Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha
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सतक ६.-- उदेशक २.
२० र सरीराई आहारैति ?
मंते कि एसई
आ.
उ०- गोयमा पुग्वभावण्णवणं पडुच एगिदियसरी राई पि आहारेंति जादियामि दिवसरात
• एवं जाव थणियकुमारा.
स्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
कि विगेरे अने एकेंद्रियादिन
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प्र० पुडविकाइयाचे पुच्छा !
उ०- गोयमा ! पुत्रभावपण्णवणं पडुच एवं चेव, पडुणभात्रवण्णपच नियम एवंविसरीरात बेदिया तुम्वापच एवं चैव पडुप्पणभावपण्णवणं प० नियमा बेइंदियाणं सरीराति आ. एवं जाव चउरिंदियां ताव पुत्रभावपण्णवणं पडुच्च एवं पदुप्पण्णभाव नियमा जादा सरीरा आहारैति सेसं जहा नेरइया, जाव वेमाणिया.
०
उ०- गोयमा ! लोमाहारा, नो पक्खेवाहारा. एवं एगिंदिया, सव्वदेवा दिजाब मा माहारा डिपा
हे भगवन्धको एकदिवाला जीवन शारी साय यादव जीयोगां शरीखा ?
देति पूर्वभावापानी छाए अर्थात् पूर्वमवनी अपेक्षाए ओरको एकदिन शरीरीने पत्र खाय के अने वा पांच इंद्रियवाळा जीवोनां शरीरोने पण खाय छे. वळी, वर्तमान भावनी अपेक्षानी अपेक्षा तो रोओ पांचवा जीयोगां शरीरो ज खाय छे. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारो सुधी समजी लेवानुं छे.
. २६७
चिनीकाविक संबंध पूर्वनोन करवान े. कोनी पूर्व दसानी अपेक्षा
पेठे समान के अने वर्तमान यानी अपेक्षा तो ते एक जीयोनं शरीरोने ज खाग के ए प्रमाणे यावत् चारइंद्रियवाळा जीवो सुधी समजवानुं छे अर्थात् वे, त्रण भने चार इंद्रियवाळा जीवो, पूर्वदशानी अपेक्षा नरविकोनी पेठे समाना के भने शर्तमान दशानी अपेक्षाए बे इन्द्रियवाय जीवो ने इन्द्रियवाळा जीवोनां शरीरोने खाय हे, त्रण इंद्रियवाळा जीवो, त्रणइंद्रियवाळा जीवोनां शरीरोने खाय छे अने चार मंत्रियवाळा जीवो, चार मंद्रियवाळा जीवोनां शरीरोने खाय छे-जे जीब जेटली जीवोनां शरीराने सामछेबाकी बधुं नैरयिकोनी पेठे समजवानुं छे अने ते प्रमाणे यावत्-वैमानिको सुधी
रोमाहार, प्रक्षेपाहार, ओजआहार भने मन- आहारःसोमाद्वारा सेवाद्वारा
,
हे भगवन्! शुं नैरयिको रोमाहार करनारा छे के प्रक्षेपाहार करनारा छे? हे गोतम देगी, रोमाहार करनारा के प्रोपाहार करनारा नही. ए प्रमाणे एक इंद्रियवाळा जीवो अने बधा देवो विषे पण समज. बेरंद्रियवाळा जीवोथी मांडी मनुष्य पर्यंतना प्राणिओ रोमाहार करनारा छे अने प्रक्षेपाहार करनारा पण छे.
प्र० - नेरइया णं भंते । किं ओयाहारा, मणभक्खी !
उ०- गोयमा ! ओयाहारा, णो मणभक्खी. एवं सव्वे ओरालिय सरीरा हे गौतम! तेओ ओजआहार करनारा छे-पण मनोभक्षी नथी. ए वि. देवास जानेमानिया ओयादारापि मणीप्रमाणे बधा भीहारिक शरीरधारी प्राणिक विधे समजवानुं वैमानिक जे ते मणभक्खी देवा, तेसि णं इच्छामणे रुमुप्पज्जति' इच्छामो णं मणभक्खणं करिए.' तए णं तेहिं देवेहिं एवं मणसीकते समाणे खिप्यामेव जे पोग्ला हा कंता जाव मणामा ते, तंसि भक्खणता परिणमंति से जहा नाम एसीया पोग्गला सीयं पप्प, सीयं चैव अवतित्ताणं विट्ठति, उसिणा पोलाउन एवमेव रोहिं
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देवेह मणीकर समाि
सुधीना बधा देवो पण ओजआहार करनारा छे अने मनोभक्षी पण छे जेओ मोभक्षी देवो छे तेअं ने 'अमे मनोभक्षण करव ने इच्छए छीए' ए प्रकारनुं इच्छ मन पेदा थाय छे अने ए मन पेदा थयुं के तुरत ज जे अणुओ ते देवोने इष्ट कांत यावत्-मन गमतां होय ते बधां तेओना (ते देवेना) मक्षरूपे आये छे परिणमे के जैम के शीत शीत पदार्थाने अधिक शीत थाय छे वा उष्ण पुद्रको उष्ण पदार्थने पामीने अधिक उष्ण थाय छे एज प्रमाणे ते देवो इच्छा मनद्वारा इच्छित अणुओने मेळवीने विशेष प्रसन्न थाय छे अने ए रीते मनोभक्षण कर्या पछी तुरत ज ते इच्छामन चाल्युं जाय छे अर्थात् देवो तृप्त यह जाय छे एटले पछी तेओने खावानी वृत्ति रहेती नथी. " ( प्रज्ञापना- पृ० ४९८५११-स० )
हे भगवन्नैरविको ओजआहार (जे आहार आसा शरीर द्वारा शके ते ओजआहार ) करनारा छे के मनोभक्षी छे ?
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