Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha
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जो मायाए ति] कानांपा अने रजोहरणने पवित्र नावं ति] नाविक नाव रमत्र. बहतु मूकतो रमत करे छे ते मालक होवाथी
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श्रीरामचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ५. - उद्देशक ४.
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ने. [णाविया मेति ] आ मारी होडी एम विकल्प करतो ए अर्थ, गम्य छे. करनार खावानी पेठे नावने. [ अर्थ ति] आमुक्तक मुनि पात्राने पाणीमां बेतुएका प्रकारनी रमत करे छे. [अदति ] स्पट तेने जोवो अने तेनी तद्दन अनुचित चेष्टाने जोइने जाणे तेनो उपहास करता न होय तेम तेंओए भगवानने पूछयुं. ए ज वातने कहे छे के, [' एवं खलु ' इत्यादि. ] [' हीलेह ' रे]ि तेनी नावनात खुड़ी करीने निंदो (नहीं), [निंदद्धति ] मनवी तेनी निंदा करो नहीं ), [जिंसह ति] माणसोनी पासे तेनुं वकुं बोलो (नहीं), [ गरहह जि] तेनी पासे तेनो अववाद कहो (नहीं) [ अमन चि] तेनी उचित शुश्रूषा नहीं करवरूप तेनुं अपमान न करो को ठेकाणे परिभवद्द एवो पाठ के तेनो अर्थ पूर्व कहेल निंदा वगेरेथी तेनो परिभव ( न करो ); ); [' अगिलाए' त्ति ] खेद कर्या सित्राय [' संगिण्हह ' त्ति ] तेनो स्वीकार करो, [' उवगिण्हह ' त्ति ] तेने सहायता टेको-आपो, ए ज सेवा करो. वातने कड़े छे के, [' वेयावडिये ' ति ] तेनुं वैयावृत्य-सेवा चाकरी करो. [' अंतकरे चैत्र ' ति ] ते अंतकर ( पोताना जन्ममरणरूप ) कर संसारनो नाश करनार छे, केटलाक अंतकरो एत्रा होय छे के, जेओ लांबे काळे जन्नमरणनो नाश करी शके छे, पण आ अंतकर एवा
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तिमशरीरी. नथी, माटे कहे छे के, [' अंतिमसरीरिए चेत्र 'त्ति ] आ अंतकर तो चरम करवानुं नथी, पण आज तेनुं छेलुं शरीर छे.
शरीरवाळो छे- जेने हवे पछी एक पण शरीर धारण
वे देवो अने
ते काले णं, ते गं समये णं महासुकाओ कप्पाओ, महागाओ महाविमाणाओ दो देवा महिडिया, जाव-महाणुभागा मस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउच्भूआ; तए णं ते देवा समणं भगवं महावीरं मणसा चैव वंदति, नमसंति; मणसा चैव हमे एवारूपं वागरणं पुच्छंतिः
१५. प्र० णं ते! देवाणुप्पि आणं अतेपासी सगाई सिज्झिहिंति, जाव-अंतं करेहिंति ?
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१५. उ० – तर णं समणे भगवं महावीरे तेहि देवेहिं मणसा पुढे वेसि देवानं मनसा ने इमं एारूपं पागरणं यागरे एवं सतु देवाचिया ममं स अतवासियाई सिव्झिहिति जाप अंत करेहिति एनं ते देवा समणं भगवया महावीरेगं मगसा पुढेणं, मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरिया समागा हट्ट तुट्ठा, जाव- हयहियया, समणं भगवं महावीरं वदति, णमंसंति, वंदिता, णर्मवित्ता मगसा चैव सुस्सुसमाणा, नर्मसमाणा, अभिमुहा जाव-पज्जुवासंति.
---ते णं काले णं, ते णं समये णं समणस्स भगवओ महानीरस्स जे अंतेवासी इंदमूई नामं अणगारे जाप अदूरसामंते उ जाणू, जाव विहरद तर नंतर भगवओ गोयमस्त शाणंत रियाए माणस मेगा अझथिए, जाय समुप्यनित्था:
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महावीर.
-ते काले, ते समये महाशुक नामना देवलोकधी महासर्ग (स्वर्ग) नामना मोठा विमानधी मोटी दिवाला यापत्-मोटा भाग्यवाळा बे देवो श्रमण भगवंत महावीरनी पासे प्रादुर्भूत था, ते देवोर श्रमण भगवंत महावीरने मनथी ज वंदन अने नमन कर्पु तथा मनथी ज आ प्रकारना प्रश्नो 'पूछ्या:
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१५. प्र० - हे भगवन् ! आप देवानुप्रियना केटला सो शिष्यो सिद्ध वशे यावत् सर्व दुःखनो अंत आणशे ?
१५. उ०पछी ते देवो मनवीज प्रश्नो पू पछी अमण भगवंत महावीरे पण ते देवोने तेओना सपाना जवाजो मनवीज आया हे देवानुप्रियो मारा सात शिष्यो सिव थशे यावत् सर्वं दुःखोनो नाश करणे. ए रीते मनथी पूछाएल एवा श्रमण भगवंत महावीरे ते देवोने तेओना सवालना जवाबो मनथी ज आप्या तेथी ते देवो हर्षवाळा, तोषवाळा अने यावत् तदपवाळा यह गया अने तेओए श्रमण भगवंत महावीरने वंदन कर्यु नमन कर्तुं अने मनथी ज पर्युपासना करवानी इच्छाचाळा नमता यावत् ते देवो सम्मुख भइने पर्युपासना करवा खाग्या.
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— ते काले, ते समये श्रमण भगवंत महावीरना मोटा शिष्य इंद्रभूति नामना अनगार यावत्-श्रीमहावीरनी पासे उमडक बेसीने यावत् विहरे रहे छे. पछी ध्यानांतरिकामांप्याननी समाप्तिमां वर्तता अर्थात् पूरेपू ध्यान ध्याई रखा पछी ते भगवान् गौतम
१. समिन् काले तस्मिन् समये महात्मा (स) गांडू महामिमाना हो देवा महर्षिकी, यावद-महानुभांगी भ्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिकं प्रादुर्भूता; ततः तौ देवौ श्रमणं भगवन्तं महावीरं मनसा चैत्र वन्देते, नमस्यतः; मनसा चैव ददम् एकरछतः कवि भगवन् देवानुप्रियाणाम् अन्तेवासिशतानि चैरस्वति यावदतं करिष्यन्ति ततः श्रमण भगवान्महावीर स्वाभ्यां देवाभ्यां मनसा पृष्टः तयेाः देवयेाः मनसा चैव इदम् एतदूपं व्याकरणं व्याकरेराति, एवं खलु देवाऽनुप्रिया ! मम सप्त अन्तेवासिशतानि यातं करिष्यन्ति ततस्ता देश अमन भगवता महावीरेण मनसा न मनाइमानि एतराणि व्याकरणानि व्या
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रिमन् काले शावित
धनवन्तं महावीरं वन्दे नमस्यतः वन्दिया नमः मनसा मानसा रिमन् समये भगदता महावीरस्य वासी इन्द्रभूतिनाम अनगां यावत् अन्यः भगवतो यानान्तरिक वर्तमानस्य अप एरिया
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