Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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राजप्रश्नीयसूत्रे जीवो त सरीर, जम्हा णं भते ! तीसे अउकुभीए णत्थि केइ छिड्ड वा जाव निग्गए, तम्हा सुपइट्रिया मे पइण्णा जहा-तं जीवो त सरीर, नो अन्नो जीवो अन्न सरीरं ॥सू०१३५॥
छाया-ततःखलु स प्रदेशी राजा केशिनं कुमारश्रमणमेवमवादीत अस्ति खलु भदन्त ! एषा प्रज्ञा उपमा, अनेन पुन:कारणेन नो उपागच्छति, एवं खलु भदन्त ! अहमन्यदा कदाचित् बाह्यायाम् उपस्थानशाला याम् अनेकगणनायक-दण्डनायक-राजेश्वर-तलवर-माडम्बिक-कौटुम्विकेम्य-श्रेष्ठि-सेनापति-सार्थवाह--मन्त्री-महामन्त्री-गणक-दौवारिका-ऽमात्यचेट-पीठमई-नगर-निगम-दूत-सन्धिपालैः साई संपरिवृतो विहरामि ।
'तएणं से पएसी राया इत्यादि ।
सूत्रार्थ-(तए णं) इसके बाद (पएसी राया केसिंकुमारसमण एवं वयासी) प्रदेशी राजाने के शीकुमार श्रमण से ऐसा कहा-(अत्थि णं भंते ! एसा पण्णा उवमा, इमेण पुण कारणेण णो उवागच्छइ) हे भदन्त ! यह जीव एवं शरीर में भेदरूप बुद्धि केवल उपमामात्र है, जैसा कि अभी प्रकट किया गया है-कि इस कारण से देव यहां नहीं आता है. (एवं खल भते ! अह अन्नया कयाई बाहिरियाए उचट्ठाणसालाए) हे भदन्त ! किसी एक समय मैं बाह्य उपस्थान शाला में (अणेगगणणायक, दडणायक-राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेटि-सेणावइ- सत्यवाह. मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च-चेड-पीठमद-नगर-निगम-दूयसंधिवालेहिं सद्धिं संपरिबुढे विहरामि) अनेक गणनायक, दण्डनायक, राजा,
सूत्रार्थ:-(तए ण) त्या२पछी (पएसी राया केसि कुमारसमणं एवं वयासी) प्रदेशी मे शी उभा२ श्रमाने प्रभारी ४यु- (अस्थि णं भंते ! एसा पण्णा उवमा. इमेणं पुण कारणेणं णो उवागच्छ इ) 8 महत ! तमे वने અહીં ન આવવા માટે જે કંઈ કહયું છે તેના વડે તે જીવ અને શરીરમાં ભેદરૂપ मुद्धि त अपमामात्र ४ छे माम स्पष्टपणे माषित थाय छे. (एवं खलु भंते ! अहं अन्नया कयाई बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए) 3 महत! १४ मे १५ते मा. ९५२थानमा (अणेगगणणायकदडणायक-राइसर-तलवर-माडंविय कोंडुबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्यवाह-मति-महामति-गणग-दो वारिय-अमच्च-चेड-पीठभद्द-नगर-निगम-दूध-संधि-वालेहि-सद्धिं संपरि
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨