Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 295
________________ शतात. ६...उद्देशक ३. भगवसुधमस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. २८५ ए प्रमाणे कयुं छे. [ वेयणिज भासए बंधइ ' ति ] भाषक जीव वेदनीय बाधे छे. कारण के, सयोगिना अवसानवाको पण भाषक सवदनीयन बाँधे छे. [ ' अभासए भयगाए ' ति ] अयोगी अने सिद्ध ए बन्ने अभाषक होय छे, अने तेओ बांधता नथी तथा पृथिवी वगरे अभाषक तो भाषक. बांध छे माटे ए प्रमाण भजना छे. परित्तद्वारमा [ 'परित्ते भयणाए ' ति ] परीत एटले एक शीखाळो जीव अथवा अल संसारखाळो जीव ते पारना वीतराग पग होय अने तेवो परीत वीतराग, ज्ञानावरणीय कर्म बांधतो नथी अने सराग परीत तो बांधे -ए प्रमागे भजना छे. [ अपरित्ते बंधइ ' ति ] अपरित्त एटले साधारणकाय अर्थात् जे जीव अनंतजीवो साधे एक शरीरमा रहेतो होय ते अश्या अनंत सस:वाळो ते अपरित्त- अपरित्त. ते बन्ने बांधे छे. [ 'नोरित-नोआरिते न बंध' ति] परित नहि ते. परित. नहि अर्थात् .सिद्ध बांधतो नथी. [ आउयं परित्तो वि, नोपरित्त-नोअपरित, आरित्तो वि भयणाए 'त्ति ] प्रत्येक शरीरादि जीव आयुष्यना धकाळे ज आयुष्य धेि छ पण सर्वदा नथी बांधतो माटे ' भजना' कही छे. सिद्ध तो बांधे ज नहि, माटे कगु छे के, [ 'नोपरित-' इ.यादि ] ज्ञानद्वारमा [ ' हेहिल्ला चनारि भयणार 'लि) आभिनिगेधिक ज्ञानी कोरे शानद्वार. चार ज्ञानीओ वीतरागावस्थामा ज्ञानावरणीयने बांधता नथी अने तेना तेज च र ज्ञानीओ सरागावस्थामां तो ज्ञान,वरणीय कर्मने बांध छे, ए प्रमाणे मयादि बार शानभजना छे. [ ' वेयणिजं हेहिला चत्तारि वि बंधति 'त्ति ] हे.ना चारे पण वेदनीयने बांये छे, कारग के, छद्मस्थ वीतरागो पण वेदनीयना बंधक वाळा वीतरागो. छ. [ 'केवलणाणी भयणाए 'ति] केवलज्ञानी भजनाए बांधे छे, कारण के, सयोगिकेवळी वेदनीयना बंधक छे अने अयोगिकेवळी तथा द्धि वेदनीयना अंबंधक छे मारे मजना कही छे. योगद्वारमा [ ' हेछिल्ला तिणि भय गाए ' ति] मन, वचन अने काययोगिओ, जओ उपशांतमोह गुण- योगदार. स्थानकंगळा अने क्षीगमोह गुगरथानकपाळा सयोगिक पलि भो छ तेओ ज्ञानापरण बांधता न पी अने तान्य तो बांधे छ, माटे तेमां भजना कही छे, [ 'अजोगी न बंधइ ति ] अयोगी एट अयोगिवली अने सिद्ध बांधता नथी. [ 'वेयणि हेहिला बंधाते 'त्ति ] मनोयोगी वगेरे बांधे छे, कारण के सयोग जीवो वेदनीयना बंधक छे, [ ' अजोगी ण बंधइ ' ति] अयोगी बांधता नथी, कारण के, अयोगी र्मा कोना अबंधक छे. उपयोग. द्वारमा [ · अवि भयणाए ' त्ति ] सयोग अने अयोग, ए यन्नेने साकार अने अनाकार उपयोग होय छे, ते पन्ने उपयोगनां पण सयोग जीवो उपयोगदार-7 करज्ञानावरणादि प्रकृतिओने यथायोग वांधे छे अने अयोगजीवो तो नथी बांधता, एम भजना कही छे. आहारकद्वारमा [ 'दो वि भयणाए ' ति ] अ कार उपयोग. वीतराग पण आहारक होय छे अने ए ज्ञानाधरण बांधतो नथी, सराग आहारक तो बांधे छे, ए प्रमाणे आहारक भजनावडे धि छे, तथा अनाहारक अहारका र. केवली अने विग्रहगतिने प्राप्त जीव ए बन्ने अनाहारक होय छे-तेमां केवली न बांधे अने बीजो तो धेि छे, ए प्रमाणे अनाहारक पण भजनावडे बांधे छे, [ 'वेयणि आहारए बंधइ ' ति ] आहारकजीव, वेदनीय बांधे छे, कारण के, अयोगी सिवायना दरेक जीवो वेदनीयना बंधक छे. [ · अणाहारए भयणाए ' ति ] विग्रहगतिने प्राप्त जीव, समुद्घात प्राप्त केवली, अयोगी अने सिद्ध ए क्धा अनाहा'क होय छे, तेमां विग्रहगति प्राप्त जीव अने समुद्घातगत केवळी, ए वन्ने वेदनीयने वधि छे अने अयोगी अने सिद्ध नथी धिता-ए. प्रमाणे भजना छे. ['आउए आहारए भयगाए' त्ति ] कारण के, आयुप्यना बंधकाळ ज आयुष्य धाय छे अने वीजा काळे तो तेनुं बंधन थतुं नथी, माटे भजना छे. [ ' अणाहारए ण बंधइ ' ति] अनाहारक बांधतो नथी, कारण के, विग्रह गतिने प्राप्त जीवो पण आयुष्यना अधिक छे. सूक्ष्मद्वारमा [' दायरे भयणार' ति] वीतराग सूक्ष्मद्वार, हादरो, ज्ञानावरणना आंधक छे अने: सराग बादरो ज्ञानावरणना धक छे माटे भजना. कही छे. वळी, सिद्ध तो अधिक होवाथी कहे छे के, [ 'नोसुहुम-' इत्यादि.] [ 'आउए सुहुमे, दायरे भय गाए 'ति ] कारण के, काळे बंधाय छे अने वीजे काळे तो नथी धातुं माटे नोसूक्ष्म-नो बादर. भजना कही छ, चरमद्वारमा [' अढवि भयगार 'त्ति ] जनो चरम-छेलो-भव थवानो छे तेरे अहिं चरम कहेवो, अने जेनो छेहो भव थवानो चरमद्वार. वथी एटले जे चरम जेवो नथी तने अचरम कहियो तथा सिद्धने अचरम कहयो, कारण के, सिद्धने हवे-सिद्ध थया पछी-छेल्लो भव नथी तेमां अच म. चरम जीव यथायोग आठे कर्म प्रकृतिओने पण बांधे छे अन चमरजीवन अयोगिपणु हेय अर्थात् जो चरम जीव अयोगी होय तो नथी बांधतो ए प्रमाणे भजना छे, अचरम जो संसारी लइए एटले अभव्य लइए तो ते अचरम आठे पण कर्म-प्रकृतिओने बारे छे अने जो अचरम एटले . 'सिद्ध ' लइए तो ते कोई कर्म-प्रकृतिन नथी बांधतो-ए प्रमाणे अहीं पण भजना जाणवी. वेदकोनुं अल्पबहुत्व. ३३. प्र०-ऐएसिणं मंते ! जीवाणं इत्थीवेयगाणं, परिस- ३३ प्र०--हे भगवन् ! स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुंसकवेदक वेयगाणं, नपुंसगवेयगाणं, अवेयगाण य.कपरे कपरेहितो? अने अवेदक, ए बधा जीवोमां क्या क्या जीच, कोना कोनाथी अल, बहु. तुत्य अने विशेषाधिक छे! ३६. उ०-गोयमा ! सम्वत्थोवा जीवा परिसवेयगा, ३३ उ०-हे गौतम ! सौथी थोड। पुरुषवेदक जीवो छे, इथिवेयगा. संखेज्जगुणा, अवेदगा अणतंगणा, नसगयेयगा तेनाथी संख्येयगुण स्त्रीवेदक छे, अवेदक अनंत गुण छे अने अणंतगुणा.. नपुंसकवेदक अनंतगुण छे. --एएसि सव्वंसि पदाणं अप्प-बहुगाई उचाई गज्याई, जाव- -ए बधा पदोनों अरूपबहुत्वो कहेवां यावत् सौथी थोडा सव्वत्थोवा जीवा अचरिमा, चरिमा अगतगुणा. अचरम जीयो छे अने चरम जीवो अनंतगुण छे. १. मूलच्छाया:-एते भगवने ! 'जीवानां स्त्रीवेद कानाम् , पुरुषोदकाम् , नपुंसकवेदकानाम् , अवेद हानां च कतरे कतरेभ्यः ? गौतम ! स्तोका जीया पुरुषवेदकाः, स्त्रीवेद।।: संख्येयगुणाः, अवेदका अनन्तगुणाः, नपुमकवेदका अनन्तगुणाः एतेषां सर्वेषां पदानाम् अल्प- बहुल कानि उच्चारयितव्यानि, यावत्-सर्वस्त का जीवा अचरमः, घरमा अनन्तगुणा:-अनु० . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358