Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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राजप्रश्नायसूत्रे
शिन् ! पुरुषस्य क्षणमापे एतमर्थ प्रतिगृणुयाः ?, नायमर्थः समर्थः, कम्मात् खलु ?, यस्मात् खलु भदन्त ! अपराधी खलु स पुरुषः, एवमेव प्रदेशिन् ! तवापि आर्यकोऽभवत् इहैव श्वेतबिकायां नगर्याम् अधार्मिको यावत् नो सम्यकूकरभरवृत्ति मावर्तयत, स खलु मम वक्तव्यतया सुबहु यावत् उपपन्नः, तस्य खलु आर्यकस्य त्वं नप्तृकोऽभवः, इष्टः कान्तः यावद् दर्शनतया, स खलु इच्छति मनुष्यं लोक शीघ्रमागन्तु नैव खलु शक़ोति शीघ्रमागन्तुम्, चतुर्भिः स्थानैः प्रदेशिन्! अधुनोपपन्नकः नरकेषु नैरयिककि मैं पड गया हूं । (तस्स णं तुम पएसी ! पुरिसस्स खणमनि एयम पडिसुजासि ? ) तो हे पदेशिन् ! तुम क्या उस पुरुष की यात का थोडी सी भी देर के लिये स्वीकार कर लोगे ? (णो इगठ्ठे सम ) हे भदन्त ! यह अर्थ समर्थ नहीं है-अर्थात् उसकी यह बात स्वीकार नहीं की जावेगा ( जम्हा) क्यों कि (णं सं भते! अवराही णं से पुरिसे) हे भदन्त ! वह पुरुष अपराधी है । ( एवामेव पएसी ! तब वि अज्जए होत्था ) तो इसी तरह से हे प्रदेशिन् ! तुम्हारे भी आर्यक हुए हैं। (एवामेव इहेव सेयबियाए णयरीए अधम्मिए णो, सम्म करभरविति पवत े इ) उन्होंने इस श्वेतांबिका नगरी में अपना जीवन अधार्मिक बनाया है, तथा प्रजाजन से प्राप्त टेक्स से उनका उन्होंने अच्छी तरह से पालनपोषण नहीं किया है। (सेणं अम्ह वक्तव्वाए सुबहु जाव उवबन्नो ) इस तरह मेरी वक्तव्यता के अनुसार वे अनेक अतिमलिन पाप कर्मों का अर्जन करके यावत् किसा एक नरक की पर्याय से उत्पन्न हुए हैं । ( तस्स णं अज्जगस्स तुमं णत्तुए होत्था, इट्ठे कते जाव पासणयाए ) उन्हीं आर्यक के तुम इष्ट कान्त ( तस्स णं तुमं पएसी ! पुरिसस्स खणमवि एयम पडिसुणेज्जासि १ ) તે હે પ્રદેશિન! શું તમે તે પુરુષની વાતને ચેાડા વખત માટે પણ સ્વીકારી લેશે? (णो इट्ठे समट्ठे ) हे लहंत ! म अर्थ समर्थ नथी भेटले तेनी या बात स्वीारवामां आवशे नहि. ( जम्हा) उभडे (ण से भंते! अवराही ण से पुरिसे) हे लत! ते पुरुष अपराधी छे. (एवामेव पएसी ! तव वि अज्जए होत्था) तो मा प्रभाणे ४ हे अहेशिन् तभारा भाटे पशु आर्य! थया छे. (एवामेव इहेव arfare rयरी अधम्मिए णो सम्म कर भरवित्ति पबत्तेइ ) तेभाणे પાંતાનું જીવન શ્વેતાંબિકા નગરીમાં અધામિ`ક રીતે પસાર કર્યું છે તેમજ પ્રજાજના पासेथी १२ वसूल पुरीने पशु तेभनु सारी पेठे घोषणा अयु नथी. (से णं अम्ह वन्तव्वाए सुबहु जाव उववन्नो) या प्रमाणे भारा स्थन मुल्य तेमाणे धां પાપકર્મોનું અર્જન કરીને યાવત્ કોઇ એક નરકમાં નારકની પર્યાયથી જન્મ પામ્યાં છે. ( तस्स णं अज्जगस्स तुमं णतुए होत्था, इहे कंते जाव पासणयाए )
શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૨