Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha

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Page 266
________________ २५६ श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे शतक ६. - उद्देशक १. पृथिवी आ सप्तम उद्देशक छे. [' पुढवि 'त्ति ] रत्नप्रभा वगेरे पृथिवीनी वक्तव्यता माटे आठमो उद्देशक छे. [' कम्म ' त्ति ] कर्मबंधनुं निरूपण वर्मयसि करवा माटे आ नवमो उदेशक है. अने दशमा उद्देशामां अन्यतीर्थिकना मतने लगती वक्तव्यता है. वेदना, निर्जरा अने वस्त्र. १. प्र० से पूर्ण भंते! जे महावेदने से महानिबरे, जे महानिज्जरे से महावेदणे; महावेदणस्स य, अप्पवेदणस्स य से सेए वे परमनिबराए ! १. उ० - हंता, गोयमा ! जे महावेदणे एवं चैवं. २. प्र० - छट्टि -सत्तमासु णं भंते ! पुढर्वासु नेरइया महावेदणा ? २. उ० - हंता. महावेयणा. ३. प्र० - ते णं भंते ! समणेहिंतो निग्गंथेहिंतो महानिज्जरतरा ? ३. उ० - गोयमा ! णो तिणट्टे. ४. प्र० - सेकेणट्टेणं मंते ! एवं वुच्चइ: - जे महावेयणे, जाय-सत्यनिराए ४. उ० – गोयमा ! से जहा नामए दुवे वत्था सिया, एगे त्येकदमरागरचे, ए वत्ये संजणरागरचे एएस में गोगमा । दो परवाणं परे पत्थे दुदगंतराए चैव दुवामतराए चेव, दुपरिसम्मतराए चैत्र परे वा परये सुद्धोयतराए चेव, सुचायत राए चैव, सुपरिकम्मतराए चेव; जे. वा से वत्थे कद्दमरागरत्ते, मासे थे संजणरागरचे भगवं! तस्य णं जे से बस्थे कमरागरचे, से.णं (भंते!) वत्ये दुदोयराराए चेष, दुबामतराएं चैव दुष्परिकम्मतराएं चैव. एवागेव गोयमा ! नेरइयाणं पावाई फम्माई गाडी कवाई, चिकणीकवाई, सिलिडकियाई, खिलीभूताई भयंति संपगादं पि य णं ते वेदनं वेदेमाणा को महानिज्जरा, नो महापज्जवसाणा भवंति से जहा वा केइ पुरिसे अहिगरनि आउंडेमाणे महया महया सदेने, महया मया घोसेणं, महया मया परंपराघाएणं णो संचाएइ तीसे अहिगरणीए कई अहारापरे बोगले परिसाडिवर एवामेव गोवमा ! नेरइयाणं पावाई कम्माई गाढीकयाई, जान-णो महापज्जवसाणाई Jain Education International १. प्र० - हे भगवन् ! हवे एं छे के, जे महावेदनावाळो होय ते महानिर्जरावाळो होय अने जे महानिर्जरावाळो होय ते महावेदनावाळो होय अने महावेदनावाळामां तथा अस्यवेदनाचाळा ते जीव उत्तम छे जे प्रशस्त निर्जरावाळो छे ! - १. उ० हा गौतम! जे महावेदनावा छे, ते ज-ए प्रमाणे ज जाणवुं. २. प्र० - हे भगवन् ! छट्ठी अने सातमी पृथिवीमां नैरयिको मोटी वेदनावा छे! २. हा मोटी वेदनावाळा छे. ३. प्र० - हे भगवन् ! ते छ भने साथमी पृथ्वीमा रहेनारा नैरयिको, श्रमण निर्मन्थो करतां मोटी निर्जरावाळा छे ? ३. उ० – हे गौतम ! ते अर्थ समर्थ नथी अर्थात् तेम नथी. ४. प्र० - हे भगवन् ! ते एम शा हेतुथी कहेवाय छे के, महावेदनावाळो छे यावत् प्रशस्तनिर्जरावाळो ? जे ४. उ० - हे गौतम! ते जेमके; कोइ वे वस्त्रो होय, तेमांथी एक वस्त्र कर्दमना रंगधी रंगेलं होप, अने एक पत्र खंजनना रंगधी रंगेलं होप हे गौतम ए ये यत्रोयां वस्त्र दुधततरदुःखपी धोत्राय तेनुं दुश्वर-जेना डाओ दुःखेची जायते अने दुष्प्रतिकर्मतर - कष्टे करी जेमां चळफाट अने चित्रामण थाय तेनुं अर्थात् कर्दमना रंगी रंगेडा भने संजनना रंगधी रंगेला ए बे खोमां क्युं वस्त्र दुर्विशोभ्य छे अने क्युं वस्त्र सुधौतार, सुवास्यतर अने सुपरिकर्मतर छे ? हे भगवन् ! ते बेमां जे ए कर्दमना रंगथी रंम्युं छे ते यत्र दुर्खेततर, दुर्गाम्यतर अने दुष्पति मंतर छे, जो एन छे तो हे गौतम! एज प्रमाणे नैरयिकोनां पाप कर्मों गाढीहतगाढ करेला छे, चिक्कणीकृत - चिक्कणां करेला छे, श्लिष्ट करेला छे, सिलीमून-निकाचि करे छे माटे जतेक संप्रगाढ पण वेदनाने वेदता मोटी निर्जरावाळा नथी, मोटा पर्यवसानवाळा नथी; अथवा जेन कोइ पुरुष, मोठा मोठा शब्द पडे, मोटा मोटा घोष बढे, मोटा निरंतर - उपराउपर घातकडे एरणने कूटतो - एरण, उपर էլ १. भन्यो मादनः स महानिर्जरयो मानिस महावेदन, महावेदन अनवेदनस्य स यान यः प्रशस्त निर्जरा (य) कः ? हन्त, गौतम ! यो महावेदनः एवं चैव षष्ठी- सप्तम्योः भगवन् ! पृथिव्योः नैरयिका महावेदनाः ? हन्त, महावेदनाः ते भगवन् । श्रमणेभ्यो निर्ग्रन्थेभ्यो महानिर्जरतराः ? गौतम ! नो अयमर्थः तत् केनाऽर्थेन भगवन् । एवम् उच्यतेः यो महावेदनः यावत्-प्रशस्त निर्जरा( य ) कः ? गीतन 1 तद् यथा नाम द्वे वस्त्रे स्याताम् एकं वस्त्रं कर्दमरागरतम् एकं वस्त्रं खज्जनरागरतम् एतयोर्गौतम ! द्वयोः वस्त्रयोः कतर 3 दुतरम्यतर ब दुष्परिकर्मतर म कलर का तराम्यतरा मगर महानगर भगवन्तत्र यत्तव नगर सद्भगवन्) तर दुवैतर परफर्मर एकमेव पापाने कमी कृतकृतानि खीमूतानि भगवा सोसेना नो महानिर्जरानो महान भवन्ति सद्यथा वा कोऽपि पुरुषोऽविवरणम्य महता मता महता महता, महता महता परंपरापान संचिनोति तथा मचिकरण्या पान यथावादगन्लान् परिशादयितुम् एवमेव य मेमिकाणां पापानि कर्माणि तानि वादन महापसानानिःअनु For Private & Personal Use Only - , www.jainelibrary.org

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