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शतक ३. -उदेशक २.
भगवत्धर्मस्वामिप्रणीत भगवती सूत्र
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निर्वृत्ता-काविषी 'अहिगरज सि अविचिपते नरकादिनु आत्मा अनेन इति अधिकरणम्-अनुशनविशेषः, वयं वा रथ - खङ्गादि, तत्र भवा, तेन वा निर्वृत्ता, इति-आधिकरणिकी. ' पाओसिग' त्ति प्रद्वेषो मत्सरः, तत्र भवा, तेन वा निर्वृता, स एव वा प्राविकी 'परितावणिय' ति परितापनं परिताप:- पीडाकरणम्, तत्र भवा, तेन वा निर्वृता तदेव वा पारितानिकी. 'पाणाइवायकिरियत्ति प्राणातिपातः प्रसिद्धः, तद्विषया क्रिया, प्राणातिपात एव वा क्रिया प्राणातिपातक्रिया. 'अणुवरयकायकिरिया यति अनुपरतोऽविरतः, तस्य कापक्रिया अनुपरतकायकिया, इयम् अवरतस्य भवति दुप्पउतकायाकरिया यदि दुष्टं प्रयुक्तो दुष्प्रयुक्तः, स चासो कायश्च दुष्प्रयुक्तकाषः तस्य क्रिश दुकान अथवा बुद्धं प्रयुक्तं प्रयोगो यस्य स दुग्ययुक्तः, तस्य कायक्रिश दुष्प्रयु क्तकायक्रिया. इयं प्रमत्तसंयतस्याऽपि भवति, विरतिमतः प्रमादे सति का दुष्टप्रयोगस्य सद्भावात् ' संजोयणाहिगरण किरिया य' ति संयोजनम् - हल - गर - विप- कूटयन्त्राद्यङ्गानां पूर्वनिर्वर्तितानां मीउनम्-तदेव अधिकरणक्रिया संयोजनाधिकरणक्रिया. 'निव्यत्तणाहिगरणकिरिया व ति निर्वर्तनम् असि शक्ति तोमरादीनां निधादनम्, तदेय अधिकरणक्रिया निर्वर्तनविकरणक्रिया. 'जीनपाओसआय' ति जीवस्य आमनः परस्य तदुभयरूपस्य उपरि प्रपाद या क्रिया नपकरणमेत्र था. सहत्वपरितापनि यति खफोन पस्य
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परस्य तदुभयस्य वा परितापनाद् असातोदीरणादू या क्रिया, परितापनाकरणमेव या सा स्वहस्तपारितापनिकी एवं पारिवापनिकी
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अपि एवं प्राणातिपातक्रिया ऽपि
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क्रिया.
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काविही
अ. भिकरणिकी.
१. बीजा उद्देशकमां चमरना उत्पात विषे हकीकत जगावी छे. अने ते 'उसात उंचे जत्रुं ' एक प्रकारनी क्रिया गणाय छे. माटे हवे याचक वर्ग सहज शंका भाव के क्रियाए ? तो अहिं किया 'नुं स्वरूप जंगापीने से देने का वीजा उदेवरुनी शहगात मायके से आ प्रमाणे [से का इल्यादि ] तेमां [पंच फिरियाओ 'त्ति ] करते किया अर्थात् कर्मवो बंद पाण पेट किया. [ काइयति ] संगृहीत धायचयरूप धाद ते खाय शरीर, काय शरीर मां एली के कार शरीर द्वारा बड़ी जे किया ते कायिकी क्रिया. [' अहिगरणिअत्ति ] जे द्वारा आत्मा, नरक वगेरे दुर्गतिओमां जवानो अधिकारी थाय ते अधिकरण- एक ज.तनुं अनुठान अवा बहारनी वस्तु, जेपी के चक, रथ अने तरवार वगेरे. ते अधिकरणमा थएटी के अधिकरण द्वारा बनेली ने किया से अधिकनिकी भी क्रिया. [ 'पाओसिअ 'त्ति ] प्रद्वेष एटले मत्सर, प्रद्वेष - मत्सर- मां- एटले मत्सररूप निमित्तने लईने-थएली के प्रद्वेष - मत्सर द्वारा थएली जे क्रिया ते प्राद्वेषिकी क्रिया अथवा द्वेष मत्सर रूप व जे किया ते माद्वेषिकी क्रिया. [परितावनिअ ' ति ] पीडा उपजावधी -रित्राव से परिताप, बे लने के ते द्वारा एली क्रिया अथवा परितापरूप ज जे क्रिया ते पारितिापनिकी. ['पाणाइवायकिरिय 'ति ] 'प्राणातिपात' शब्दनो अर्थ प्रसिद्ध छे. प्राणोनुं तद्दन पडी जबुं - (५) पांच इंद्रिय, (३) शारीरिक, मानसिक अने वाचिक एम त्रण बळ, (१) उच्छ्वास अने निःश्वास तथा (१) आयुष्य एम दस प्राणो . तेओने आत्माथी तद्दन जूदा पाडवा ते प्राणातिपात. प्राणातिपातने लगती ने किया अथवा प्राणातिपातरूप व जे क्रिया वे प्राणातिपात किया. [ अणुचरवकायन्हिरिया यत्ति ] विरति त्यागइति विनाना प्राणीनी जे शारीरिक किया ते अनुपरत काय किया. आ फिया बिरति विमाना ग्राणीने होय छे. ['दुप्पउक्तकाय किरिया यचि ] दुष्ट रीते प्रयोजेल से दुष्प्रयुक्त दुष्ययुक्त शरीर द्वारा थरी ने किया ते दुष्प्रयुक्तकाय क्रिया अथवा दुट प्रयोगवाळा मनुष्यना शरीर द्वारा थरली जे क्रिया ते दुष्प्रयुक्तकायक्रिया. आ क्रिया प्रमत संयतने पण होय छे. कारण के पिरतिचाळा प्राणीने प्रनाद घाची तेनुं शरीर दुष्ययुक्त थ जाय . [ संजोयगादिगरण फिरेपा य 'चि] संयोजन एटले जो मेळ. ना जू जूदा भागोने जोडीने (मेळवीने) हळ तैयार कर कोई पण पदार्थमां शेर (विष) मेळवीने एक मिश्रित पदार्थ बनाय तथा पक्षिओ अने मृगोने पकडवा माटे तैयार थता यंत्रना जूदा जूदा भागोने जोडीने एक ( पक्षिने पकडनाएं ) यंत्र तैयार कर एवधी शिओनो समास संयोजन' शब्दना अनाथाय छे. तो संयोजनरूप नवे अधिकरणक्रिया ते संयोजन. धिकरण फिरा. [निव्यचगाहिणकिरिया य'त्ति ] तरवार, वरछी के भालुं; इत्यादि शस्त्रोनी बनावट ते निर्वर्तन अने निर्वर्तनरूप ज जे अधिकरण किंवा ते निर्वर्तनाधिकरण किना. [[जी]पाओसिया यति] [फोटा (जीव ) उपर अने पोता तथा बीजा उपर करेल द्वेष द्वारा घटी ने किया अथवा पंता उपर अनेसा तथा बीजा उपर जे द्वेष करवो तेज जीवप्राद्वेषिकी क्रिया. [ 'अजीवदाओसिया य' त्ति ] अभी उपर करेल द्वेष द्वारा थरली जे क्रिया अथवा अजीब उपर जे द्वेष करतो तेज अजीवप्राद्वेषिकी क्रिया. [ 'सहत्यवारितावणिया य' चि ] पोताना हाथ पोताना, बीजाना के बन्नेना परितापन - दुःखना उदीरणद्वारा एली जे क्रिया अथवा जे परितापन व ते सरितापनि की. ए व प्रमाणे परहस्तपारितापनिकी अने प्राणातिपातक्रिया संबंधे पण समजवं.
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क्रिया अने. वेदना.
७. प्र० वं मेते फिरिया, पच्छा पेमणा ? पुष्यं घेअणा, पच्छा किरिया ?
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७. उ० – मंडिअपुत्ता ! पुव्वि किरिया, पच्छा वेदणा. जो पुपि वेदणा पच्छा किरिया.
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७. प्र० - हे भगवन् ! पंहेलां क्रिया धाय अने पछी वेदना थाव के पहेड वेदना धाप अने पछी किया थाप
१. मूलः पूर्व भगवन् किया, पचादु वेदना पूर्व वेदना पथाद किया पूर्व प्रधामापूर्व
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नित्या:-अनु
७. उ०- हे मंडितपुत्र ! पहेलां किया थाय अने पछी वेदना याय, पण हे वेदना वाय अने पछी किया था एम न
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थाय.
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द्वेष पारेतापनिकी.
प्राण. तिपात.
अनुररत.
दुष्प्रयुक्त.
संरोजन,
निर्वर्तन.
34. अमीर.
परिवार अने
प्राप
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