Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 466
________________ ४२६ राजप्रश्नीयसूत्रे छाया-ततः खलु स दृढप्रतिज्ञो दारक स्तेषु विपुलेषु अन्नभोगेषु यावच्छयनभोगेपु नो सङक्ष्यति, नो गर्षिष्यति, ना मूछिष्यति, नो अध्युपपत्स्यते । तद्यथानाम-पद्मोत्पलभिति वा पद्ममिति वा यावत् शतसहस्रपत्रमिति वा पङ्के जातं जले वृद्धं नापलिप्यते पङ्करजसा, नोपलिप्यते जलरजसा, एवमेव दृढ प्रतिज्ञोऽपि दारकः कामैर्जातो भोगैः संवर्द्धितो नोपलेप्स्यते कामरजसा, नो पलेप्स्यते भोगरजसा, नोपले प्स्यते प्रियज्ञातिनिजक वजनसम्बन्धिपरिजनेन । "तए णं दढपइण्णे दारए-" इत्यादि मूलार्थ-'तए णं' उसके बाद- 'दढपइण्णे दारए तेहिं बिउलेहिं अन्नभोगेहि जाव सयणभोगेहि-' वह दढप्रतिज्ञ दारक उन विपुल अन्नरूप भोग्य पदार्थों में यावत्-शयनरूप भोग्य पदार्थों में-"णो सज्जिहिइ, णो गिज्झिहिइ, णो मुच्छिहिइ, णो अज्झोववज्जिहिइ-"आसक्ति नहीं करेगा, गृद्धिभावको प्राप्त नहीं होगा, मूर्छाभाव को प्राप्त नहीं होगा, उनमें-एक मनवाला नहीं बनेगा। ‘से जहाणामए पउमुप्पलेइ वा, पउमेइ वा, जाव सयसहस्सपत्तेइ वा पके जाए जले सबु णोवलिप्पइ पंकरयेणं णोबलिप्पइ जलरएणं-" जैसे-पद्म, अथवाउत्पल, यावत्-शत सहस्रपत्रोंवाला कमल षङ्क में पैदा होता है, जल में बढता है, परन्तु-वह कीचड से जरा भी अंश में लिप्त नहीं होता है, पानीसे लिप्त नहीं होता है, “एवामेव दढपइण्णे वि दारए कामेहिं जाए भोगेहिं संवुड्डू, णो. बलिप्पिहिइ-कामरएणं, णोवलिप्पिहिइ भोगरएणं, गोवलिप्पिहिइ मित्तणाइ णियगसयणसंबंधिपरिजणेणं-" इसी तरह से वह दढप्रतिज्ञ दारक भी काम "तए ण दढपइण्णे दारए” इत्यादि । भूदार्थ-'तए णं' ५५ "दढपइण्णे दारए ते हिं विउलेहिं अन्नभोगेहिं जाव सयणभोगेहिं" प्रतिज्ञ ४२४ ते विधुत अन्न३५ लाय पहार्थोभा यावत शय न३५ लाय पर्यो भने 'यो सज्जिहिइ, णो गिज्झिहिइ, णो मुच्छिहिइ, णो अज्झोववज्जिहिड" मासहित मताशे नहि, गृद्धला प्राप्त ४२0 नड, भूमाप प्राप्त ४२शे ना, तीन थशे नहि. -'से जहाणामए पउमुप्पलेइवा, पउभेइवा जाव सयसहस्सपत्तेइवा पंके जाए जले संवुड्ढे णोवलिप्पइ पंकर येणं णोवलिप्पइ जलरएणं" भ प ५६, यावत् शत समपत्र भ७ ५४ (६१)मा उत्पन्न હોય છે, પાણીમાં વૃદ્ધિ પ્રાપ્ત કરે છે, પણ તે સહેજ પણ કાદવથી Cam थतु नथी “एवामेव दढपइण्णे वि दारए कामेहिं जाए भोगेहिं संवुड्डे, णावलिप्पहिइ कामरएणं, जोवलिप्पिहिइ भोगरएण णावलिप्पिहिइ, मित्त णाइ-णियगसयणसंबंधिपरिजणेणं" मा प्रमाणे ते प्रतिज्ञ २४५५४ मथा શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨

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