Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha

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Page 291
________________ शतक 8.-उदेशक ३. भगवासुधर्मस्मनिपाणीत भगवतीसूत्र, २६ २३. पृ० गावाणिज्ज, कम कि पज्जत्तओ बंधह, अ. २३. प्र हे समवन शुः पर्याप्त काशीव ज्ञानावरणीय कर्म पज्जत्तओ बंधइ, नोपज्जतय नोअपजाए बंधइ ? बांधे ! आर्याप्त जीव ज्ञानाचूरपति कर्म, संघ (फेमानोपर्याप्त अते दो अपर्याप्त जीव नानावस्या कर्म बांधे है २३. उ०-गोयमा । पज्ज़तए भयणाए, अपज्जतए बंध, २.३. ह. सातम् । सप्त जीत भजनाए ज्ञानावरणीय नोपज्जत्तय नोअपज्जत्तए न बधइः एवं आउग जाओ, आजगं कर्म बांधे, अपर्याप्त जीव ज्ञानावरग कमे बांचे अने नोपर्यात हविल्ला दो भयणाए, उवरिल्ले नबंधइ तथा नोअपर्याप्त एटले सिद्ध जीव ज्ञानावरणीय कर्म न बांधे, ए प्रमाणे आयुष्यने व ने साो कर्मप्रकृतिओ माटे जाणबुं अने आयुष्यने नीचेना बे-पर्याप्त अने आर्याप्त-भजनाए बांधे. अने उपरनो-नोपर्याप्त तथा नो अपर्याप्त-सिद्ध न बांधे. २४. प्र०-णाणावरणं किं भासए बंधह, अभासए० २४. प्र०-हे भगवन् ! शु भाषक जीव ज्ञानावरण. कर्म बांधे ? के अभाषक बधेि ? २४. उ०-गोयमा । दो वि भयणाए, एवं वेदणिज- २४. उ०-है गौतम ! बन्ने-भाषक अने अभाषक ए बजाओ सत्त वि. वेदणिज भासए बंधई, अभासए भयणाए. बने-जीव ज्ञानावरण कर्म भजनाए. बांबे, ए प्रमाणे वेदनीय वृर्जीने साते कर्मप्रकृतिओ माटे जाणवु अने वेदनीय कर्म भाषक बांधे तथा अभाषक वेदनीय कर्मने भजनाए बांधे. २५.प्र०-णाणावरणिज्ज किं परित्ते बंधइ, अपरित्ते बंधइ, २५. प्र०-हे भगवन् ! शुं परित्त-एक शरीरवाळो एक जीव, नोपरित्त-नोअपरित्ते बंधइ ! ज्ञानावरण कर्म बांधे ? अपरित्त जीव ज्ञानावरण कर्म बधे ! के - नोपरित्त तथा नोअपरित्त जीव ज्ञानावरण कर्म बंधे ! . २५. 10-गोयमा । परिते भयणाए, अपरित्ते बंधइ, २५. उ०-हे गैतम! परित्त जीव, भजनाए ज्ञानांवर ग नोपरित्तनोअपरित्ते न बंधइ; एवं आउगवजाओ सत्त कम्मण- कर्म बांधे, अपरित्त जीव ज्ञानावरण कर्म बांधे अने नो रित्त गडीओ, आउय परित्तो वि, अपरित्तओ वि भयगाए, नोपरित- तथा नोअपरित एटले सिद्ध जीव न बांधे, ए प्रमाणे आयुषने नोअपरित्तो न बंधइ. वर्जीने साते कर्मप्रकृतिओ माटे जाणवू, अने परित्त तथा अपरित ए बन्ने पण आयुष्य कर्मने भजनाए बांधे छे अने नोपरित तथा नोअपरित्त बांधतो नथी. २६. प्र०--णाणावरणिज कम्मं कि आभिणियोहियणाणी २६. प्र०—हे भगवन् ! शु आभिनिबोधिज्ञानी, श्रुतज्ञानी बंधह, सुयणाणी, ओहिणाणी, मणपज्जवनाणी, केवलणाणी! अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी के केवलज्ञानी ज्ञानावरण कर्म बांधे ! २६. उ०--गोयमा ! हेडिल्ला चत्तारि भयगाए, केवल- २६. उ०--हे गीतम! हेठळना चार एटले मतिज्ञानी, णाणी न बंधह, एवं पेयणिजवजाओ सत्त वि, वेयणिजं हेदिल्ला श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी अने मनःपर्यवज्ञानी ए चार भजनाए चत्तारि बंधति, केवलणाणी भयणाए. बांधे छे अने केवलज्ञानी बांधतो नथी, ए प्रमाणे वेदनीयने वर्जीने बाकीनी सात कर्मप्रकृतिओ माटे जाणी लेवु अने वेदनीय कर्मने हेटळना चार बांधे छे अने केवलज्ञानी भजनाए बांधे छे.. २७. प्र०--णाणावरणिनं किं मइअनाणी बंधइ, सुयअ- २७. प्र०—हे भगवन् ! शुमतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी अने बाणि बंधह, विभंगअनाणि बंधइ ? विभंगज्ञानी ज्ञानावरणीय कर्म बांधे ! २७. उ०--गोयमा! आउगवज्जाओ सत्त वि बंधति, आउगं २७. उ--हे गौतम ! आयुष्यने वर्जीने साते कर्म प्रकृतिओ भयणाए. बांधे अने आयुष्यने भजनाए बांधे. १. मूलच्छाया:-मानावरणीय कर्म कि पर्याप्तको बध्नाति, आयशप्तको बध्नाति, नोर्याप्तर-नोआर्याप्तको बध्नाति ! गातम ! पर्याप्तको भजनया, अपर्याप्तको वनाति, नोपर्याप्तक-नोऽपर्य प्तको न बघ्राति; एवम् अयुष्कवाः , आयुष्कम् अधस्तनी द्वा भजनया, उपरितनो न बन ति. भानावरणं किं भाषको बधाति, अभाषकः? गैातम ! द्वावपि भजनया, एवं वेदनी पर्जाः सप्ताऽपि. वेदनी भाषको बधाति, अभाषको भजनया. ज्ञानावरणीयं कि परीतो यनाति, अपरीतो बन्नाति, नोपरीत-नोआरी बनाति ? गौतम ! परी भत्रनया, आरीतो बनात, नोपरीत-नोऽपरी जो न बध्नाति; एवम् आयुष्कवाः सप्त कर्मप्रकृतयः, आयुष्क परीतोऽपि, आरीतोऽपि भवन या, नोरीत-नोऽपरितो न बध्नाति. मानावरणीयम् कर्म किम् आभिनिवाधिकज्ञानी बध्नाति, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यज्ञानी, केवलज्ञानी ? गैतम ! अबस्तनाश्चत्वारो भजनया, केवलज्ञानी न बध्नाति, एवं वेदनीयवर्जाः सप्ताऽपि, वेदनीयम् अधस्तनाश्चवारो बध्नन्ति, केवलज्ञानी भजनया. ज्ञानावरणीयं किं मत्यज्ञानी बनाति, श्रुताऽज्ञानी बध्नाति, 'भिरगज्ञानी बनाति ? गौतम! आयुष्कवीः सप्ताऽपि बध्नन्ति, आयुष्क भंजनया-अनु. www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International

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