Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुबोधिनी टीका सू. १५१ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशोराजवर्णनम् ३०५ खलु त्वं प्रदेशिराज ! एत तृणवनस्पतिकायम् एजमान यावत् ततौं भाव परिणममानम् ! हन्त ! पश्यामि। जानासि खलु त्वं प्रदेशिन् ! एत' तृणवनस्पतिकाय किं देवश्चालयति असुरो वा चालयति नागो वा चालयति किन्नरो वा चालयति किंपुरुषो वा चायति महोरगो वा चालयति गन्धर्वो वा चालयति ! हन्त ! ! जानामि-नो देवश्चालयति जाव नो गन्धर्वश्वालयति
केसीकुमारसमणे पएसिराय एवं क्यासी-पाससि ण तुमपएसी राया! एयं तणवणस्सई एयंत जाव तत भाव परिणमत) तब केशीकुमारभ मणने प्रदेशी राजा से इस प्रकार कहा-हे प्रदेशिन् ! तुम इस तृणवनस्पतिकाय को सामान्य विशेष रूप से कपित होते हुए यावत् एजनादिरूप भिन्न२ प्रकार के व्यापार में परिणत होते हुए देख रहे हो न? तब प्रदेशी राजाने कहा (हता, पासामि) हां, भदन्त ! देख रहाई (जाणासि णं तुमं पएसी! एयंतणव
णस्सइकायं कि देवो चाले इ, असुरोवाचालेइ, णागो वा चालेइ, किन्नरो वा चालेइ, किंपुरिसो वा चालेइ, महोरगो वा चालेइ, गधन्वो वा चालेइ) तब केशीकुमारश्नमणने उससे कहा हे प्रदेशिन् ! तुम जानते हो कि इस तृणवनस्पतिकाय को कौन चलाता है? क्या देव चलाता है, या नाग चलाता है या किन्नर चलाता है, या किंपुरुष चलाता है, या महोरग चलाता है या गंधर्व चलाता है ? प्रदेशीने कहा-(हता, जाणामि) हां, भदन्त ! जानता हूं (णो देवो चालेइ जाव णो गंधयो चालेइ चाउकाए
केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं क्यासी-पाससि ण तुमं पएसि राया । एयं तणवणस्सइ एयंतं जाव ततभाव परिणमंति) त्यारे 3शी मा२ श्रम પ્રદેશી રાજાને આ પ્રમાણે કહ્યું કે હે પ્રદેશિન ! તમે આ તૃણવનસ્પતિકાયને સામાન્ય ન્ય વિશેષરૂપથી કંપિત થતાં યાવત્ એજનાદિરૂપ ભિન્ન પ્રકારના વ્યાપારમાં પરિशुतमा छ। ? त्यारे प्रदेशी २०१२ये यु (हता पासामि) i महत ! Rो छु (जाणासि ण तुम पएसी! एयं तणवणस्सइकायं कि देवो चालेइ, असुरो वा चालेइ, णागो वा चालेइ, किन्नरो वा चालेइ, किपुरिसो वा चालेइ, महोरगो वा चालेइ, गंधवो वा चालेइ) त्यारे शीमा२ श्रम तन હે પ્રદેશિન્ ! તમે જાણે છે કે આ તૃણવનસ્પતિકાયને કોણ ચલાવે છે? શું દેવ ચલાવે છે? કે અસુર ચલાવે છે ? કે નાગ ચલાવે છે? કે કિનર ચલાવે છે? B५३५ यताव छ, गधन्यता छ ? प्रशी २० -(हता, जाणामि) i महंत ! छु. (णो देवो चालेइ, जाव णो गंधवो चालेइ, वाउकाए
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨.