Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha

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Page 324
________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रह शतक ६.-उद्देशक ५. तेज पूर्वोक्तनी साथै दर्शावे छे के, [' विमाणाणं' इत्यादि ] गाथार्ध-अडधी गाथा, तेमां विमाननुं प्रतिष्ठान दर्शव्यु ज छे अने बाहल्य एटले विमानोनी पृथिवी स्थूलपणुं तो दर्शाववानुं छे, ते बाहल्य २५०० योजन छे अने तेनी उंचाइ तो ७०० योजन छे. वळी, एओ आवलिकामा विमानोना आकार, प्रविष्ट न होबाथी जुदा जुदा प्रकारना आकारे रहेला छे अने जेओ आवलिकामां प्रविष्ट होय तेओ तो गोळ, त्रिकोण के चतुष्कोण एवा आकारना जीवाभिगम, भेदथी त्रण आकारवाळां ज होय छे. [ 'बंभलोए ' इत्यादि. ] ब्रह्मलोकमां रहेनारां विमानो परत्वे अने देवो परत्वे जे वक्तव्यता ' जीवाभिगम' सूत्रमा कही छे ते वक्तव्यता ते लोकांतिक देवोमा जाणवी-अनुसरवी, ते वक्तव्यता क्यां सुधी जाणवी ? तो कहें छे के, [' जाव' इत्यादि.] कांइक थोडी ते वक्तव्यता-आ प्रमाणे छ:-" हे भगवन् ! लोकांतिक विमानोना केटला वर्णो कह्या छ ? हे गौतम! लोकांतिक विमानो त्रण वर्णोवाळो कसा छे, लाल वर्णवाळां, हरिदा-हलदर-ना वर्णवाळां अने शुक्ल वर्णवाळां, ए प्रमाणे प्रभावडे नित्य आलोक-प्रकाश-वान छे, गंधवडे इष्ट गंधवानां छ, ए प्रमाणे इष्ट स्पर्शवाळां, ए प्रमाणे सर्व रत्नमय ते विमानो छे, ते विमानोमा देवो समचतुरस्रसंस्थानवान, आई मधूक-लीलामहुडा-जेवा वर्णवाळा अने पद्मलेश्यावाळा छे, हे भगवन् ! ते लोकांतिक विमानोमां सर्व प्राणो, भूनो, जीवा, अने सत्त्वो पूर्व पृथिवीकायिकपणे, जलकायिकपणे, अमिकायिकपणे, वायुकायिकपणे अने वनातिकायिकपण तथा देवपणे, देवीपणे पूर्व उत्पन्न थयां छ?" 'हा' इत्यादि तो र मूळमा लखेलं ज छ [ ' केवईयं ' ति ] केटली अबाधावडे एटले केटला अंतरवडे लोकांत कह्यो छे. १.जूओ, जीवाजीवाभिगम सूत्र, बीजो वैमानिक उद्देशक पृ० ३९४ थी ४०६ (दे० ला०) तथा जूओ प्रशापना सूत्र, बीजु स्थानपद, ब्रह्मलोक-देवस्थानाधिकार-पृ० १०३ (आ० स०):-अनु० २. 'केवदयं ' रूप आर्ष छे, कारण के, एने ' केवयाए ' ने बदले मूकबामां आवेलं छे:-श्री अभय बेडारूपः समुद्रेऽखिलजलचरिते क्षारभारे भवेऽस्मिन् दायी यः सद्गुणानां परकृतिकरणाद्वैतजीवी तपस्वी । अस्माकं वीरवीरोऽनुगतनरवरो बाहको दान्ति-शान्त्योः-दयात् श्रीवीरदेवः सकलशिवसुखं मारहा चाप्तमुख्यः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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