Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha
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२४.२
१३. उ० – गोयना | सिद्धा सोपपया, नो सावच्या, मो सोवचयसावचया, निरुवचय-निरवचया.
१४. ५० जना भवति का निरुपचयनिरवचया ?
२४. ३० गोयमा ! स
श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे
१५. प्र०रया णं मंते ! केवतिमं कालं सोचचया
१५. उ०- गोयमा ! जहणेणं एकं समयं, उक्कोसेणं आ बलियाए अससेमइमार्ग.
१६. ५० केवतिवं काले साचच्या
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१६. उ०- - एवं चैव.
१७. १०वतियं कालं सोचचय-सायच्या !
१७. उ० एवं चेप.
१८. २०- केवलिकाले निरुचचय-निरवच्या !
१८. उ०- गोयमा ! जहनेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता, एगिंदिया सच्चे सोया, सापचया सम्ययं सेसा सज्ये सोवचया वि, सावच्या वि, सोवचय- सावचया वि, निरुवचयनिरवद्यया पि जहणणं एवं समयं उकोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं. अवट्ठिएहिं वक्कतिकालो भाणियवो.
१९. प्र० सिया गं भंते! केवलियं कालं सोचचया !
१९. उ०- गोयमा ! जहण्णेण एवं समयं उक्कोसेणं अट्ठ समया.
२०. ५० केवलियं का निरुवचय-निरवपया
१०. उ० – जहन एवं समयं उक्कोसेर्ण छ मासा.
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शतक ५. - उद्देशक ८.
१२. उ० हे गौतम! सिद्धो सोपचय छे, सापचय नधी, सोपचय अने सापचय नथी, निरुपचय छे, निरपचय छे,
१४. प्र०—हे भगवन्! जीवो केटला काळ सुची निरुपचय अने निरपचय है !
१४. उ० - हे गौतम! सर्व काळ सुधी जीवो निरुपचय अने निरपचय छे.
१५. प्र० - हे भगवन् ! नैरयिो केटला काळ सुधी सोपचय छे ?
१५. उ० - हे गौतम! जघन्ये एक समय सुधी अने उत्कृष्टे आवलिकाना असंख्य भाग सुधी नैरयिको सोपचय छे.
१६. प्र० - ( हे भगवन् ! ) नैरथिको केटला काळ सुधी सापचय छे ?
१६. ३०- ( हे गीतम ९ प्रमाणे पूर्वोक्त सोपचयमा काळ प्रमाणे सापचयतो काळ जाणवो.
१७. प्र० - (हे भगवन् ! ) नैरयिको केटला काळ सुधी सोपचय अने सापचय छे !
१७. उ०- ( हे गौतम ) ९ प्रमाणे- पूर्वोक्त प्रमाणे जाग १८. प्र०—- ( हे भगवन् ! ) नैरथिको केटला काळ सुधी निरुपचय अने निरपचय !
१८. उ० – हे गौतम ! जघन्ये एक समय सुधी अने उत्कृष्टे बार मुहूर्त सुधी नैरविको निरपचय अने निरुपच छे. बधा एकेन्द्रिय जीवो सर्वकाळ सुधी सोपचय अने सापचय छे, बाकीना बचा जीवो सोपचय पण छे, सापचय पण छे, सोपचय भने सापचय पण छे, निरुपचय छे अने निरपचय पण छे, जघन्ये एक समय अने उष्टे आवलिकानो असंख्य भाग है, अमस्थितोमां व्युत्क्रान्तिकाळ कहेवो.
१९. प्र० - हे भगवन् । सिदो केला काळ सुधी ! सोपचय के !
१९. ३० - हे गौतम! जयन्ये एक समय भने उत्कृष्टे आठ समय सुधी सिद्धो सोपचय छे.
२०. प्र० -- (हे भगवन् ! ) तेओ (सिद्धो) केटला काळ सुधी निरुपचय अने निरपचय छे !
२०. उ०- ( हे गौतम ! ) जघन्ये एक समय सुधी अने उत्कृष्टे छ मास सुधी सिद्धो निरुपचय भने निरपचप छे.
१. मूलमायतम शिा सोपचया को सापचयाः, जो सोपचय सापचयाः, निरपचय-निरपययाः जीवा भगवन्तं कालं निरुपचय - निरपचयाः ? गौतम ! सर्वद्धा. नैरयिका भगवन् ! कियन्तं कालं सोपचयाः ? गौतम ! जघन्येन एकं समयम्, उत्कृष्टेनाऽऽव लिकाया असंस्येयभागम्. कियन्तं कालं सापचया: ? एवं चैव कियन्तं कालं सोपचय-सापचयाः ? एवं चैव कियन्तं कालं निरुपचय-निरपचयाः ? गौतम ! जघन्येन एकं समयम्, उत्कृष्टेन द्वादश मुहूर्तीन्. एकेन्द्रियाः सर्वे सोपचयाः, सापचयाः सर्वद्धा, शेषाः सर्वे सोपचया अपि, सापचया अपि, सोपचय- सापचया अपि पचदरिया नयायाः असंख्येयभागम् अपरासिद्धान् कियन्तं कालं सोपचयाः ? गौतम । जघन्येन एकं समयम्, उत्कृष्टेन अष्ट समयान् कियन्तं कालं निरुपचय-निरपचया: ? जघन्येन एकं समयम्, सत्कुष्टेन पणू मासानूः अनु०
एवं
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