Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha

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Page 294
________________ २८४ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक ६.-उद्देशक ३. आयुष्कस्याऽबन्धकत्वादिति. सूक्ष्मद्वारे ‘बायरे भयणाए ' ति वीतरागबादराणां ज्ञानावरणस्याऽबन्धकत्वात् , सरागबादराणां च बन्धकत्वाद् भजना इति. सिद्धस्य पुनरबन्धकत्वाद् आह:- नोसुहम-'इत्यादि. ' आउए सहमे, बायरे भयणाए 'त्ति बाधकाले बन्धनात् , अन्यदा त्वबन्धनाद् भजना इति. चरमद्वारे:- अट्ट वि भयणाए ' ति इह यस्य चरमो भो भविष्यतीति स चरमः, यस्य तु नाऽसौ भविष्यति सोऽचरमः, सिद्धश्चाऽचरमः, चरमभवाऽभावात् , ता चामो यथायोगम् अष्टाऽगि बध्नाति, अयोगिवे तु नः इत्येवं भजना. अचरमस्तु संसारी अष्टाऽपि. बध्नाति सिद्धस्तु न इत्येवमत्राऽपि भजना इति. खीद्वार..६. स्त्रीद्वारमा [.'णाणावरणिजं णं भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधइ? ' इत्यादि.] प्रश्न छे. तेमां, वेदना उदय विनानो एटले जे जीव शरीरे न स्त्री-न पुरुष- करीने कदाच स्त्री, पुरुष के नपुंसक होय परंतु स्त्रीत्व, पुरुषत्व के नपुंसकत्वने लगता विकार (वेद) विनानो होय ते न स्वी, न पुरुष अने न न-नपुंसक. नपुंसक कहवाय अने ते, अनिवृत्तिवादरसंपरायादि गुणस्थानकमां होय छे अने तेमां अनिवृत्तिवादरसंपराय अने सूक्षासं रायने जनावरणीयना बंधक कह्या छे. कारण के, ते सप्तविध कर्मना के षड्विधर्मना बंधक छे अन उपशांतमोहादि गुणस्थानकवाळो ते न स्त्री, न पुरुष अने न न सकरूप महात्मा तो तेनो अबंधक छे, कारण के, ते एकविंध कर्मनो बंधक छे माटे ज को छे के, कदाच बाये अने कदाच न बंधे. [ आउगे णं भंते !' अ युष्य. इत्यादि ] प्रश्न छे, तेमां स्त्री वगरे ए त्रणे जीवो आयुष्य बांधे अने न बांधे एटले आयुष्य-बंधकाले बांधे अने ज्यारे आयुष्यनो बंधकाळ न होय त्यारे न बांधे, कारण के, एक भवमा आयुष्य एक ज बार बंधाय छे. अने जे ख्यादिवेद रहित छे ते तो बांधतो नथी, कारण के, निवृत्तिवादरसंपराय संयतदार, वगेरे गुणस्थानकोमा आयुष्य-बंधनो व्यवच्छेद थाय छे. संयतद्वारमा ['णागावरणिजं' इत्यादि. ] प्रथमना चार संयममां-सामायिक, छेदोमार-संयम, पस्थापनीय, परिहारविशुद्धि अने सूक्ष्मसंपराय संयममा रहेनारो संयत जीव, ज्ञानावरण बाधे छे अने यथाख्यात संयममा रहेनारो संयत तो उपशांत मोहादिवाळो होवाथी बांधतो नथी माटे कयुं छे के, [संजए सिय ' इत्यादि. ] अर्थात् संयत कदाच बांधे अने कदाच न बांधे. असंयत न संयत-न असंत एटले मिथ्यादृष्टि वगेरे अने संयतासंयत एटले तो देशविरत, ते बन्ने बांधे. जेने संयमादि भाव निषिद्ध छे अर्थात् जे संयत नथी, असंयत नथी न संप्तासंयत. अने संयतासंयत पण नथी तेवो तो सिद्ध छे ते न बांधे, कारण के, तेने कर्म बंधननो कोइ तु होतो नथी. [ ' आउगे हेहिल्ला तिन्नि भयणाए' ति] संयत, असंयत अने संयतासंयत, आयुष्यबंधकालमां-आयुष्य बांधवानी वेगए-आयुष्यने बांधे, अन्यदा-ते सिवायना काळमां-न बांधे, माटे तेओने आयुष्यनो बंध भजनाए करो छे. [' उवरिल्ले न बंधइ ' त्ति ] संयतादिमां उपरितन सिद्ध छे अने ते आयुष्य बांधतो नथी. सम्पदधिकार सम्यग्दृष्टिना द्वारमा [ ' सम्मदिट्ठी सिय बंधइ 'त्ति ] सम्यग्दृष्टि, वीतराग पण होय अने तेथी भिन्न--सराग-पण होय, ते बेमां वीतगग सम्यग्दृष्टि, ज्ञानावरण बांधतो नथी, कारण के, ते एकविध कर्मनो बंधक छे, अने सराग सम्यग्दृष्टि तो ज्ञानावरण बांधे, माटे कयु छ के, सम्यग्दृष्टि, मिथ दृष्टि मिश्रदृष्टि, ज्ञानावरण कदाच बांधे अने कदाच न बांधे. मिथ्यादृष्टि अने मिश्रदृष्टि ते बन्ने तो बांधे ज. [ 'आउए हिला दो भयणाए 'ति] सम्यग्दृष्टि अने मिथ्यादृष्टि कदाच आयुष्य बांधे अने कदाच न बांधे, जम के, अपूर्वकरणादि सम्यग्दृष्टि आयुष्य न बांधे अने बीनो तो एटले तेथी भिन्न सम्यग्दृष्टि, • आयुष्यना बंधकाळे आयुष्य बांधे अने अन्यदा तो न बांधे अने मिध्यादृष्टि पण ए प्रमाणे एटले आयुध काळे आयुष्य बांधे अने अन्यदा न संशिद र. बांधे तथा मिदृष्टि तो आयुष्य बांधे ज नहि-कारण के, ते मिश्रदृष्टिने, आयुष्य बंशका अध्यवसाय स्थाननो अभाव छे. संज्ञिद्वारमा [' सन्नी संती. सिय बंधइ 'त्ति ] मनःपर्याप्तिवाळो-संजी-जीव, ते जो वीतराग होय तो ज्ञानावरण न बांधे अने जो तदितर-सराग-होय तो बांधे, तेथी अमरज ' खात्-कदाचित् ' एम कर्तुं छे. [ 'असन्नी बंधइ' ति ] मनःपर्याप्ति विनानो असंज्ञी जीव ज्ञानावरण बांधे ज. [ 'नोसन्नी-नोअसन्नि ' त्ति ] नोसंबी- संशी संज्ञी पण नहि अने असंज्ञी पण नहि एवो केवली या सिद्ध होय अने ते न बांधे, कारण के, तेने बंधननां कारणो नथी. [ 'वेगिज हेढिल्ला दो बंधति 'त्ति ] संज्ञी अने असंज्ञी ए बन्ने वेदनीयने बांधे छे, कारण के, अयोगी अने सिद्ध-र बन्ने सिवायना दरेक जीवो वेदनीयना बंधक होय छे. [' उवरिले भयणाए 'त्ति ] उपरनो एटले संज्ञी नहि अने असंज्ञी नहि अर्थात् सयोगिकेवली, अयोगिकेवली अने सिद्ध, ते त्रणमां जो सयोगिकेवली होय तो वेदनीय बांधे, जो वळी अयोगिकेवली अने सिद्ध होय तो न बांधे माट भिजनाए बांधे' एम कर्जा छे. [ 'आउगं हेछिल्ला दो भयणाए 'त्ति ] संज्ञी अने असंज्ञी कदाच आयुष्य बांधे, कारण के, अन्तर्मुहूर्तमा ज आयुष्य, बंधन थाय छे(?). [ ' उवरिल्ले न बंधइ ति] उपरना एकले केवली अने सिद्ध, ए बन्ने आग्रुष्य न बांधे. भवसिद्धिकद्वारमा [ ' भवसिद्धिए भयणाए ' त्ति ] जो भवसिद्धिक वीतराग होय तो ते ज्ञानावरण न बांधे अने तदन्य-उद्मस्थ-होय तो ते छद्मस्थ-भव्य बांधे माटे 'भजनाए बांधे' एम कडा . [ 'नोभवसिद्धिअ-नोनो अभ सिद्धिक अभवसिद्धिए ' वि] भवसिद्धिक नहि अने अभवसिद्धिक नहि ते तिच, अने ते न बांधे. [' आउयं हेछिल्ला दो भयणाए ' तिभव्य अने अभव्य, आयुष्य-बंध काळे आयुष्य बांधे अने बीजे काळे तो न बांधे, माटे 'भजनाए बांधे' एम का ले. [ ' उवरिले न बंधइ ' ति] सिद्ध नथी दर्शनद्वार. बांधतो. दर्शनद्वारमा [ ' हटिला तिन्नि य भयणाए ' त्ति ] चक्षुर्दर्शनी, अचक्षुर्दर्शनी अने अवधिदर्शनी ए बधा जो छद्मस्थ वीतराग होय तो ज्ञानावरण नथी यांचता, कारण के, तेओ वेदनीयना ज बंधक होय छे, जो तेओ सराग होय तो बांये छ, माटे कयु छ के, भजनाए वांधे केव-दर्शनी. छ' [' उवरिले न बंधइ 'त्ति ] भवमा रहेलो केवलदर्शनी अने सिद्ध ते बन्ने नथी बांधता, कारण के, तेओने कर्म बंधना हेतुओ होता नथी. [: वेयणिज हेडिल्ला तिन्नि बंधति ' ति] प्रथम त्रण दर्शनवाळा छद्मस्थ वीतरागो अने सरागो, तेओ वेदनीय बांधे ज छे. [' केवलद'सणी भयणाए 'त्ति ] केवलदर्शनवाळो सयोगी केवली बांधे छे अने अयोगिकेवळी अने सिद्ध वेदनीय कर्म नथी बांधता, माटे । भजनाए बांधे छे' एम का छे. पर्याप्तक द्वारमा [''पज्जत्तए भयणाए ' ति] वीतराग अने सराग ए बन्ने पर्याप्त होय छे. तेमां वीतराग पर्याप्त ज्ञानावरण जोन बांधे अने सराग पर्याप्त तो बांधे माटे का छे के, भजनाए बांधे.' ['नोपजातय-नोअपज्जत्तए न बंधइ ' ति] नोपर्याप्त अने नो अपर्याप्त एटले सिद्ध न बांधे. [ ' आउग हटिला दो भयणाए 'त्ति ] पर्याप्त अने अपर्याप्त ए. बन्ने आयुष्यना बंधकाळे आयुष्य बांधे अने र अन्यदा न बांधे, माटे भजना कही छे. ['उबरिले न' इति] सिद्ध न बांधे. भाषकद्वारगां [ 'दो वि भयगाए 'त्ति ] भाषालब्धिवाळो ते भाषक अने तेथी अन्य ते तो अभाषक, ते बेमां वीतराग भाषक शनावरणीय न बांधे, अने सराग भाषक तो बांधे अने अभाषक ते तो अयोगी विग्रहगति, अने सिद्ध ते बन्ने न बांधे तथा विग्रहगतिने प्राप्त एवा अभाषक पृथिवी वगरेना जीवो बांधे माटे ['दो वि भयणाए '] ' बन्ने भजनाए बांधे। भवरितिकवार, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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