Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुबोधिनो टीका सू. १४२ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् २५५ तरुणा यावत् शिल्पोपगतः जीर्ण या दुर्बलिकया घुण खादितया विहगिकया जीर्ण काभ्यां दुर्यलकाभ्यां घुणखादिताभ्यां शिथिलत्वचापिनद्धकाभ्यां शिक्य काभ्यां जीर्ण काभ्यां दुलिकाभ्यां घुण खादिताभ्यां पक्षितपिटकाभ्यां प्रभुः एकं महान्तमयोभार वा यावत् परिवोदुम् ? नो अयमर्थः समर्थः से भारयष्टि का से (कावड से), नवीन सिक्यकाओं से नवीन पक्षितपिटकाओं से एक विशाल लोहमार को यावत त्रपुभार को अथवा शीशक भार को वहन करने में समर्थ होता है न ? तब प्रदेशी राजाने कहा(हता, पभू) हां, भदन्त ! ऐसो वह पुरुष उसे वहन करने में समर्थ होता है। (पएसी ! से चेव णं पुरिसे तरुणे जाव सिप्पोवगए दुब्बलियाए घुणक्ख. इयाए विहंगियाए जुण्णएहिं दुब्बलिए हिं, घुणक्खइएहि, सिढिलतया पिणद्धएहि, सिक्कएहिं दुब्बलिएहिं जुष्णेहिं घुणवखएहिं पच्छियपिंडएहिं पभू एग मह अयभारं वा जाव परिवहित्तए) हे प्रदेशिन् ! अब मैं तुम से ऐसा पूछता हूं कि वही तरुणपुरुष जो यावत् निपुण शिल्पोपगत है जीर्ण दुबैल, घुन से खाई हुई भारयष्टि से, तथा जीण, दुबैल और घुन से खाई हई तथा शिथिल त्वचा से पिनद्ध हुई ऐसी शिक्यकाओं से, एवं दुर्बलिक, घुण खादितऐसी पक्षितपिटकाओं से एक विशाल लोहभार को अथवा त्रपुभार को या शीशक भार को वहन करने में समर्थ हो सकता है ? प्रदेशीने कहा-(णो इणेहे समठे) हे भदन्त ! यह अर्थ समर्थ નવીન વિહંગિકાથી ભારયષ્ટિકાથી (કાવડથી) નવીન સિક્યકાથી નવીન પક્ષિતપિટકાએથી એક વિશાળ લોખંડના ભારને યાવત્ ત્રપુભારને અથવા શીશક ભારને વહન ४२वाभां शु समथ 5 श छ ? त्यारे प्रशी शनये ४थु-हंता, पभू) i , महत ! वो ते ५३५ तेने पहन. ४२वामी समर्थ थ श छे. (पएसी ! से चेव णं पुरिसे तरुणे जाव सिप्पोवगए. जुन्नियाए, दुब्बलियाए घुणक्खइयाए विहंगियाए, जुण्ण एहि, दुब्बलिए हि घुणक्खइएहि, सिढिलतया पिणद्धएहि, सिक्कएहिं जुण्णेहिं दुब्यलिएहि घुणक्खइएहि पच्छियपिंडएहिं पभू एगं महं अयभार वा जाव परिवहित्तए) प्रशिन् ! इथे तभने माम प्रश्न કરું છું કે તે જ તરૂણ પુરૂષ જે યાવત્ નિપુણ શિલ્પપગત છે. જીર્ણ દુર્બળ, ઉધઈ ખાધેલી ભારયષ્ટિથી (કાવડથી) તેમજ જીર્ણ, દુર્બળ ઉઘેઈવટ ખાધેલ તેમજ શિથિલ ત્વચાઓથી પિનદ્ધ થયેલ એવી શિયકાઓથી અને દુર્બલિક, ઉધઈ ખાધેલ એવી પક્ષિતપિટકાઓથી એક મોટા લોખંડના ભારને અથવા ત્રપુભારને કે શીશકભારને વહન ४२वामा शु समर्थ 25 3 छ ? प्रदेशीये ४थु (णो इणद्वे सम हे) मत !
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨