Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 418
________________ ३७८ राजप्रश्नीयसूत्रे तद् इदानीमपि खलु तस्यैव भगवतः अन्तिके सर्व प्राणातिषात प्रत्याख्याभि यावत् सर्व परिग्रहम् प्रत्याख्यामि, सर्व क्रोध यावत् मिथ्यादर्शनशल्यं प्रत्याख्यामि अकरणीयं योगं प्रत्याख्यामि, सर्वम् अशन० चतुर्बिधमपि आहार यावज्जीव प्रत्याख्यामि, यद पि च मे शरीरम् इष्टं यावत् स्पृशन्तु इति एतदपि च खलु चरमैः उच्छासनिःश्वासैः व्युत्सृजामि, इति कृत्वा आलोचितप्रतिक्रान्तः समाधिकुमारश्रमण के पास स्थूल प्राणातिपातका यावत् स्थूल परिग्रह का प्रयाख्यान किया है-'तं इयाणि पिणं तासेव भगवओ अतिए सव्वं पाणाइवाय पचक्वामि-” अब भी मैं उन्ही भगवान् के पास उसी सब प्रा प्रतिपात का प्रत्याख्यान करता हूं, "जाव सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि-" यावत् समस्त परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूं। सच्चं कोहं जाव मिच्छादसणसल्लं पञ्च क्वामि-" समस्त क्रोध का प्रत्याख्यान करता हू. यावत् भिथ्यादर्शन शल्य का प्रत्याख्यान करता हूं। "अकरणिज्ज जोगे पञ्चवरवामि-" अकरणीय योग (अशुभयोगका) का प्रयाख्यान करता हूं, "सव्व असणं० चउविहं वि आहार जाव ज्जीवाए पच्चक्वाभि-" अशन-पान आदिरूपचारों प्रकार के आहार का यावज्जीव त्यागकरता हूं “जं पिय मे सरीरं इट्ट जाव फुसंतु त्ति एवं पि य णं चरिमेहिं उसासनीसासेहिं वोसिरामि त्ति कटु-" मैंने पहले जिस इष्टादि विशेषण विशिष्ट शरीर की रक्षा की इस अभिप्राय से कि-इसे शीत उष्ण आदि परिग्रह तथा-सादिकृत उपसर्ग आदिकी बाधा न पहुंचाये -जब मैं उसी शरीर का अन्तिम उच्छास-निश्वासों तक परि या। करता हू, इस प्रकार विचार करके-"आलोપહેલાં પણ મેં કેશીકુમારશ્રમણની પાસે સ્થૂલ પ્રાણાતિપાતનું યથાવત સ્થૂલ પરિગ્રહનું प्रत्याभ्यान यु तु "त इणिं पि णं तस्सेव भगवओ अंतिए सव्वं पाणाइवायं पञ्चक्रवामि' वे ५ ते ४ लावाननी पासे ते समस्त प्राए पाति नुं प्रत्याज्यान ४३ ७. "जाव सव्वं परिग्गहं पच्चक्वामि” यावत समस्त परि. अनु प्रत्याभ्यान ४३ छ. “सव्वं कोहं जाव मिच्छादसणसल्लं पच्चवखामि" સમસ્ત ક્રોધનું પ્રત્યાખ્યાન કરૂં છું. યાવત મિથ્યાદર્શન શલ્યનું પ્રત્યાખ્યાન કરૂં છું. "अकरणिज्जं जोगे पञ्चक्रवामि" ५४२९१५ यारानु प्रत्याभ्यान ३ छ. "सव्वं असणं० चउविह वि आहारं जावज्जीवाए पञ्चकखामि" "शन-पान वगेरे ३५ यार ५२ना मारना यावत पन त्या ४३ छु" पि य मे सरीर इदं जाव फुसंतु ति एवं पिय ण चरिमेहिं उसासनीसासेहिं वोसिरामि ति कट्ट' में પહેલાં જે ઈષ્ટ વગેરે વિશેષણ વિશિષ્ટ શરીરની રક્ષા કરી તે આ પ્રયોજનથી કે આને શીતઉણ વગેરે પરીષહ તથા સર્પાદિકૃત ઉપસર્ગ વગેરે બાધા પહોંચાડે નહિ. હવે હું તે જ શરીરને અંતિમ ઉચ્છવાસ નિ:શ્વાસ સુધી પરિત્યાગ કરું છું. આ શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨

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