Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha
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२४०
६. उ० गोगमा सिवा पति, तो हायति, अपडिया
वि.
७. प्र० - जीवा णं भंते ! केवतियं कालं अवट्टिया ?
औरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
७. उ०- सबुद्धं.
८. प्र०रया में भंते! केवति का ८. उ०- गोषमा ! जगं एवं समयं कलियाए असंखेज्जइभागं. एवं हायंति वा.
९. प्र० ] मेरइया मते कि अपट्टिया
गं
९. उ०- गोषमा ! जहणेगं एवं समयं उप पडवीसं ता. एवं सत्त वढवसु वडुंति, हायंति - भाणि यच्या; परंतु हमें पाजारचणपनाए पुढ अयालीसं मुहुता, सकरप्पभाए चउद्दत राइदिया णं, मालुमनाए मासो, पंरुणभाए दो मासो, धूमप्यभाए चचारि
1
मासा, तमाए अट्ठ मासा, तमतमाए बारस मासा,
पति ? उकोसेणं आ
असुरकुमाराविति हायंति जहा मेरइया. अपट्टिया जहणं एकं समयं उकोसेणं अडचचालीस मुहता. एवं दस विद्या वि.
एगिदिया पति वि हायति पि, अपट्टिया चि. एहि तिहि पिजर्ण एवं समयं उसेणं आवलियाए असंखे इभागं.
- वे तिंदिया बडृति, हायंति, तहेव, अवद्विया जहणेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो अंतोमुहुत्ता एवं जात्र - चउरिदिया. अवसेसा सन्धे वति, हायंति, तहेव, अवट्ठियाणं णाणत्तं इमं तं जहा संमुच्छिमदियतिरिक्स जोगियाणं दो अंतोसुदुता, गब्भवकंतियाणं चउन्नीसं मुहुत्ता, संमुच्छिमणुस्साणं अद्वचत्ताछोसं सुहुत्ता, गव्मवतियम गुस्सा चडवी से मुहुत्ता, पाणमंतर जोइ सोइम्मी-सा अपपाठी मुदुवा, सकुवारे अट्ठारस राई दियाई चालिस मुवा, माहिदे पउपी - य मुहुत्ता,
चउवीसं
राईदियाई
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शतक ५. - उद्देशक ८.
६. उ० - हे गौतम ! सिद्धो वधे छे, घटे नहि अने अत्रस्थित पण रहे छे.
७. प्र० - हे भगवन् ! केटला काळ सुची जीवो अवस्थित
रहे
७. उ०—( हे गौतम ! ) सर्वकाळ सुधी.
८. प्र०- हे भगवन् ! नैरयिको केटला काळ सुधी व छे? ८. उ०- हे गौतम! जयम्यधी एक समय सुश्री अने टाकथी आला असंख्य भाग सुधी नैरधिक जीनो बधे छे, एप्रमाणे घटवाना काळ पण तेटला जाणवा.
९. प्र० हे भगवन् ! नैरयिको केटला काळ सुधी अवस्थित रहे छे ?
९. उ०- हे गौतम! जघन्ये एक समय सुधी अने उत्कृष्टथी चावीश मुहूर्त सुधी नैरयिको अवस्थित रहे छे. ए प्रमाणे खाते पण पृथ्वीओनां व छे, घडे छे, एम कहे विशेष ए के, अवस्थितोमां आ भेद जाणो:- ते जेमके, रत्नप्रभा पृथ्वीमां अडतानीन मुहूर्त शर्कराम चंद रात्रि दिवस, बालुकाप्रथाम एक मास का मास, धूमप्रभागां चार मास, समप्रभाम बे आठ मास, अने तमतमाप्रभामां बार मास अवस्थान काळ छे. जैम नैरपिको माटे प एम अमुरकुमारो पण बधेछे, घंटे छे. अने जकये, एक समय सुधी अने उत्कृष्टधी अडताळी मुर्ती सुधी अवलित रहे छे, ए प्रमाणे इसे प्रकारना पण भवनपति कहेवा.
— एकेन्द्रियो वधे पण छे, घटे पण छे अने अवस्थित पण रहे छे, एत्रणे बड़े पण अधन्ये एक समय अने उत्कृष्टे आवलिकानो असंख्य भाग, एटलो काळ जाणव
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- वे इंद्रियो, अने त्रे इंद्रियो ते ज प्रमाणे बधे छे, घटे छे; अने तेओनुं अवस्थान जघन्ये एक समय अने उत्कृष्टे के अन्तर्मुहूर्त सुधीनुं जाणवुं. ए प्रमाणे यावत्- चउरिंद्रिय सुबीना जीवो माटे जाणवु. शकीना बधा जीयो केटो व फेटलो काळ घंटे के ए काळ ले, बधुं तथैव - पूर्वनी पेठे जाणवुं अने तेओना अवस्थान काळमां आ प्रमाणे नानाव- मेद छे-से जेमके, सम्मूर्च्छिमपंचेंद्रिय तिर्यंचयोनिकोनो अवस्थान फाळके, गर्भ पंचेंद्रिय चि योगेफोनो अपस्थान फाळ कोश मुहूर्त छे, सम्मूमि मनुष्योनो
१. मूलच्छायाः गतम ! सिद्धा वर्धन्ते, नो हीयन्ते, अवस्थिता अपि जीवा भगवन् ! कियन्तं कालम् अवस्थिताः ? सर्वाऽद्धा. नैरयिका भगवन! कियन्तं कालं वर्धन्ते ? गौतम । जघन्येन एकं समयम्, उत्कृष्टेनाऽऽवलिकाया असंख्येयभागम् एवं हीयन्ते वा नैरयिका भगवन् ! कियन्तं का अवस्थित रामजन्येन एवं समयम् अनति एवं सासु आदि चीते हीयन्ते मागितल्यावरअवस्थितेषु इदं नानात्वम् तद्यथाः- रत्नप्रभायां पृथिव्याम् अष्टचत्वारिंशत् मुहूर्तः, शर्कराप्रभायां चतुर्दश रात्रिंदिनानि, वालुकाप्रभायां मासः, पत्रभायां द्वैा मासा, धूमप्रभायां चत्वारो मासाः तमायाम् अष्ट मासाः तमस्तमायां द्वादश मासाः असुकुमारा अपि वर्धन्ते, हीयन्ते यथा मैरा अवस्थित जपन्वेन एवं समयम् मुती एवं दशविधा अ. एकेन्द्रिया
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अपि एमिरन एवं समय उन आलाय अश्यभागम् हि-जीन्द्रिया वर्धन्ते हीयते तथेव अवस्थितानन्देन एक समयम्, उत्कृष्टेन द्वैा अन्तर्मुहूर्त एवं यावत् चतुरिन्द्रियाः अवशेषाः सर्वे वर्धन्ते, हीयन्ते तथैव, अवस्थितानां नानात्वम् इदम् तद्यथाःसंमूर्तिमग्योनि गर्भाः मुहूर्त मूच्छिष्णाम् अस्यारिद्मुती गर्म न्तिकमनुष्याणाम् चर्तुविशतिर्मुहूर्तः, वानव्यन्तर- ज्योर्तिषिक साधर्मे शानेषु अष्टचत्वारिंशद् मुहूर्तः सनत्कुमारेऽष्टादश रात्रिंदिवानि चत्वारिंशच मारादिनामि
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