान કરીને યાવત સુખદરૂપ શ્રેષ્ઠ આસન પર આસીન હતા ત્યારે તેમના માટે તેણે તે વિષસંપ્રયુકત અશન, પાન, ખાદ્ય, સ્વાદ્યરૂપ આહાર પીરસ્યું, તેમજ પહેરવા માટે १२--मामा भने म ३। माया. "तए णं तस्स पएसिस्स रणो ते विस શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨

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