Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुबोधिनी टीका सु. १६२ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशिराजवर्णनम्
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तच्छ्रेयः खलु तव पुत्र ! प्रदेशिनं राजानं केनापि शस्त्रप्रयोगेण वा यावत् उपद्रुत्य स्वयमेव राज्यश्रिय कारयतः पालयतो विहर्तुम् । ततः खलु सूर्यकान्तः कुमारः सूयं कान्तया देव्या एवमुक्तः सन् सूर्यकान्ताया देव्या एतमर्थ नो आद्रिते नो परिजानाति तूष्णीकः संतीष्ठते । ततः खलु तस्याः सूर्यकान्तायाः देव्या अयमेतद्रूप आध्यात्मिकः यावत् समुदपद्यत - मा खलु सूर्यकान्तः कुमारः
अर्थात् - इन सब
खलु वि
सम्बन्धी कामभोग की ओर लक्ष्य देना बन्द करदिया है, बातों को अब वे आदर की दृष्टि से नहीं देखते हैं "त सेय पुत्ता ? पर्सि राय केणइ सत्थप्पओगेण वा जाव उद्दवित्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणस्स पालेमाणस्स विहरितए - " अतः - हे पुत्र - ३ अब यही योग्य है कि तुम प्रदेशी राजा को किसी भी शस्त्र के प्रयोग से अथवा अग्निप्रयोग से - यावत् विषय के प्रयोग से मारकर स्वयं राज्यश्री का भोग करो उसका पालन करो 'तणं सूरियकंते कुमारे वरियताए देवीए एवं बुत्ते समाणे सूरियकंताए देवीए एयम णो आढाइ, णो परियाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ - " इस प्रकार सूर्य कान्ता देवी द्वारा कहे गये सूर्यकान्तकुमारने उसकी इस बात को आदर की दृष्टि से नहीं देखा और न तो उसकी उसने अनुमोदना ही की, किन्तु इस बात को सुनकर वह केवल चुपचाप ही रहा - " तरणं तीए सूरियकंताए इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था - " इसके बाद उस सूर्यकान्ता देवी को इस प्रकार का यह आध्यात्मिक यावत् संकल्प - विचार उत्पन्न हुवा - " मा णं
भेटले } तेथे हवे मा अघी वस्तुमाने याहरनी दृष्टियो लेता नथी. "तं सेयं खलु वि पुत्ता ? एसिं राय केणइ सत्थप्पओगेण वा जाव उद्दवित्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणरस पालेमाणरस विहरित्तए" मेथी हे पुत्र ! हवे मे ઉચિત જણાય છે કે તમે પ્રદેશી રાજાને કોઇ પણ શસ્ત્રના પ્રયાગથી કે યાવત્ વિષ પ્રયાગથી મારી નાખેા અને પોતે રાજયલક્ષ્મીના ઉપભાગ કરો, તેનુ રક્ષણ કરા. "तएण सूरियकंते कुमारे स्वरियकंताए देवीए एवंबुत्ते समाणे स्वरिय - कंताए देवीए एयमहं णो आढाइ, णो परियाणा, तुसिणीए संचिट्ठ" આ પ્રમાણે સૂર્યકાન્તા દેવી વડે કહેવાયેલ સૂર્યકાંત કુમારે તેની વાત પ્રત્યે આદર ખતાબ્યા નહિ અને તેની વાતની તેણે અનુમેદના પણ કરી નહિ પણ તે તેની सामे भूगो थाने उलो ४ रह्यो “तए ण तीए सूरियकंताए इमेयावे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था " त्यार પછી તે સૂર્યકાંતા દેવીને આ જાતના आध्यात्मिङ यावत् समुदय-विचार उत्पन्न थयो “माणं सूरियकंते कुमारे
શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૨