Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 354
________________ कि निष्पाव-कलाय यूका. सार. ३४४ श्रीरामचन्द्र - विनागमसंग्रहे शतक ६.- उद्देशक १०. ! से पूर्ण गोयमा से केवलकन्ये अंपूदीचे दीये तिहि पाणपोगलेहिं संपूर्ण जंबूद्दीपनामनेो द्वीप, (ते देवनी आवी शीप्रगतिथी उडेला ) फुडे हंता, फुढे चक्रिया गं गोयमा केपति तेसिं पाणपोग्गलाण से गंध पुद्गलोना स्पर्शयाळो थयो के नहि हा स्पर्शपयो कोलट्ठिमायमवि जाव-उवदंसित्तए ! णो तिणद्वे समट्टे से तेणट्टे णं हे गौतम! कोइ ते गंधपुद्गलोने बोरना ठळीया जेटला पण यावत् जाव-उवसेत्तए. दर्शी समर्थ छे! ए अर्थ समर्थ नथी. ते हेतुश्री मुखादिने पण यावत् दर्शाववा समर्थ नथी. Jain Education International " , , १. प्रागविशुद्धलेश्पस्य ज्ञानाभाव उक्तः, अथ दशमोदेशकेऽपि समेव दर्शयन् इदमाह-अस्थि इत्यादि नो पक्षिय ति न शक्नुयात 6 जाव - कोलट्ठियमायमवि' ति आस्तां बहु, बहुतरं वा; यावत् कुत्रलाऽस्थिकमात्रमपि तत्र कुत्रलास्थिकं ' वल्लः, त्ति कलायः, बदरफुकम् निप्पाच ति वह कल ति काय जूस चि यूका, अयं णं इत्यादि दृष्टान्तोपनय एवम्:- यथा गन्धपुखानाम् अतिसूक्ष्मत्वेनाऽमूर्तकस्यायात् कुपास्थिकमात्रादिकं न दर्शयितुं शक्यते, एवं सर्व जीवानां मुखस्य दुःखस्य चेति " " ' १. गलनामा उद्देशकां विशुद्धयाळाने शनो अमाय को छे, हवे आ] दशम उद्देशक्रमां पण ते ज ज्ञानमा अभावने लगती वातने दर्शाता आ-- ' अन्नउत्थि ' इत्यादि ] सूत्र कहे छे, [ 'नो चैकिय ' त्ति ] शक्तिमान् न थाय, [' जाव कोलद्वियमायम बि ' त्ति ] पशुं अथवा बारे जानुं रहो अर्थात् पानी तो बात जशी करवी पण यावत्पलास्विक जलं पण ते कुलास्थित एटले बोरगो उलीयो [शिवाय चि] निप्पायरले बाल. 'कल' चि] बस पटले कलाय. [ जूप चि] वूफा एट जू. [ अर्थ पं इत्यादि इतनसार आप्रमाणे मी गंधनांद्रो अमूर्त तुल्य होवाथी मोरना उठीचा बंगरे जेटली पण ते पुद्गलोने दर्शाववा कोइ शक्त नथी ए प्रमाणे सर्व जीवोने सुख अने दुःख दर्शाववा कोइ शक्त नथी. 3 " " जीव. २. प्र० ] संतें जी जी जी ? ३. उ०- गोयमा ! जीवे, ताव नियमा जीवे, जीवे वि, नियमा ज ४. प्र० - जीवे णं भंते ! नेरइए, नेरइए. जीवे ? ४. उ०- गोवमा । नेरहए ताच नियमा जीने जीने पुण सिय नेरइए, सिय अनेरईए. ५. प्र० - जीणं भवे ! असुरकुमारे, असुरकुमारे जीये ५. उ०- गोयमा ! असुरकुमारे नाव नियमा जीव जीवे पुण सिव असुरकुमारे, लिय जो असुरकुमारे; एवं दंडओ भाणि यत्रो, जाव- वेमाणियाणं. ३. प्र० - हे भगवन् ! शुं जीव जीव ( चैतन्य ) छे ? के चैतन्य जीव छे ! ३. उ०- हे गौतम! जीव तो नियमे चैतन्य-जीव छे अने जीव-चैतन्य पण नियमे जीव छे. ४. २०-हे भगवन् ! जीव नैरथिक छे के नैरविक जीव रहे हैं ४. उ० - हे गौतम! नैरयिक तो नियमे जीव छे अने जीव तो नैरविक पण होय तथा अनैरविक पण होय. ५. प्र०-हे भगवन्! जीव असुरकुमार हे के अमुर? कुमार जीव छे ? ५. उ० - हे गौतम! असुरकुमार तो नियमे जीव छे अने जीप तो असुरकुमार पण होय तथा असुरकुमार न पण होय. ए प्रमाणे यावत् वैमानिक सुधी दंडक कहेवो. १ मूलच्छाया:- तद् नूनं गौतम ! स केदलको जम्बूदीपो द्वीपस्तेघ्राणपुद्गलेः स्पृष्टः ? हन्त, स्पृष्टः शक्नुयात् गौतम! कश्चित् तेषां प्राणपुलानां साविकमामपि यावद-उपदर्शवितदर्थ समर्थन या उपदर्शवितुम् अनु० १. आ 'चडिया' रूप, ' सक्किया' नुं रूपांतर छे. सूत्रोनी छेली वाचना वलभीपुर-वळा - ( साराष्ट्र) मां थएली होवाथी ए संभव छे के, ए वाचनानी भाषा उपर, ए बलभीनी वा तेनी आसपासना प्रदेशनी असर थाय, अने ए असरना परिणामे ज ' सक्किया' नुं ' चक्किया श्रयुं जणाय छे. वर्तमानमा पण वलभीपुर अने तेनी आसपासना प्रदेशना रहेवासिओ ' स' ने बदले 'च' नो उच्चार करे छे:- अनु० १. छावा जोग जीवाम अरकुमारो जीवः गौतम यापद वैमानिकानाम् जीवा, जीव, जीवः १ गीतम! जीवस्ताब [नियमाजीव, जीयोऽपि नियमाद जीवः जीव भगवन्! [रविस्टा नियमाद्वनवाद नैरविकः स्याद् अनैरवि भगवन् कुमारः कुमारखाविसमा जीव जीवः पुनराअरमान असुकुमारः एवं दण्डको तिम्यः ', For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 352 353 354 355 356 357 358