Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha

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Page 238
________________ २२८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रह शतक ५:-उद्देशक ७. इत्यन्ये. 'अगड' ति कूपः, वावि' त्ति वापी चतुरस्रो जलाशयविशेषः, 'पुक्खरिणी' पुष्करिणी-वृत्तः स एव, पुष्करवान् वा. 'दीहिय ' त्ति सारिण्यः, 'गुंजालिय ' त्ति वक्रसारिण्यः, 'सर' ति सरांसि-स्वयंसंभूत जलाशयविशेषाः, 'सरपंतियाओ' त्ति सरःपङ्क्तयः, 'सरसरपंतियाओ' यासु सरःपङ्क्तिषु एकस्मात् सरसोऽन्यस्मिन्-अन्यस्माद् अन्यत्र एवं संचारकपाटकेन उदकं संचरति ताः सरःसरः पतयः, बिलपतयः प्रतीताः, 'आराम' ति आरमन्ति येषु माधवीलतादिषु दम्पत्यादीनि ते आरामाः, 'उज्जाण' ति उद्यानानि पुष्पादिमवृक्षसंकुलानि उत्सवादौ बहुजनभोग्यानि, 'काणण' त्ति काननानि सामान्यवृक्षसंयुक्तानि नगराऽऽसन्नानि, 'वण' ति वनानि नगरविप्रकृष्टानि, 'वणसंडाई' ति वनखण्डा एक जातीयवृक्षसमूहात्मकाः, वणराइ त्ति वनराजयो वृक्षपङ्क्तयः, 'खाइय' ति खातिका उपरि विस्तीर्णा, अध: संकटखातरूपाः, 'परिह 'त्ति परिखाः अधः, उपरि च समखातरूपाः, 'अट्टालग ' त्ति प्राकारोपरि आश्रयविशेषाः, 'चरिय ' त्ति चरिका गृह-प्राकारान्तरो हत्यादिप्रचारमार्गः, 'दार' त्ति द्वारम्-खडकिका, 'गोउर' त्ति गोपुरं नगरप्रतोली, 'पासाय' त्ति प्रासादा देवानाम् , राज्ञां च भवनानि अथवा उत्सेधबहुलाः प्रासादाः, 'घर' ति गृहाणि सामान्यजनानाम् , सामान्यानि वा; 'सरण' ति शरणानि तृणमयाऽवसरिकादीनि, ' आवण ' ति आपणा हट्टाः, शृङ्गाटकम्-स्थापना-A त्रिकम्-स्थापना--1 चतुकम्-स्थापना-7 चत्वरम्-- स्थापना- चतुर्मुखं चतुर्मुखदेवकुलकादि, ‘महापह ' त्ति राजमार्गः, 'सगड' इत्यादि प्राग्वत् . ' लोहि ' त्ति लौही मण्डकादिपचनिका, 'लोहकडाहि' ति कवेल्ली, 'कडुच्छ्य' ति परिवेपणाद्यर्थी भाजनविशेषः, 'भवण ' त्ति भवनपतिनिवासाः, ९. [ 'बाहिरिया भंडमत्तोबगरण ' त्ति ] उपकारनी समानताथी-एटले जेम मनुष्योनां घरो मनुष्योनी रक्षा करनारां होवाथी तेओनां उपकरण, उपकरणोमा लेखाय छे तेम----शरीरनी रक्षा माटे बेइन्द्रियोए करेलां घरोने पण तेओना उपकरण समजवा. [' टंक ' त्ति ] टांकणाथी छेदाएल पर्वतो. पर्वतो, [ 'कूड' ति ] शिखरो अथवा हाथी वगेरेने बांधवानां स्थानो, [ 'सेल' त्ति ] मुंड पर्वतो-सूका पर्वतो, ["सिहरि' ति ] शिखरवाळा पर्वतो, लेण-उज्झर. [ ' पब्भार ' त्ति ] थोडा नमेला पर्वतना भागो, [ 'लेण ' त्ति ] पर्वतमा कोतरेखें घर, [उज्झर ' त्ति ] ज्यां पर्वतना तटथी पाणी नीचे पडतुं निर्जर. होय ते स्थान, [ · निज्झर 'त्ति ] ज्यां पाणी चूतुं होय ते स्थान, [ 'चिल्लल ' त्ति ] कचरावाळा पाणीवाळु एक जातनुं जलस्थान, [ पल्लल ' ति] आनंद देवाना स्वभाववाढु एक जातनुं जलस्थान, [ 'वप्पिण' ति ] क्यारावाळो प्रदेश अथवा तटवाळो प्रदेश, कोइ तो 'वप्पिण' केदार. शब्दनो " केदार " ज अर्थ कर छे, [ ' अगड ' त्ति ] कूबो, [ ' वावि ' त्ति ] चोखंडो जलाशय--चोखंडी वाव, [ पुक्खरिणि ' त्ति ] गोळ वाव-दीपिका- जलाशय-गोळवाव अथवा कमळवाळी चोखंडी वाव, [ 'दीहिय ' ति] सारणिओ-धोरियाओ, [ गुंजालिय' त्ति ] वांका धोरियाओ, [ 'सर' धोरिया- कावो. त्ति ] तळावो-जमा स्वयमेव जल उत्पन्न थयुं छे तेवा जलाशयो, [ ' सरपंतियाओ' ति] तळावनी श्रेणिओ, [ सरसरपंतियाओ' ति ] जे तळावनी श्रेणीओमा संचारक पाटकवडे एक तळावथी बीजे तळावे अने बीजेथी बीजे तळावे पाणी जतुं होय ते सरःसरपंक्ति कहेवाय, आ म. बिलनी श्रेणीओनो अर्थ प्रतीत छे, [ ' आराम ' त्ति ] जे स्थानोमां, द्राक्षालता वगेरे लताओमां दंपतीओ क्रीडा करे ते आराम, ['उजाण'त्ति ] उद्यान. उत्सवादिना समये बहु माणसो द्वारा भोगवातां अने पुष्पादिवाळा वृक्षोथी भरपूर ते उद्यान, [' काणण ' ति] नगरी नजीक रहेला साधारण कानन-वन, वृक्षो सहित ते कानन, [वण' ति] नगरथी दूर रहेला ते वन, ['वणसंडाई' ति] एक जातना वृक्षोना समूहरूप ते बनखंड, [वणराइ' खाई. त्ति ] वृक्षोनी हारो, [ 'खाइय' त्ति ] उपर पहोळी अने नीचे सांकडी खोदेली खाइ, [ 'परिह' ति] नीचे अने उपर सरखी रीते खोदेली ते परिखा, अटारी-चरिया. [ अट्टालग ' त्ति ] किल्ला उपर रहेला एक प्रकारना आशरा-झरुखा, [ ' चरिय ' ति ] चरिका एटले घर अने किल्लानी वच्चे हाथी वगेरेने पोळ-प्रासाद-घर- जवानो मार्ग, [ ' दार ' त्ति ] खडकी, [ 'गोउर ' त्ति ] नगरना दरवाजा-(पोळ ), [ 'पासाय ' त्ति ] राजानां घर के देवोनां घर अथवा छापरां. प्रासाद-उंचां घरो, [ 'घर' त्ति ] सामान्य घर अथवा साधारण माणसोनां घर, [ ' सरण ' ति ] घासमय छापरां-झुपडा,-[ 'आवण ' ति] शंगाटक-निक. हाटो, शंगाटक एटले सिंगोडं-जे रस्तो सिंगोडाने घाटे त्रिकोण जेवो होय तेने पण अहीं शृंगाटक कसो छे, ते शृंगाटकनो आकार आ प्रमा चतुष्क-चत्वर. A. तरभेटाने अहीं त्रिक कहलो छ अने तेनो आकार आ प्रमाणे छ: 1. चतुष्क एटले चोक अने ए चोक नो आकार आ प्रमाणे छः चत्वर-ए एक जातना मार्गनु नाम छे अने तेनो घाट आ प्रमाणे छः . चार मुखबाळां देवकुळ वगेरेने 'चतुर्मुख ' कहेवामां आवे छे. महापथ. [ ' महापह ' त्ति ) राजमार्ग-सरियाम रस्तो, [ ' सगड ' ] इत्यादिनो अर्थ पूर्ववत् जाणी लेबो, [ ' लोहि ' त्ति ] मांडा पकाबवानी लोढी, लोढी-छो. लोहकडाहि ' ति] लोढार्नु कडायु, [ ' कडुच्छुय ' ति] पीरसवा माटेगें एक प्रकाग्नुं भाजन-कटलो,-[ 'भवण ' त्ति ] भवनपतिनां निवास स्थानो. हेतुओ (१) -पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा:-हेउं जाणइ, हेउं पासइ, -पांच हेतुओ कया छे, ते जेम के, हेतुने जाणे छे, हेतुने हेउं बुज्झइ, हेउं अभिसमागच्छति, हेउं छउमरथमरणं मरइ. जुए छे, हेतुने सारी रीते श्रद्दधे छ, हेतुने सारी रीते प्राप्त करे छे, हेतुवालु छद्मस्थमरण करे छे. १. मूलच्छाया:-पञ्च हेतवः प्रज्ञप्ताः, तयथाः-हेतुं जानाति, हेतुं पश्यति, हेतुं बुध्यते, हेतुम् अभिसमागच्छति, हेतुं उद्मस्थमरणं नियवेः अनु० Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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