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शतक ५. - उद्देशक ४
भगवत्सु धर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
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३. आगळा प्रकरणमा केवळ संबंचे हकीकत कही है तो हवे आ प्रकरणमां पण श्रीमहावीर (वेगळी) नुं उदाहरण
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बात कहे छे के [ 'हरी' इत्यादि. ] शं०. -आ ठेकाणे मूळमां ' महावीर ' शब्द तो नथी तो पछी अहीं कहेवामां आवती वात महावीर शंका. संबंधे छे एम शाथी जणाय ? समा० - जो के, अहीं मूळमां ' महावीर ' नुं नाम नथी जणान्युं तो पण 'हरिनैगमेषी' देवनुं नाम आववाथी समाधान, आ बात महावीर संबंध दोष एवं अनुमान मनुं शुश्य छे. कारण के, ज्यारे महावीर गर्भावस्थामा हता त्यारे तेनी फेरते देने करी हती. जो कदाच अहींनी हकीकत महावीर संबंधे न घटाववानी होत तो सूत्रकार मूळनी अंदर हरिनैगमेपिनुं नाम न लखत, पण सामान्य रीते कोई पण देवनं निरूपण करत अने ते न करतां जे एजाज के तेथी आ की महावीरने गांठे घटावी एवं आगल अनुमान महावीर
१. टीकाकारथी जणावे छे के, “आ सूत्र, श्रीमहावीरना गर्भपहारने लगतुं छे." ते बाबतना टेकामां तेओ आ एक दलील पण जणावे. छे के." सूत्रना मूळमां सामान्य देवनो उल्लेख नहि करतां शक्रदून हरिणेगमेषी देवनो गर्भना बदलावनार तरीके उल्लेख करेलो छे अने महावीरनो गर्भ बदलवा माटे एज देव आन्यो हतो तेथी आ सूत्रमां महावीरनुं न म न होवा छतां पण आ उल्लेख महावीरने ज बंध बेसते आवे छे. आ उल्लेख विषे आपणे कांदतंत्रविदारीपल ते ओखने लगती ऐतिहासिक समविचारी ते ठीकमाशे गधोना सूचना "लंदन छेपटना भाग भावना आहे. व्यापाप्रति भगवती सूत्रमा आउने उारना सूचनांचा मरसून पण हकीकत आचार-भंग, भगवती अनेकन ए की 'बीगतथी बीजा अंगोमां ए हकीकतनी नोंच जडती नथी. भाषा-शाखनी दृष्टिए आचार-अंग सूत्र बीजां सूत्रो करतां विशेष प्राचीन के अने एम *अनुभव पण थाय छे एयी कदाच आपणे आचार-अंगमां अंजने भागे आवता आ गर्भापहारना उल्लेखने विशेष प्राचीनता आपीएं पण ते करता आचार्य श्रीहेमचंद्रजी आपणने अटकावे छे अने तेओ पोताना शब्दोमां आ प्रमाणे जगावे छेः [ नीचेना उल्लेखमां आचार-अंगमां आवेली भावनाचूलिका 'क्या वखते बनी ' ? तेने लमती एक दंतकथा परिशिष्ट पर्वना नवमा सर्गमां ८३ थी १०१ लोकमां आचार्यश्रीए नोंधेली छे, ते उपरथी आपणे से चूलिकानो काळ वीरात्-बीजो सैको कल्पी शकीए छीए-अने तेथी ज तेने आचार-अंगनुं श्रीभद्रबाहुजीना समयनुं उमेरण गणी शकीए छीए..].
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ततोऽयुस्ताः पुनस्तत्र स्वरूपस्थं निरूप्य च, वन्दिरे स्थूलभद्रं ज्येष्टा चाख्यनिजां कथाम्श्रीवकः सममस्यामिदीक्षामादत किसी क्षुधावन् सर्वदा कर्तुं नैकभक्तमपि क्षमः. मयोक्तः पर्युषणायां प्रत्याख्यालय पौरुतम् स प्रत्याख्यातवानुको मया पूर्वेऽवधा पुनः पदमतिदुर्लभम्
एवं
"श्रीस्थूलमनी बहेनोए तेमने-स्थूनभइने पत्र जोड़ने बांधा अने तेमाभी मोटी बने पोतानी वात प्रकही (२२) मा बीके अमारी-सादीक्षा लीची सी, किंतु ए कोई दिवस एका प न करी शके एवो क्षुत्रावान हमेश रद्देतो. (८४) में श्रीयकने कछु के आज पजुसणां पौरुषीनो नियम करतेणे पण ते नियम कया. ए निय मनी अवधि पूरी थये फरीवार में कछु के, (८५) आज तुं पूर्वार्ध - पुरिमट्ट -कर-आ पर्व घणुं दुर्लभ छ अने एडलो वखत तो चैयपरिपाटी करता पण चाल्यो जशे . ( ८६) एक पण एणे स्वीकार की. पछी वखत थये फरी वार में कह्युं के, हवे तो अपार्थ-अबट्ट ने करी नाख तेणे पण तेमज क. (८७) पछी फरीवार में कहां के वे तो रात्रीपासेज छे अने ते सूतां सूतां सुखे चाली जशे माटे उपवास ज करी नाख अने तेणे पण खरेखर उपवास कयी. (८८) त्यार पछी मधरात धये देव अने गुरु ने याद करता करतां भूखनी पीडाथी एणे देह छोड्यो अने खर्गनो आश्रय - लीधो. (८९) गने खेद थयो के, अरे रे में आ ऋषिहत्या करी अने ए माटे में श्री श्रमण संघ पासे प्रायश्चित्तनी याचना करी. (९०) संधे कथुंके, हे श्रमणि । तमो विशुद्ध भावे हतां तेथी तमारे आ माटे कांइ प्रायश्चित्त करवानुं नथी. (९१) त्यार पछी में कछु के, जो साक्षात् जिन ज आ विषे खुलासा करे तो मने निरांत थाय नहि तो नहि. (९२) आ माटे ए वखते सकळ संघे का उसग ( कायोत्सर्ग-ध्यान ) कया अने तेथी देवी आनी के बोलों काम करें (५३) संचेपण क के आ साध्वीने जिननी पासे लह जा, पछी देवीए क हुं आबुं त्यां सुधी वाउगे रहों. (९४) संधे तेम क ( ए साध्वीने ) जिननी पासे लइ गइ पछी त्यां जइ, में भगवान् सीमंधर खामिने वंदना करी. (१५) जिने, आसांनी भरतक्षेत्रयो आवेली छे अने निर्दोष छ." त्यार पछी मागे संशय टळी गयो अने देवी मनें मारे स्थाने लावी. (९६) कृपाळु सीमंधर खामिए मारा मुख द्वारा श्री संघ ने चार अध्ययनो मेट तरीके मोकल्यां छे. (३७) ते चार अध्ययनो नां नाम आछे भावना, विमुक्ति, रतिकन [ वर्तमानमां (रतिवाक्य ) ] अ] [वर्तमानमा (विधिक ) ] (९८) में ए बारे अध्ययनोने एक ज वाचना द्वारा घरी राख्यां अने जेम हृतां तेम श्रीसंघ पासे संभळावी दीघां. (१९) पेलानां बे अध्ययनोने आचार अंगनी चूला तरीके से योज्य अने बीज माफीना देने दर्शवेकालिनी सा
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काल-परवापास्पति. पादि सबैमा समऽमिहितः पुना, दानीमा मिसा प्रयासन्नाऽधुना रात्रिः सुखं सुप्तस्य यास्यति, तत् प्रत्यादवाद्यार्थमः सत् तथा.
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निशी से स्मरन् देव गुरुनी, क्षुत्पीडया प्रसरत्या विपद्य त्रिदिवं ययैा. गवाकारीताम्यन्धी उतसवदम् पुरः श्रमण संघस्य प्रायश्चित्त य है. किता. संघाद्व्यवायीदं भवत्या शुद्धभ वया, सतोमेि ततोऽचि साक्षादास्पति गि गम नान्यथा. ९२ अत्रायें सकल: कारवर्गमदादप, एय शासन देव्योकं ब्रूत कार्य करोमि किम् ? संघोऽप्येवमभाषि जिनराश्रमिमां नय, साSSख्य निर्विघ्नगत्यर्थं कायोत्सर्गेण तिष्ठत. ९४ संप्रतिपेदाने मांस जिसके ततः सीमन्धरः स्वामी भगवान् वन्दितो मया. भरतादागताऽऽन ततोऽहं छिन्नसंदेहा देव्याऽऽनीता निजाश्रयम्. ९६ प्रसादमाह श्रीमान् सीमंधरखामी चत्वार्यध्ययनानि च. भावना च विमुक्तिश्च रतिकल्पमथाs/रम, तथा विचित्रचर्या च तानि चैतानि . नामतः. अप्येकया वाचनया मया तानि धृतानि च, उगीतानि संचाय सत् तथाख्यानपूर्वकम् ९५ आभारास चूले द्वे आयमध्ययनद्वयम्
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