Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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कहा, जैसे-वह अपने अंगों को , बाह्य भय उपस्थित होने पर, समेट लेता है वैसे ही साधकों को विषयों से इन्द्रियों को हटा लेना चाहिए। तथागत बुद्ध ने भी साधकजीवन के लिए कूर्म का रूपक प्रयुक्त किया है।
___ इस तरह कूर्म का रूपक जैन बौद्ध और वैदिक आदि सभी धर्मग्रन्थों में इन्द्रियनिग्रह के लिए दिया गया है। पर यहाँ कथा के माध्यम से देने के कारण अत्यधिक प्रभावशाली बन गया है।
___ पाँचवें अध्ययन का सम्बन्ध विश्वविश्रुत द्वारका नगरी से है। श्रमण और वैदिक दोनों ही परम्पराओं के ग्रन्थों में द्वारका की विस्तार से चर्चा है। वह पूर्व-पश्चिम में १२ योजन लम्बी और उत्तर-दक्षिण में नौ योजन विस्तीर्ण थी। कुबेर द्वारा निर्मित सोने के प्राकार वाली थी, जिस पर पाँच वर्णवाली मणियों के कंगूरे थे। बड़ी दर्शनीय थी। उसके उत्तर-पूर्व में रैवतक नामक पर्वत था। उस पर नंदवन नामक उद्यान था। कृष्ण वहाँ के सम्राट
बृहत्कल्प के अनुसार द्वारका के चारों ओर पत्थर का प्राकार था। त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र में आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है कि द्वारका १२ योजन आयामवाली और नौ योजन विस्तृत थी। वह रत्नमयी थी। उसके सन्निकट अठारह हाथ ऊँचा, नौ हाथ भूमिगत और बारह हाथ चौड़ा सभी ओर खाई से घिरा हुआ एक सुन्दर किला था। बड़े सुदर प्रासाद थे। रामकृष्ण के प्रासाद के पास प्रभासा नामक सभा थी। उसके समीप पूर्व में रैवतक गिरि, दक्षिण में माल्यवान शैल, पश्चिम में सौमनस पर्वत और उत्तर में गन्धमादन गिरि थे। आचार्य हेमचन्द्र आचार्य शीलांक देवप्रभसूरि आचार्य जिनसेन' आचार्य गुणभद्र प्रभृति श्वेतांबर व दिगम्बर परम्परा के ग्रंथकारों से और वैदिक हरिवंशपुराण' विष्णुपुराण और श्रीमद्भागवत्" आदि में द्वारका को समुद्र के किनारे माना है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने द्वाराकागमन के संबंध में युधिष्ठिर से कहा-मथुरा को छोड़कर हम कुशस्थली नामक नगरी में आये जो रैवतक पर्वत से उपशोभित थी। वहाँ दुर्गम दुर्ग का निर्माण किया। अधिक द्वारों वाली होने से द्वारवती कहलाई।२ महाभारत जनपर्व की टीका में नीलकण्ठ ने कुशावर्त का अर्थ द्वारका दिया है।
प्रभुदयाल मित्तल ने लिखा है-शूरसेन जनपद से यादवों के आजाने के कारण द्वारका के उस छोटे से राज्य की अत्यधिक उन्नति हुई। वहाँ पर दुर्भेद्य दुर्ग और विशाल नगर का निर्माण कराया गया और अंधकवृष्णि संघ के एक शक्तिशाली यादव राज्य के रूप में संगठित किया गया। भारत के समुद्र तट का वह सुदृढ़ राज्य विदेशी अनार्यों के आक्रमण के लिए देश का एक सजग प्रहरी बन गया। गुजराती में 'द्वार' का अर्थ बन्दरगाह है। द्वारका या द्वारावती का अर्थ बन्दरगाहों की नगरी है। उन बन्दरगाहों से यादवों ने समुद्रयात्रा कर विराट सम्पत्ति अर्जित की थी। हरिवंशपुराण५ में लिखा है-द्वारका में निर्धन, भाग्यहीन, निर्बल तन और मलिन मन को कोई भी व्यक्ति नहीं था। वायुपुराण आदि के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि महाराजा रेवत ने समुद्र के मध्य कुशस्थली नगरी बसाई थी। वह आनर्त्त जनपद में थी। वह कुशस्थली श्रीकृष्ण के समय द्वारका या द्वारवती के नाम से पहचानी जाने लगी। घटजातक का अभिमत है कि द्वारका के एक ओर विराट समुद्र अठेलियाँ कर रहा था तो
१. ज्ञातासूत्र १-५
२. बृहत्कल्प भाग २, २५१ ३. त्रिषष्टिशलाका. पर्व ८ सर्ग ५, पृ. १२ ४. त्रिषष्ठि. पर्व, ८, सर्ग ५, पृ. ९२ ५. चउप्पन महापुरिसचरियं ६. पाण्डवचरित्र देवप्रभसूरिरचित ७. हरिवंशपुराण ४१/१९१९ । ८. उत्तरपुराण ७१/२०-२३.पृ. ३७६ ९. हरिवंशपुराण २/५४ १०. विष्णुपुराण ५/२३/१३
११. श्रीमद्भागवत १० अ, ५०/५० १२. महाभारत सभापर्व अ. १४ १३. (क) महाभारत जनपर्व अ. १६ श्लो. ५०/ (ख) अतीत का अनावरण पृ. १६३ १४. द्वितीय खण्ड ब्रज का इतिहास, पृ. ४७ १५. हरिवंशपुराण २/५८/५५ १६. जातक (चतुर्थ खंड) पृ. २८४