Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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____ राजप्रश्नीयसूत्र सिणा रन्नो एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट जाव-हियए उवटुवेइ एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणइ । तएणं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स अंतिए एयमटुं सोचा णिसम्म हटतुट-जाव अप्पमहग्घाभरणालकियसगरे साओ गिहाओ णिग्गच्छइ, जेणामेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंटं आसरहं दूरुहइ, सेयवियाए नयरीए भज्झंमझेणं णिग्गच्छइ । तएणं से चित्ते सारही त रह णेगाइ जोयणाइ उभामेइ । तएणं से पएसी राया उण्हेण य तण्हाए य रहवाएण य परिकिलंते समाणे चित्तं सारहि एवं वयासी-चित्ता! परिकिलंते में सरीरे परावत्तेहि रह । तएणं से चित्ते सारही रह परावत्तेइ जेणेव मियवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, पएसि राय एवं वयासी-एस णं सामी ! मियवणे उज्जाणे एत्थणं आसणं समं किलामं सम्मं अवणेमो। तएणं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी-ए होउचित्ता ।१२५॥
छाया-ततः खलु स चित्रः सारथिः कल्य प्रादुष्प्रभातायां रजन्यां फुल्लोत्फुल्लकमलकोमलोन्मीलिते अधाऽऽपाण्डुरे प्रभाते कृत नियमावश्यके सहस्र
'तए ण से चित्ते सारही' इत्यादि।
सूत्रार्थ--(तएण') इसके बाद (से चित्तें सारही) वह चित्रसारथि (कल' पाउप्पभायाए रयणीए) दूसरे दिन जब कि प्रातःकाल के रूप में बदल गई और (फुलुप्पलकमल कोमलुम्मिलियम्मि अहाप डुरे पभाए कयनियमावस्सए) कमल विकसित हो चुके तथा नियम और आवश्यक कृत्य जिसमें लोग कर चुके थे ऐसा पीतधवल प्रभात जब हो गया (सहस्स
'तए ण से चित्ते सारही' इत्यादि ।
सूत्रार्थ :-(त एण) त्या२ पछी (से चित्त सारही) ते ! कल्ल' पाउप्पभायाए रयणीए) alon हिसे न्यारे रात्री प्रात:साना ३५भा पति था आई मने (फुलुप्पलकमलकोपलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए कयनियमावस्सए) भगा विस पाभ्यां म नियम भने मावश्य: इत्यो भा हो 43 ५५॥ ४२वामा माव्या. मे पातधस प्रमात न्यारे थयु (सहस्सरस्सिम्मि दिण यरे
શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્ર: ૦૨