Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
२५०
राजप्रश्नीयसूत्रे
पगतः प्रभुः एक महान्तमयोभारक वा त्रपुकभारक वा शीशकभारक वा परिबोदुम् ? हन्त प्रभुः। स एव खलु भदन्त ! पुरुषः जीर्णः जराजरित. देहः शिथिलवलितत्वचाविनष्टगात्रः दण्डपरिगृहीताग्रहस्तः प्रविरलपरिश टितदन्त श्रेणिः आतुरः कृशः पिपासितः दुर्बलः क्षुधापरिक्लान्तः नो प्रभुरेकं पाता है (अस्थि णं भंते ! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसि प्पोवगए पभू एगं महं अयभारगं वा तउयभारगं वा सीसगभारंग वा परिवहित्तए) वह कारण इस प्रकार से है-जैसे कोई एक पुरुष हो, और वह युवा यावद निपुणशिरूपोपगत हो, अर्थात् सम्यग्ज्ञान सम्पन्न हो तो ऐसा वह पुरूष विशाल लोहे के भार को. त्रपुक के भार को शीशा के भार को वहन करने में समर्थ हो सकता है न ? तब केशीकुमारश्रमण ने उससे (हता, पभू) हां, प्रदेशिन् ! ऐसा वह पुरुष उस लोहे आदि के विशाल भार को वहन करने में समर्थ हो सकता है। (से चेव णं भंते ! पुरिसे जुन्ने जराज जरियदेहे सिढिलवलिअतयाविणगत्ते दंडपरिग्ग हियग्गहत्थे) अब प्रदेशी राजाने केशीकुमारश्रमण से फिर ऐसा पूछाहे भदन्त ! वही पुरुष जब वृद्धावस्था को प्राप्त हो जाता है और जरा से जर्जरित शरीर वाला होने के कारण शक्ति से शिथिल हो जाता है, त्वचा जिसकी झुर्रियों से युक्त हो जाती हैं और इसी से जिसको शारीरिक शक्ति प्रतिहत हो चुकी होती है, तथा दक्षिण हाथ में जो दण्डा लेकर चलने लगता है (पविरल परिसडियदतसेढी, आउरे, वा तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए) ते ७।२५ मा प्रभारी छ. म કેઈ એક પુરૂષ હોય અને તે યુવા યાવત નિપુણ શિપગત હોય એટલે કે સભ્ય જ્ઞાન યુકત હોય તે એ તે પુરૂષ વિશાળ લોખંડના ભારને ત્રપુકના ભારને શીશાના ભારને વહન કરવામાં શું સમર્થ થઈ શકે છે? ત્યારે કેશીકુમાર શ્રમણે તેને (हता पभू) , प्रशिन मे ते १३५ ते सोम वगेरेना वि मारने १४न ४२वामा समय २४ ॥ छ. (से चेव णं भंते ! पुरिसे जुन्ने जराजज्जरियदेहे सिढिलवलिअतयाविणट्टगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे ) वे 3शी भाभणे પ્રદેશી રાજાને આ પ્રમાણે પ્રશ્ન કર્યો કે હે ભદત! તે જ પુરૂષ જ્યારે ઘરડો થઈ જાય છે અને વૃદ્ધાવસ્થાને લીધે જર્જરિત શરીરવાળો હોવાથી અશકત થઈ જાય છે, ચામડી જેની કરચલીઓથી યુકત થઈ જાય છે અને એથી જેની શારીરિક શકિત પ્રતિહત થઈ જાય છે તેમજ જમણા હાથમાં જે લાકડી ઝાલીને ચાલવા લાગે છે. (पविरलपरिसडियद तसेढी, आउरे, किसीए, पिवासिए, दुब्बले छुहा. परिकिलते नो पभू एग मह अयभारग वा जाव परिहिवत्तए) नीत
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨