Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चुराकर वह श्रेष्ठीपुत्र देवदत्त को आभूषणों के लोभ से चुरा लेता है और बालक की हत्या कर देता है। वह चोर पकड़ा गया और कारागृह में बन्द कर दिया गया। किसी अपराध में सेठ भी उसी कारागृह में बन्द हो गये, जहाँ पर विजय चोर था। श्रेष्ठी के लिए बढ़िया भोजन घर से आता। विजय चोर की जबान उस भोजन को देखकर लपलपाती। पर, अपने प्यारे एकलौते पुत्र के हत्यारे को सेठ एक ग्रास भी कैसे दे सकता था? दोनों एक ही बेड़ी में जकड़े हुए थे। जब सेठ की शौचनिवृत्ति के लिए भावना प्रबल हुई तो वह एकांकी जा नहीं सकता था। उसने विजय चोर से कहा। उसने साफ इन्कार कर दिया। अन्त में सेठ को विजय चोर की शर्त स्वीकार करनी पड़ी कि आधा भोजन प्रतिदिन तुम्हें दूंगा। श्रेष्ठीपत्नी ने सुना तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हुई। कारागृह से मुक्त होकर श्रेष्ठी घर पहुँचा तो भद्रा ने कहा कि तुमने महान् अपराध किया है। श्रेष्ठी ने अपनी विवशता बताई।
प्रस्तुत कथाप्रसंग को देकर शास्त्रकार ने यह प्रतिपादन किया है कि सेठ को विवशता से पुत्र-घातक को भोजन देना पड़ता था। वैसे साधक को भी संयमनिर्वाह हेतु शरीर को आहार देना पड़ता है, किन्तु उसमें शरीर के प्रति किंचित् भी आसक्ति नहीं होती। श्रमण की आहार के प्रति किस तरह से अनासक्ति होनी चाहिए, कथा के माध्यम से इतना सजीव चित्रण किया गया है। श्रेष्ठी ने जो भोजन तस्कर को प्रदान किया था उसे अपना परम स्नेही और हितैषी समझकर नहीं किन्तु अपने कार्य की सिद्धि के लिए। वैसे ही श्रमण भी ज्ञान-दर्शन-चारित्र की उपलब्धि के लिए आहार ग्रहण करता है। पिण्डनियुक्ति आदि में श्रमण के आहार ग्रहण करने के सम्बन्ध में गहराई से विश्लेषण किया गया है। उस गरुतम रहस्य को यहाँ पर कथा के द्वारा सरल रूप से प्रस्तत किया है।
तृतीय अध्ययन की कथा का सम्बन्ध चम्पा नगरी से है। चम्पा नगरी महावीर युग की एक प्रसिद्ध नगरी थी। स्थानांग' में दस राजधानियों का उल्लेख है और दीघनिकाय में जिन छह महानगरियों का वर्णन है उनमें एक चम्पा नगरी भी है। औपपातिक में विस्तार से चम्पा का निरूपण है। आचार्य शय्यंभव ने दशवैकालिक सूत्र की रचना चम्पा में ही की थी। सम्राट श्रेणिक के निधन के पश्चात् उसके पुत्र कुणिक ने चम्पा को अपनी राजधानी बनाया था। चम्पा उस युग का प्रसिद्ध व्यापार केन्द्र था। कनिंघम ने भागलपुर से २४ मील पर पत्थरघाट या उसके आसपास चम्पा की अवस्थिति मानी है। फाहियान ने पाटलीपुत्र से अठारह योजन पूर्व दिशा में गंगा के दक्षिण तट पर चम्पा की अवस्थिति मानी है। महाभारत ३ में चम्पा का प्राचीन नाम मालिनी या मालिन मिलता है। जैन बौद्ध और वैदिक परम्परा के साहित्य के अनेक अध्याय चम्पा के साथ जुड़े हुए हैं। विनयपिटक (१, १७९) के अनुसार भिक्षुओं को बुद्ध ने पादुका पहनने की अनुमति यहाँ पर दी थी। सुमंगलविलासिनी के अनुसार महारानी ने नग्गरापोक्खरिणी नामक विशाल तालाब खुदवाया था, जिसके तट पर बुद्ध विशाल समूह के साथ बैठे थे। (दीघनिकाय १, १११) राजा चम्प ने इसका नाम चम्पा रखा था। वहाँ के दो श्रेष्ठीपुत्रों में पय-पानीवत् प्रेम था। एक दिन उन्होंने उपवन में मयूरी के दो अण्डे देखे। दोनों ने एक-एक अण्डा उठा लिया। एक ने बार-बार अण्डे को हिलाया जिससे वह निर्जीव हो गया। दूसरे ने पूर्ण निष्ठा के साथ रख दिया तो मयूर का बच्चा निकला और कुशल मयूरपालक के द्वारा उसे नृत्यकला में दक्ष बनाया। एक श्रद्धा के अभाव में मोर को प्राप्त न कर सका, दूसरे ने निष्ठा के कारण मयूर को प्राप्त किया। इस रूपक के माध्यम से यह स्पष्ट किया है-संशयात्मा विनश्यति
और दूसरा श्रद्धा के द्वारा सिद्धि प्राप्त करता है-श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्। श्रमणधर्म व श्रावकधर्म की आराधना व साधना पूर्ण निष्ठा के साथ करनी चाहिए। और जो निष्ठा के साथ साधना करता है वह सफलता के उच्च शिखर १. स्थानांग १०-७१७, २. The Ancient Geography of India. Page 546-547 ३. महाभारत १२,५६-७ (ख) मत्स्यपुराण ४८, ९७ (ग) वायुपुराण १९, १०५-६, (घ) हरिवंशपुराण ३२, ४९