Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha

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Page 236
________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक ५.-उद्देशक ७ गोचीश दंडक. ७. हमणां आयुष्य कल्खु, हवे आयुष्यवाळा जीवोने आरंभादि प्रश्नो द्वारा चोवीस दंडकवडे प्ररूपता [ • नेरहए '! इत्यादि सूत्र कहे छे. ___ असुरोनो अने एकेंद्रियोनो परिग्रह ३०. प्र०-भसुरकुमारा णं भंते ! किं सोरंभा पुच्छा ? ३०. प्र०—हे भगवन् ! असुरकुमारो आरंभवाळा ! इत्यादि प्रश्न करवो. - ३०. उ०-गोयमा ! असुरकुमारा सारंभा, सपरिग्गहा; ३०. उ०-हे गौतम! असुरकुमारो आरंभवाळा के परिणो अणारंभा, अपरिग्गहा. प्रहवाळा छे पण अनारंभी के अपरिग्रही नथी:-' "३१. प्र०–से केण्डेणं ? ३१.. प्र०—(हे भगवन् ! ) ते शा हेतुथी ?'. ३१. उ०--गोयमा ! असुरकुमारा णं पुढविकायं समारंभंति, . ३१. उ०- हे गौतम !. असुरकुमारो-- पृथिवीकायनो समाजाव-तसकायं समारंभति, सरीरा परिग्गहिया भवंति, कम्मा रंभ-वध-करे छे यावत् त्रसकायनो वध करे- छै; तेओए-शरीरो परिग्गहिया भवंति, भवणा परिग्गहिया भवंति; देवा, देवीओ, परिगृहीत कां छे, कर्मों परिगृहीत कयां छे, भवनो परिगृहीत मणुस्सा, मणुस्सीओ, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्खजोणिणीओ कर्या छे, देवो, देवीओ, मनुष्यो, मनुषीओ, तियचो, तियेचिणीओ परिग्गहिया भवंति; आसण-सयण-भंड-मत्तो-वगरणा परिग्ग- परिगृहीत करी छे, आसन, शयन, भांडो, मात्रको अने उपकरणो हिया भवन्ति, सचित्ता-चित्त-मीसियाई दबाई परिग्गहियाइं परिगृहीत कर्या छे अने सचित्त, अचित्त अने मिश्र द्रव्यो परिग भवति-से तेण?णं तहेव, एवं जाव-थणियकुमारा. हीत कयों छे माटे ते हेतुथी तेओने परिग्रहवाळा कह्या:छे-ए प्रमाणे. यावत्-स्तनितकुगारो माटे पण.जाणवू. --एगिदिया जहां नेरइया. ---जेम नैरयिको माटे कयुं तेम एकेन्द्रियो माटे जाणवू ८. भंडमत्तोवगरण' त्ति इह भाण्डानि मृण्मय-भाजनानि, मात्राणि कांस्यभाजनानि, उपकरणानि लौही, कडुच्छुकादीनि एकेन्द्रियाणां परिग्रहोऽप्रत्याख्यानाद् अवसेयः. माटीनी अने कांसा ८.[ भंडमत्तोवगरण ' त्ति ] भांडो-माटीनां वासणो अने मात्रो एटले कासाना वासणो तथा उपकरणो एटले लोढी, कडायु, कडछी नां वासणो. ___ यगैरे. प्रत्याख्यान न करेलु होवाथी एकेन्द्रियो परिग्रही छे, एम जाणवू.: एकेंद्रियो. बेइंद्रिय विगेरेनो परिग्रह. ३२. प्र०--बेडदिया णं भंते ! किं सारंभा, सपरिगहा ! ३२. प्र०- हे भगवन् ! वेइंद्रिय जीवो शुं सारंभ अने सपरिग्रह छे?'. ३२. उ०-तं चेव जाव-सरीरा परिग्गहिया भवति, ३२. उ०—(हे गौतम!) ते ज-कहे, यावत् तेओए शरीरी बाहिरिया भंड-मत्तो-वगरणा परिग्गहिया भवंति एवं जाव- परिगृहीत कयों छे अने बाह्य भांड, मात्र, उपकरणों परिगृहीत घडरिंदिया. कयां छे, ए प्रमाणे यावत् चरिंद्रिय जीव सुधीना दरेक जीव माटे जाणी लेवू. ३३. प्र०--पचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भते ! ! ३३. प्र०-हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिको शं आरंभी छे ? इत्यादि ते ज प्रश्न करवो. ३६. उ6--तं चैव जाव-कम्मा परिग्गहिया भवति, ३३. उ०—( हे गौतम !) ते ज कहेवू अर्थात् तेओए टंका, कूडा, सेला, सिहरी, प-भारा परिग्गहिया भवति, जल-थल- कर्मों परिगृहीत की छे, पर्वतो, शिखरो, शैलो, शिखरवाळा १. मूलच्छाया:-असुरकुमारा भगवन् ! कि सारम्भाः, पृच्छा.! गौतम ! असुरकुमाराः सारम्भः, सपरिग्रहाः; नो अनारम्भाः, अपरिग्रहाः, तत् केनाऽर्थेन ? गौतम! असुरकुमाराः पृथिवीकार्य समारभन्ते, यावत्-त्रसकार्य समारभन्ते, शरीराणि परिगृहीतानि भवन्ति, कर्माणि परिगृहीतानि भवन्ति, भुवनानि परिगृहीतानि भवन्ति, देवाः, देव्यः, मनुष्याः. मनुष्यः, तिर्यग्योनिकाः, तिर्यग्योनिमत्यः परिगृहीता भवन्ति; भासन-शयनभाण्डा-धमत्रो-पकरणानि परिगृहीतानि भवन्ति, सबित्ता-ऽचित्त-मिश्रितानि द्रव्याणि परिगृहीतानि भवन्ति-तंत् तेनाऽर्थेन तथैव, एवं यावत्-स्तनितमासः. एकेन्द्रियाः यथा नैरयिकाः. २. द्वीन्द्रिया भगवन् । किं सारम्भाः, सपरिग्रहाः ? तच्चैव यावत्-शरीराणि परिगृहीतानि भवन्ति, बामामि मौण्डा-ऽमत्रो-पकरणानि परिगृहीतानि भवन्ति, एवं यावत्-चतुरिन्द्रियाः. पथेन्द्रियतिर्यग्योनिका भगवन् ! ? तच्चैव यावत्-कर्माणि परिगृहीतानि भवन्ति, दहाः, कूटाः, शैलाः, शिखरिणः, प्रारभाराः, परिगृहीता भवन्ति, जल-स्थल-:-अनु. Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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