Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
सुबोधिनी टीका सू. ११४ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् श्रावस्त्या नगर्या मध्य
मध्येन निर्गच्छति तत्रैव
कुमारश्रमणः
सात् निर्गच्छति, यत्रैव कोष्ठक. चैत्य यत्रैव केशी उपागच्छति, केशिकुमार श्रमणस्य अन्तिके धर्म श्रुत्वा हृष्ट यावत् उत्थया यावदेवमवादीत - एवं खलु अह भदन्त ! जितशत्रुणा राज्ञा प्रदेशिने राज्ञे परिक्खिते पायचारविहारेण महया पुरिसवग्गु परिक्खिते रायमग्गमोगाढाओ आवामाओ निग्गच्छर) स्नान किया यावत् बहुमूल्य वेश एवं अल्पभारवाले आभूषणों से अपने शरीर को अलंकृत किया. पश्चात् छत्रधारी द्वारा ताने गये एवं कोरंटपुष्पों की माला से विभूषित ऐसे छत्र से युक्त हुआ वह चित्र सारथि विशाल भटों के विस्तृत समूह से युक्त होकर उस राजमार्ग स्थित आवास से पैदल ही निकला साथ में विशाल जनमेदिनी भी थी. (सावत्थीए नयरीए मज्झमज्झेण निग्गच्छ३) इन सब से घिरा वह चित्र सारथि श्रावस्ती नगरीके बीचों बीच मार्ग से होकर चला ( जेणेव कोट्टए चेइए जेणेव के सिकुमारसमणे तेणेव उवागच्छ ) चलते२ वह वहां पहुंचा जहां कोष्ठक चैत्य और उसमें भी जहां केशिकुमारश्रमण थे ( के सिकुमारसमणस्स अति धम्म सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ जात्र उट्ठाए एवं वयासी वहां पहुंचकर उसने केशिकुमार श्रमण से धर्मका उपदेश सुना और उसे हृदय में धारण किया सुनकर और हृदय में धारण कर वह आनंद से प्रफुल्लित बन गया, और संतुष्ट चित्त हो गया यावत् उसका हृदय प्रमोद से
९५
भड चडगरविंदपरिक्खिते पायचारविहारेण महया पुरिस वग्गुरापरिक्खित्ते रायमग्गमोगाढाओ आवासाओ निग्गच्छ इ) स्नान यु" यावत् महु भितवानां मने અલ્પભારવાળાં આભૂષણા વડે તેણે પેાતાના શરીરને અલંકૃત કર્યું. ત્યારપછી કાર ટ પુષ્પ વડે શાભતુ છત્ર છત્રધારીએ વડે તેના ઉપર તાણુવામાં આવ્યું. આ પ્રમાણે તે ચિત્ર સારથિ વિશાળ ભટાના સમુદાયથી પરિવેષ્ટિત થઇને તે રાજમાર્ગ પર સ્થિત આવાસ સ્થાનથી પગપાળાં જ રવાના થયા. તેની સાથે વિશાળ માનવસમૂહ પણ હતા. (सावस्थी नयरी मज्झ मज्झेण निग्गच्छइ) मा सर्वथी वीटजायेखेोते सारथि श्रावस्ती नगरीना मध्यमार्ग पर थाने नीडल्या. ( जेणेव कोइए चेइए जेणेव के सिकुमार समणे तेणेव उचागच्छइ) नीडजीने ते भ्यां श्रेष्ठ शैत्य तु अने तेमां या नयां शिडुभार श्रमण हुता त्यां थडग्या (के सिकुमारसमणस्स अतिए धम्मं सोचा णिसम्म हट्टतुट्ठ जाव उट्टाए जाव एवं वयासी) ત્યાં પહાંચોને તેણે કેમિાર શ્રમણ પાસેથી ધર્મોપદેશ સાંભળ્યા અને તેને હૃદયમાં ધારણ કર્યાં. ધર્મોપદેશ સાંભળીને અને હૃદયમાં ધારણ કરીને તે આનંદવિભાર થઈ ગયા અને સંતુષ્ટ ચિત્તવાળું થઇ ગયા. યાવત્ તેનું હૃદય પ્રસન્નતાથી ઉભરાઈ ગયું
શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૨