Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
२१२
राजप्रश्नीयसूत्रे वों गृहे स्थित्वा एवं वदेत-एत तावत् स्वामिन् ! इह मुहूर्तकम् आस्थ्वन् वा तिष्ठत वा निषीदत वा त्वग्वतयत वा, तस्य खलु स्व प्रदेशिन ! पुरुषस्य क्षणमपि एतमर्थ प्रतिशृणुयाः ? नो अयमर्थः समर्थः । कस्मात ? भदन्त ! अशुचि अशुचिसामन्तम् । एवमेव प्रदेशिन् ! तवापि आर्यिका ऽभवत् इहवश्वेतविकायां नगर्या धार्मिकी यावत् व्यहरत्.सा खलु अस्माकं यक्षायतन में घुस रहे हो, उस समय (केइ य पुरिसे) तुम से कोई पुरुष (बच्चघरसि ठिच्चा एवं वएज्जा) विष्ठागृह में स्थित होकर ऐसा कहे (एह ताव सामी ! इह मुहत्तग आस यह, वा चिट्ठह वा निसीयह वा,तुयह वा) हे स्वामिन् ! आप आइये और एक मुहुर्त मात्र समयतक यहां बैठिये, अथवा ठहरिये, सुखपूर्वक रहिये लेटिये (तस्स ग तुमपएसी ! परिसस्स खणमवि एयम8 पडिसुजासि) हे प्रदेशिन् ! तुम उस पुरुष की उस बात को एक क्षण के लिये भी स्वीकार कर लोगे क्या ? (णो इण? समठू हे भदन्त ! उस समय उस पुरुष की यह बात स्वीकार योग्य नहीं हो सकती है (कम्हा) हे प्रदेशिन् ! किस कारण से उस पुरुष की वह बात स्वीकार योग्य नहीं हो सकती है ? (भते ! असुई असुइ सामते) हे भदन्त ! क्यों कि वह स्थान अपवित्र हैं और सब तरफ से अपवित्र वस्तु से युक्त हैं। (एवामेव पएसी ! तब वि अजिया होत्था, इहेव, सेयबियाए णयरीए धम्मिया जाव विहरइ) इसी प्रकार से हे भुत धन (भिंगारकडुच्छयहत्थगय) भने मा२ तेम ४८२७४ डायमा
ने (देवकुलमणुपविसमाण) यक्षायतन (व्य'तरायतन)मा प्रवेशता डायत समये (केइणपुरिसे) तभने ७ भास (वच्चधरंसी ठिच्चा एवं वएज्जा) ४३मां २डीने या प्रमाणे ४९ (एह ताव सामी! इइ मुहुत्तग आसयह वा चिट्ठह वा निसीयह वा, तुयह वा) है स्वामिन् ! तभे आयो भने ५४त भुत रेखा समय सुधा ही मेसे। 3 Sell २४ा, सुमेधा २९ , माराम ४२१. (तस्स ण तुम पएसी ! पुरिसस्स खणमवि एयमढे पडिसुणेज्जासि) तो प्रदेशिन! तमे ते भासनी ते वातने था। मत भाटे ५५ स्वा२।। ? (णो इण? समट्टो) महत! ते मते ते भासनी मा पात स्वामी पावरी नहि. (कम्हा) के प्रशिन् ! २॥ ४॥२४थी ते भासनी ते पात तमारामा स्वीय थरी नls ? (भंते ! असुई असुइ सामंते) & RE ! म ते स्थान पवित्र छ भने मधे पवित्र १२तुमाथी युइत छ. (एवामेव पएसी! तव वि अज्जिया होत्था, इहेव से यं. चियाए णयरीए धम्मिघा जाव विहरइ) मा प्रमाणे ॥ 3 प्रशिन 20 श्वेता
શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્રઃ ૦૨