Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha
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शतक ५. - उद्देशक ४.
एवं खलु दो देवा महिडिया, जाप महाणुभाना समणस्स भगओ महावीरस्स अंतियं पाउब्भूआ, तं नो खलु अहं ते देने जाणामि, कयराओ कपाओ वा, सग्गाओ वा, विमाणाओ वा कस्स या अमस्त अडाए इहं हवं आगया तं गच्छामि णं मंग महावीरं वंदामि नम॑सामि जाय-पजुवासामि इमाई णं एवाई बागरणाई पुच्छिस्सामि ति कट्टु एवं संपेहेर, संपेहित्ता उट्टाए उइ, जाव- जेणेव समणे भगवं महावीरे,
- पशुवास गोयमादि । समणे भगवे महावीरे भगवं गोयमं एवं पयासी से पूर्ण तब गोवमा ! झाणंतरियाए यह माणस्स इमेवारूले अत्रि, भाव- जेणेव मर्म अंतिए तेथेन हवं आगए, से पूर्ण गोयमा अडे समहंता, अस्थि. गच्छाहिणं गोयमा। एए व देवा इमाई प्यारुवाई पागरणाई वागरेहिंति,
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भगवत्स्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
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----तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुनाए समाणे समणं भगमं महावीरं वंदर, नर्मसर, जेणेव ते देवा तेणेव पहारेत्य गमनाए. तए नं ते देवा भगवं गोयमं एनमार्ण पासंति, पाक्षित्ता हडा, जाय-हृयहिवया, खिप्यामेन अन्मुट्ठेति . सामेव परागच्छति, पचुवागच्छित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता जाव - णमंसित्ता एवं वयासीः-एवं खलु भंते ! अम्हे महासुकाओ कप्पाओ, महासगंगाओ विमाणाओ दो देवा महिडिया, जाय पाउन्भूआ; तर अम्हे समणं भगवं महावीरं वंदामो, नम॑सामो, वंदित्ता, नमंसित्ता मणसा चैव इमाई एयारूबाई वागरणाई पुच्छामो:-कइ णं भंते ! देवाणुपियाणं अंतेवासीसयाई सिज्झिहिंति, जावअंतं करिहिंति ? तए णं समणे भगवं महावीरे अम्हेहिं मणसा पुट्टे, अम्हे मणंसा चैव इमं एयारूवं वागरणं वागरेइ :- एवं खलु
- त्यार पछी श्रमण भगवंत महावीर तरफथी एवा प्रकारनी अनुमति मळयाने लीये भगवान् गौत्तमे श्रमण भगवंतने बांदी, नमी अने जे तरफ पेडा देवो हता ते तरफ जत्रानो संकल्प कप, हने ते देवो भगवान् गौतमने पोतानी पासे आवता जोइने हर्षवाळा यावत् इतह्रदयाळा थयां अने शीघ्र ज उमा यह तेंमोनी सामे गया - ते देवो, ज्यां भगवान् गौतम हता त्यां आव्या-अने तेओने वांदी, नमी ते देवोए आ प्रमाणे कः - हे भगवन् ! महावुक नामना करपची, महास (स्व) विमानयी मोटी दिवाला यावत् - अमे वे देवो अहीं प्रादुर्भूत थया छीए अने ( पछी ) अमे श्रमण भगवंत महावीरने वांदीए छीए, नमीए छीए अने मनथी ज आ प्रकारना प्रश्नो पूछीए छीए-' हे भगवन् ! आप देवानुप्रिया केटला सो शिष्यो सिद्ध थशे यावत् - सर्व दुःखनो नाश करशे ? " आ रीते अमे श्रमण भगवंत महावीर ने मनथी पूछ्यापछ
देवाणुभिया ! मम सत्त अंतेवासीसयाई, जाव-अं करेहिंति, पण ते श्रमण भगवंत महावीरे मनथी ज तेनो जवाब आप्यो के
१.
देवमामनुभाग
एवं देवा जानामि कतरस्मात् नमस्यामि सायद
भगवते महावीर अतिकं तद्न विमानावा अर्थ अवय अत्र शीघ्रम् आगत तद्गच्छामि भगवन् महावीर पन्चे मानिएपनि व्याकरणानि प्रयामि इति कृपा एवं ते विदयेन भगवान् महावीरः, यावत् पर्युपास्ते. गौतमादयः । श्रमणेो भगवान् महावीरे। भगवन्तं गतिमम् एवम् अवादीत्ः - तद् नूनं तत्र गौतम ! ध्यानान्तरिकायां वर्तमानस्य अयम् एतद्रूपः आध्यात्मिकः यावत्-येनैव मम अन्ति तेनैव शीघ्रम् आगतसद् नूनं गतम! अर्थः समर्थः इन्त अस्तित गच्छ गौतम! एता एवं देवा इमानि एतद्रूपाणि व्याकरणानि व्याकरिष्यतः; ततेो भगवान् गौतमः श्रमणेन भगवता महावीरेण अभ्यनुज्ञातः सन् श्रम भगवन्तं महावीर बन्दते नमस्यति देवप्रभारितवान् गमनाय ततस्तदेव भगत आयतं पश्वादया थ यावत्-हृतहृदये। क्षिप्रम् एव अभ्युत्तिष्ठतः, अभ्युत्थाय क्षिप्रम् एव प्रत्युपागच्छतः, प्रत्युपागम्य येनैव भगवान् गौतमस्तेनैव उपागच्छतः, उपागम्य यादव एवम् अवाद एवं भगवन् भय मदाशुकाद बद महास्वी माना है। देमी: सतः आम भगवन्तं महावीरं मन्दाय नमस्या दिया नमसाइमन ए यारणानि पृच्छायः कति भगवन् । देवानुप्रियाणाम् अन्तेवासिशतानि सेत्स्यन्ति यावत्-अन्तं करिष्यन्ति ? ततः श्रमणेो भगवान् महावीरः आवाभ्यां मनसा पृष्टः, आव मनसा नैव इदम् एतद्रूपं व्याकरणं व्याकरोति, एवं खलु देवानुभिया ! मम सप्त अन्तेवासिशतानि यावत् - अन्तं करिष्यन्तिः- अनुव
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१७९ इंद्रभूतिने आ प्रकारनो संकल्प यावत् उत्पन्न थयोः मोदी ऋद्विवाळा यावत्-मोटा प्रभाववाळा बे देवो श्रमण भगवंत महावीरनी पासे प्रादुर्भूत थया हता तो हुं ते देवोने जाणतो नथी के, तेओ क्या करपथी, क्या स्वर्गंधी अने क्या विमानधी शा कारणे शीघ्र अही आव्या माटे जाउं भने भगवंत महावीरने बांदु, नमुं अने यावत्तेओनी पर्युपासना करूं तथा एम क पछी हुं मारा पूर्वप्रकारना आ प्रश्न पूछीश एम विचारीने, उभा थइने जे तरफ श्रमण भगवंत महावीर छे ते तरफ जइने यावत्सेभोनी सेवा करे छे हवे श्रमण भगवंत महावीरे गीतमादि साधुओ एन संबोधी भगवान् गौतमने आ प्रमाणे क के हे गौतम! ज्यारे तें ध्याननी समाप्ति करी डीभी सारे तारा मनम भ प्रकारनो संकल्प थयो हसो के हुं देवो संबंधी हकीकत जावा माटे श्रमण भगवंत महावीर पासे जाउं भने यावत्-ते ज कारणथी तुं मारी पासे अहीं शीघ्र आव्यो छे' केम हे गौतम! में कहां ए बराबर छे ने गौतमे कां के, 'हे भगवन् ! ते ? बराबर छे. ' पछी भगवंत महावीरे कह्यं के, तारी शंकाने टाळवाने सारु हे गौतम ! तुं ( ए देवोनी पासे ) जा, अने ए देवो जतने ए संबंधेनी पूरी माहिती संभळावशे.
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