Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha

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Page 345
________________ शतक ६.-उद्देशक ८. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र, समुद्राऽभिधायकतया नेतव्यानि शुभनामानि पूर्वोक्तानि, तथा 'उद्धारो'त्ति द्वीप-समुद्रेषु उद्धारो नेतव्यः. स च एवम्:-दीवसमुद्दा णं भंते ! केवइया उद्धारसमएणं पन्नत्ता ? गोयमा ! जावइया अडाइजाणं उद्धारसागरोवमाणं उद्धारसमया, एवइया दीव-समुदा उद्धारसमएणं पन्नत्ता.' येन एकैकेन समयेन एकैकं वालाप्रमुद्रियतेऽसौं उद्धारसमयः, अतस्तेन. तथा ' परिणामो' त्ति परिणामो नेतव्यः द्वीप-समुद्रेषु, स च एवम्:-' दीव-समुद्दा णं भंते ! किं पुढविपरिणामा, आउपरिणामा, जीवपरिणामा, पोग्गलपरिणामा ? गोयमा ! पुढविपरिणामा वि.' इत्यादि. तथा 'सव्वजीवाणं' ति सर्वजीवानां द्वीप-समुदेषु उत्पादो नेतव्यः, स चैवम्:-दीवसमुद्देमु णं भंते ! सचे पाणा, भूआ, जीआ, सत्ता पुढाविकाइयत्ताए, जाव-तसकाइयत्ताए उववनपुब्बा ? हता, गोयमा ! असह, अदुवा अणंतखुत्तो' ति. भगवत्सुधर्मखामिप्रणीते श्रीभगवतीसूत्रे षछाते अष्टम उद्देशके श्रीअभयदेवसूरिविरचितं विचरणं समाप्तम्, ३. पूर्वे जीवोर्नु प्ररूपण स्वधर्मथी-पोताना धर्मथी-कर्यु छे, हये ए स्वधर्मथी ज लवण समुद्रने प्ररूपता कहे छे: [ 'लवणे णं' इत्यादि.] लवण समुद्रनुं [' उस्सिओदए ' ति] उच्छितोदक-ऊर्ध्व वृद्धिप्राप्त पाणीवाळो-छलकतो, ते लवण समुद्रनी जलवृद्धि अधिकता साथे १६००० योजन छे. उच्छन्तुं पाणी. ["पत्थडोदए ' ति] प्रस्तृतोदक-समजलवाळो, [ 'खुभिअजले 'त्ति ] वेला-वळ-ना आववाथी लवण समुद्र क्षुब्धपाणीवाळो है. अने तमा ए वेळ तो महापाताळकलशमा रहेला वायुना क्षोभथी आवे छे. [ 'एतो आढत्तं ' इत्यादि.] आ सूत्रथी मांडीने जम : जीवाभिगम ' स्त्रमा जीवाभिगम. का छे तेम ते जाणवू. ते आ छे:-हे भगवन् ! जेम लवण समुद्र उठळता उदकवाळो छे पण समजल नथी अने क्षुब्धजलवाळो छ पण अक्षुब्धजळवाळो नथी तेम बहारना समुद्रो शुं उच्छळता जळयाळा छे ? समजळ्वाळा छ ? ; क्षुब्धपाणीवाळा छ ? के अक्षुब्ध पाणीवाळा छ ?, हे गौतम ! बहारना समुद्रो उच्छळता पाणीवाळा नथी पण समजळवाळा छे अने क्षुब्धजळवाळा नथी पण अक्षुब्धजलवाळा छे. पूर्ण, पूर्णप्रमाण, वोलट्टमान, वोसट्टमान अने समभर घटपणे रहे छे. हे भगवन् ! लवण समुद्रमा घणा मोटा मेघो संस्वेदे छे, संमूछे छे अने वर्षण वर्षे छ ?, हा, (गौतम ! ) तेम थाय छे; हे भगवन् ! जेम लवण समुद्रमा घणा मोटा मेघो छ तेम बहारना समुद्रोमां पण मोटा मेघो छ ?, (हे गौतम ! ) आ बहारना समुद्रो. अर्थ समर्थ नथी, हे भगवन् ! ते क्या हेतुथी दम कहो छो के, बहारना समुद्रो पूर्ण यावत् समभर घटपणे रहे छे ?, हे गौतम ! बाहिरना समुद्रोमा घणा उदकयोनिक जीवो अने पुद्गलो उदकपणे अपक्रम छ, व्युत्क्रम छे, च्यवे छे, अने उत्पन्न थाय छे" बाकी- तो लखेलुज छे, अने आ बधुं स्पष्ट छे. [ ' संठाणओ' इत्यादि.] जेओनु स्वरूप-विधान-एक चक्रवालरूपे छे ते 'एकविधविधान ' कहेवाय, ए समुद्रो विस्तारथी चक्रवाल. अनेक प्रकारना स्वरूपवाळा छ, शाथी छ ? तो कहे छे के [ 'दुगुण-इत्यादि. ] अहिं यावत्-शब्द मूकवाथी अधिक पाठ आ प्रमाणे जाणवोः- द्विगुण. "ए समुद्रो प्रविस्तरता प्रविस्तरता छ, घणां उत्पल, पन, कुमुद, नलिन, सुंदर अने सुगंधिवाळा पुंडरीक महापुंडरीक, शतपत्र अने सहस्रपत्रना केसरोवडे अन फुल्लोवंडे उपपेत छ अर्थात् उत्पलादिना केसरोवडे अने फुल्लोबडे ते समुद्रो युक्त छ, [' उन्भासमाणवीइय' ति] अर्थात् ए समुद्रोना तरंगो-वीचिओ--अवभासमान छ, [ 'सुभा नाम 'त्ति ] स्वस्तिक अने श्रीवत्स वगेरे सुंदर शब्दो, [ 'सुभा रूव ' त्ति ] शुक्ल अने शभ नाम-रूप. पीत वगेरे सुंदर रूपना सूचक शब्दो, अथवा देवादिना सुंदर रूप वाचक शब्दो, [ 'सुभा गंध ' त्ति ] सुरभि-सारा गंधना वाचक शब्दो अथवा शुभ गंध. सारा गंधवाळा कपूर वगैरे पदार्थोना वाचक शब्दो [ ' सुभा रस 'त्ति ] मधुर-गळ्यो-वगेरे रसना सूचक शब्दो अथवा साकर वगेरे रसवाळा शभ रस. पदार्थीना वाचक शब्दो, [ 'सुभा फास ' ति] अने मृदु-पोचो-बंगरे स्पर्शाना सूचक शब्दो अथवा मृदु स्पर्शवाळा नवनीत वगैरे पदार्थोना शभ स्पर्श. वाचक शब्दो समुद्रोनां नाम तरीके वपराय छ अर्थात् संसारमा जेटलां सारां सारां नामो छे ते बघांनो उपयोग समुद्रोनां नाम तरीके थाय छे. ['एवं नेयव्वा सुभा नाम 'त्ति ] ए प्रमाणे ए बधां पूर्वोक्त शुभ नामोने द्वीपना अने समुद्रनां वाचकपणे जाणवा. तथा, [ ' उद्धारो' चि] उद्धार. द्वीपोमां अने समुद्रोमां उद्धार लेवो-कहेवो,-ते उद्धार आ प्रमाणे छे:-हे भगवन् ! द्वीपो अने समुद्रो द्धार समयवडे केटला कह्या छे ?, हे गौतम!' अड्डी उद्धार सागरोपमना जेटला उद्धारसमयो थाय एटला द्वीपो अन समुद्रो उद्धार समयवडे कह्या छे." जे एक एक समये एक एक वाळनो अग्रभाग उद्धराय-बहार कढाय ते समय उद्धार समय कहेवाय, ते वडे, तथा, [ 'परिणामो ' त्ति ] द्वीपोमा अने समुद्रोमा परिणाम जाणवो, परिणाम, ते आ प्रमाणे छ:-" हे भगवन् ! द्वीपो अने समुद्रो शुं पृथिवीना परिणामवाळा छे ? पाणीना परिणामवाळा छे ? जीवना परिणामवाळा छ ? के पुदलना परिणामवाळा छे ? हे गौतम | पृथिवीना परिणामबाळा पण छे, इत्यादि. तथा ['सव्वजीवाणं' ति] द्वीपोमां अने समुद्रोमां सर्वजीवोनो उत्पाद कहेवो, ते आ प्रमाणे छ:-" हे भगवन् ! द्वीपोमा अने समुद्रोमां सर्व प्राणो, भूतो, सत्त्वो अने जीवो पृथिवीकायिकपणे यावत्- उत्पाद. घसकायिकपणे पूर्व उत्पन्न थएला छे ? हा, गौतम ! अनेकवार अथवा अनंतवार उत्पन्न थएला छे." बेडारूपः समुद्रेऽखिलजलचरिते क्षारभारे भवेऽस्मिन् दायी यः सद्गुणानां परकृतिकरणाद्वैतजीवी तपस्वी । अस्माकं वीरवीरोऽनुगतनवरो वाहको दान्ति-शान्त्योः-दद्यात् श्रीवीरदेवः सकलशिषसुखं मारहा चासमुख्यः॥ १. जूमो जीवाजीवाधिगम नमी प्रतिपत्ति बीजी-(५० ३२०-३२१-७० ) अनु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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