Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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____राजप्रश्नीयसूत्रे वरोहति, तद महार्थ यावद गृहाति, यत्र व प्रदेशी राजा तव उपागच्छति, प्रदेशिन राजानं करतल यावद् वद्धयित्वा तन्महार्थ यावत् उपनयति । ततःखलु स प्रदेशी राजा चित्रस्य सारथेस्तन्महाथ यावत प्रतीच्छति चित्र सारथि सत्कारयति सन्मानयति प्रतिविसर्जयति ! ततः खलु स चित्रः सारथिः प्रदेशिना राज्ञा विसर्जितः सन् हृष्ट यावद्हृदयः प्रदेशिनो राज्ञः कर उसने घोडों को रोका (रहं ठवेइ) और रथ को खडा किया। (रहाओ पचोरुहइ) फिर वह उस रथ से नीचे उतरा (तमहत्व जाव गेण्हइ) नीचे उतर कर उसने उस महार्थ आदि विशेषणों वाले माभृत को हाथ में लिया (जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइ) और जहां प्रदेशी राजा था वहां गया (पएसीराय करयल जाव बद्धावेत्ता तं महत्थं जाव उवणेइ) वहां जाकर के उसने प्रदेशी राजा को दोनों हाथों की अंजलि बनाकर एवं उसे मस्तकपर से घुमाकर नमस्कार किया और जयविजय शब्दों का उच्चा रण करते हुए उसे बधाई देकर फिर उसने उसके समक्ष लाये हुए पारितोषिक-भेट अर्पण किया (तएणं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थं जाव पडिच्छइ) प्रदेशी राजाने चित्र सारथी के उस महार्थ आदि विशेषणों वाले प्राभृत को अंगीकार कर लिया (चित्तं सारहिं सका. रेइ, सम्माणेइ पडिविसज्जेइ) और चित्र सारथी का सत्कार किया एव सन्मान किया. बाद में उसे विसर्जित कर दिया. (तएणं से चित्ते सारही ७५स्थान l ती. (तुरगे निगिण्हइ) त्यां पहायान तेरी यामाने Sell awया. (रह ठवेइ) भने २थने थामा०यो. (रहाओ पञ्चोरुहइ) त्या२ ५७ ते २५मा नाये तो. (त महत्थ जाव गेहइ) नये उतरीन तरी ते भार्थ वगैरे विशेषाशवाणी लेट पाताना हायमा दीधी. (जेणेव राया तेणेव उवागच्छइ) मन या अशा २० ते! त्यां गया. (पएसी राय करयल जाव वद्धावेत्ता तं महत्व जाव उवणेइ) त्यां ने तो अशी शतने भन्ने हायानी અંજલિ બનાવીને તેને મસ્તક પર ફેરવીને નમસ્કાર કર્યા અને જયવિજય શબ્દોનું ઉચ્ચારણ કરીને તેને વધામણી આપી. ત્યાર પછી તેણે પિતાની સાથે લાવેલી ભેટને राजने मपित 3. (तए ण से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स त महत्थं जाव पडिल्छइ) अशी शकतो यिसारथिनी ते महा वगैरे विशेषगावाणी लेटने स्वी10 eीधी. (चित्त सारहिं सकारेइ, सम्माणेइ पडिविसज्जेइ) भने ચિત્રસારથીને સત્કાર તેમજ સન્માન કરીને પછી તેને ત્યાંથી વિસર્જિત કર્યો. (त एण' से चित्ते सारही पएसिणा रणा विसज्जिए समाणे हट्ट जाव
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શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨