Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सबोधिनी टोका. १४६ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् २७३ शन साधयेः इति कृत्वा काष्ठानामटवीमनुप्रविष्टाः. ततः खलु स पुरुषः ततो मुहूर्तान्तरात् तेषां पुरुषाणामशन साधयामीति कृत्वा यत्रैव ज्योति र्भाजनं तत्रैव उपागच्छति, ज्योतिर्भाजने ज्योतिर्विध्यातमेव पश्यति, ततः खलु स पुरुषः यत्र व तत् काष्ठ तत्र व उपागच्छति, उपागम्य तत् यहीं पर रह कर अग्नि के इस पात्र से अग्नि को लेकर हम लोगों के लिये भोजन तैयार करलो (अह तं जोइ भायणे जोई विज्झवेत्त) यदि उस पात्र में अग्नि बुझ जावे (एत्तो गं तुम कट्ठाओ जोई गहाय अम्हं असणं साहेज़्जासि तिक कठ्ठाण अडविं अणुपविठ्ठा) तो देखो जो यह लकडी पडी है सो इसमें से अग्नि को उत्पन्न कर लेना और हमलोगों के लिये भोजन बना लेना इस प्रकार कह कर वे उस इन्धन वाली अटवी में आगे प्रविष्ट हो गये (तएणं से पुरिसे तओ मुहुत्त तराओ तेसिं पुरिसाण असणं माहे मित्ति क? जेणेव जोइभायणे तेणेव उवागच्छइ) उनके चले जाने पर उस पुरुषने ऐसा विचार किया-कि चलो जल्दी से उन लोगों के लिये भोजन तैयार करलू-ऐसा विचार करके वह जहां पर वह अग्नि का पात्र रखा था वहां पर गया (जोइभायणे जोई विज्झायमेव पासइ) वहां जाकर उसने उस ज्योतिपात्र में अग्नि को बुझा हुआ ही देखा. (नए णं से पुरिसे जेणेव से कह तेणेव
गहाय अम्ह असणं साहेज्जासि) त्यां सुधा तमे मही हीन भनिना ॥ पात्रमाथी भनिने S अमा। भाटे लान तैयार ४२. (अह तं जोडभायणे जोई विज्झवेत्ता) ने l पात्रमा मन मेणाoय. (एत्तो ग तुम कहाश्रो जोई गहाय अम्ह असण साहेज्जासि त्ति कद्दु कहाण अडवि अणुपविठ्ठा) तो गुभो, मसाई ५७यु छ, तमाथी मन उत्पन्न १ सेन અને અમારા માટે ભોજન તૈયાર કરે છે. આ પ્રમાણે બધી વિગત સમજાવીને તેઓ ते पु वाणी 42वीभा मा प्रविष्ट 2 गया. (तए णं से पुरिसे तओं मुहुत्त तराओ तेसि पुरिसाणं साहेमित्ति कटु जेणेव जोइभायणे तेणेव उवागच्छद) तो मया न्यारे त्यांथी l २६ त्यारे तेरे मा प्रमाणे વિચાર કર્યો કે–સારૂં જલદી તેઓ બધા માટે જમવાનું તૈયાર કરી લઉં. આમ विया२ ४शन न्यो अनि पात्र हतु त्यां गया. (जोडभायणे जोई विज्झायमेव पोसइ) त्यां न तेणे ते निपामा मनिने सो गये यो. त एण से पुरिसे जेणेव से कट्टे तेणेव उवागच्छइ) त्या२ पछी ते ३५
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨