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१२८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ३.--उद्देशक १०. १. आगळना उद्देशकमां इंद्रियो संबंधे हकीकत जणावी छे अने देवो पण इंद्रियोवाळा होय छे माटे हवे आ दसमा उद्देशकमां देव संबंधी समिका. वक्तव्यता कहेवानी छे. आ उद्देशक तो सरल ज छे. विशेष ए के, ['समिय' ति] समिका-पोताना उत्तमपणाने लीधे स्थिर स्वभाववाळी शमिता. होवाथी समतावाळी अथवा पोताना उपरिए करेल कोप के उतावळ वगेरे भावोने, मान्य वचनवाळी होवाथी शांत करी देनारी, अथवा शमिताचडा. तोछडाई विनानी-उद्धत नहीं ते. [ 'चंड ' त्ति ] तेवा प्रकारनी मोटाई न होबाथी साधारण कोपादिकना प्रसंगमां पण बोली नाखनारी ते चंडा. जाता. [ 'जाय ' त्ति ] मोटाईवाळो स्वभाव न होवाथी कोप वगरे भावोने अस्थाने ( अणअवसरे-वगर प्रयोजने) भजवनारी ते जाता. एवणे सभ
क्रमपूर्वक अभ्यंतरा, मध्यमा अने बाह्या छे-समिका अभ्यंतर सभा छे, चंडा वचली सभा छे अने जाता बहारनी सभा छे. तेमांनी अभ्यंतर सभानी रीतभात आ छः ज्यारे उपरिने ( स्वामीने) कांड पण प्रयोजन होय अने ते आदर पूर्वक अभ्यंतरसभाने बोलावे त्यारे ज ते आवे छे अने सभानी बेठक थया पछी ते उपरि ते सभाने पोतार्नु प्रयोजन कही देखाडे छे. तेम करवानू कारण-ते सभा गौरव-मोटाइ-ने योग्य छे. वचली सभा तो उपरि बोलावे के न बोलावे. तो पण आवे छे, कारण-तेनी मोटाई थोडी ओछी छे. ते वचली सभानी बेठक थया पछी-उपरि, अभ्यंतर सभा साथे थएल वार्तालापने जणावे छे अने ते संबंधे गांठ वाले छे-नक्की करे छे. बाह्य समा तो बोलाव्या विना ज चाली आवे छे, कारण
तेनी मोटाइ घणी ओछी छे. ते बाह्य सभानी बेठक थया पछी-उपरि, आगळ थयेला वार्तालापने मात्र वर्णवे छे. तेमा प्रथम सभामां सदोनी संख्या २४००० देवो सभासद छे, बीजी सभामा २८००० देवो सभासद छे अने त्रीजी सभामा ३२००० देवो सभासद छे. प्रथम सभामा ३५० ___ अने आयुष्य. देवीओ, वचली सभामा ३०. देवीओ अने छेल्ली सभामा २५० देवीओ सभासद छे. प्रथम सभाना देवोनी आवरदा २॥ पल्योपमनी, बीजी
सभाना देवोनी आवरदा २ पल्योपमनी अने छेल्ली सभाना देवोनी आवरदा १॥ पल्योपमनी छे. प्रथम सभानी देवीओनी आवरदा १॥पल्योपमनी, बीजी सभानी देवीओनी आवरदा १ पल्योपमनी अने छेल्ली सभानी देवीओनी आवरदा ॥ पल्योपमनी छे. ए प्रमाणे बलि संबंधे पण जाणq. विशेष ए के, सभासद देवोनी संख्या जे उपर जणावी छे, तेमांथी चार चार हजार सभासद ओछा करी नाखवा अने देवीओनी संख्या जे उपर जणावी छे तेमा सो सो देवीओ उमेरवी. आवरदानुं प्रमाण पण पूर्व प्रमाणे ज जाणवू, विशेष ए के, पल्योपमथी वधारे जाणवू. ए प्रमाणे अच्युत
सुधीना प्रत्येक इंद्रोने त्रण सभाओ होय छे, ते सभाओनां नामो, तेओमांना सभासदो-देवो अने देवीओनी संख्या तथा ते बधांनी आवरदान माप; जीवाभिगम. एवणे बानां कोइ ठेकाणे थोडा थोडां जुदां छे. ए त्रणे सभाओनी हकीकत जीवाभिगम नामना उपांगथी जाणवी.
श्रीपंचमांगे शतक तृतीय व्याख्यायु आश्रीने पुराणवृत्ति, छता बळे गाडं धरे प्रवासी जावाने सौख्य नबळानुं तो शुं!
तृतीय शतक समाप्त
बेडारूपः समुद्रेऽखिलजलचरिते क्षारभारे भवेऽस्मिन् दायी यः सगुणानां पर कृतिकरणाद्वैतजीवी तपस्वी । अस्माकं वीरवीरोऽनुगतनरवरो पाहको दान्ति शान्त्योः दद्यात् श्रीवीरदेवः सकलशिवसुखं मारहा चाप्तमुख्यः ।।
१. जूओ जीवाभिगम (पृ० १६४-१७४ तथा ३८८-३९०. स.):-अनु.
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