Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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राजप्रश्नीयसूत्रे कस्मात् ? भदन्त ! तस्य पुरुषस्य जीर्णानि उपकरणानि भवन्ति, पदेशिन् ! स एव पुरुषः जीर्णा यावत् क्षुधापरिक्लान्तः जीर्णोपकरणः नो प्रभुः एक महान्तमयोभार वा यावत् परिवोहुम्, तत् श्रद्धेहि खलु त्वं प्रदेशिन् ! यथा-अन्यो जीवः अन्यत् शरीरम् ६। ॥सू० १४२॥ नहीं है-अर्थात् वही युवादि विशेषणों वाला पुरुष जीर्णादि विशेषणोंवाली विहङ्गिकादि (कावड) द्वारा विशाल लोहभार को वहन नहीं कर सकता है। के शीकुमारश्नमणने पूछा-(कम्हा) वह ऐसा किस कारण से नहीं कर सकता है। तब प्रदेशीने कहा-(भंते ! तस्स पुरिसस्स जुण्णाई उचगरणाई भवति) हे भदन्त ! लोह भार आदि को वहन करने के जो उसके साधन हैं-वे जीर्ण हैं ! (पएसी से चेव पुरिसे जुन्ने जाव छुहापरिकिलंते जुन्नोवगरणे पभू एग मह अयभार वा जाव परिवहित्तए-त सद्दहाहि णं तुम पएसी अन्नो जीवो अन्न सरीर) पुनः केशी ने प्रदेशी से पूछा-हे प्रदेशिन् ! यदि वही पुरुष जीर्ण, वृद्ध यावत् १४१वे सूत्र में कथितविशेपणोंवाला एवं क्षुधा परिक्लान्त हो जाता है वह जीर्णोपकरण वाला होने से-शरीर बल बुद्धि आदि उपकरणों की जीर्णतावाला होने से-एक विशाल अयोभार को यावत् शीशक भार को वहन करने में समर्थ नहीं होता है युवावस्था और वृद्धावस्था में जीव की समानता होने पर भी उपकरण के अभाव से वृद्ध भार को वहन करने के लिये समर्थ नहीं होता है. इस कारण हे प्रदेशिन! આ અર્થ સમર્થ નથી. એટલે કે તેજ યુવા વગેરે વિશેષણથી યુકત પુરૂષ જીર્ણ વગેરે વિશેષણોથી યુકત વિહંગિક (કાવડ) વગેરે વટ વિશાળ ખંડના ભારને વહન न शश तम छ. शाहुमार श्रभारी . (कम्हा) ते माम ॥ ४॥२४थी ना श्री श ? त्यारे प्रदेशीये यु. (भंते ! तरस परिसस्स जुणाई उवगरणाई भवंति) 3 महत ! सोमना मा२ वगेरेने १४न ४२वाना साधन। छे ते ए छे. (पएसी से चेव पुरिसे जुन्ने जाय छुहापरिकिलते जुन्नोवगरणे नो पभू एगं महं अयभारं वा जाव परिवहित्तए-तं सहाहि णं तुमं पएसी अन्नो जीवो अन्न सरीरं) ५२ अशी प्रशीन. २ प्रभारी प्रश्न या प्रशिन् ! જે તે જ પુરૂષ જીર્ણ વૃદ્ધ યાવત્ ૧૪૧ માં સૂત્રમાં આવેલ વિશેષણોથી સંપન્ન હોય ક્ષુધા પરિકલાંત થઈ જાય છે તે તે જીર્ણોપકરણવાળે હોવાથી–શરીર બળ બુદ્ધિ વગેરે ઉપકરણો જીર્ણ હોવાથી એક વિશાળ લોખંડના ભારને યથાવત્ શીશકભારને વહન કરવામાં સમર્થ થઈ શકે તેમ નથી. યુવાવસ્થામાં અને વૃદ્ધાવસ્થામાં જીવની સમાનતા હોવા છતાં એ ઉપકરણના અભાવે વૃદ્ધ ભારને વહન કરવામાં સમર્થ થઈ
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર : ૦૨