Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनु. विषय
पाना नं.
॥अथ द्वितीय श ॥
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१ प्रथम महेशने साथ द्वितीय उदेशठा सम्मन्धज्थन । प्रथम
सूचछा अवतरा, प्रथभ सूत्र और छाया। २ घस षवनीठाय३५ लोको आतुर ान र, गृहस्थावास
छो छोऽर, विरतियुत हो र प्रलयर्थमें स्थित तिने भुनि अथवा भेडाहश प्रतिभाधारीश्रावध श्रुतयारित्रधर्भ वास्तवितत्त्वछो भनते हुसे भी भोहोघ्यछे हारारा संयभडे पालनमें असमर्थ हो संयभोपाठा परित्याग र देते हैं। छनभेसे तिनेछ शिविरत हो डर रहते हैं और हितने तो भिथ्यात्वी हो पाते हैं। शाहि विषयोंमें भभत्व हरनेवाले छन संयभ छोऽनेवालोंभे से तिने अन्तर्मुहर्त में भर जाते हैं और हितने अहोरात्र तिने उससे अधिछासमें। छस प्रहार ये भोगार्थी, दुःजसार शाहि विषयों में आसज्त हो छस भनुष्य जवनठो व्यर्थ में नष्ट हर डालते हैं। 3 द्वितीय सूत्रमा अवतरा, द्वितीय सूत्र और छाया। ४ हितनेभनुष्य संयभी हो र, संयभ ग्रहाठे हालसे लेकर
संयभानुष्ठान में सर्वहा तत्पर रहते है । मेसे महामुनि ही धर्भधूननमें सभ्यप्रठारसे प्रवृति-शील होते है। ५ तृतीय सूचछा अवतरा, तृतीय सूत्र और छाया ।। ६ भभत्व भावनासे रहित, सत सेव सहभे सेवास्भि-मेसी
भावनास भावित अन्त : वाला भनुष्य, सभी प्रकारले अन्धनोंछो छोऽ र प्रव्रमित हो जाता है और मयेल वह मुनि अवभोटरिहासे ही रहा हरता है। ७ यतुर्थ सूत्रमा अवतरा, यतुर्थ सूत्र और छाया। ८ मेसे अवभोघरिहायुत मुनि, धर्भानभिज्ञ भनुष्योंद्वारा विविध प्रहारसे अपमानित होता हुआ ली उन सधभानों छो सभतापूर्वसहता हुमा विचारता है, और वह सभी परीषहोंछो सभतापूर्वसहता है।। ८ प्रश्वभ सूत्र और छाया। १० सभ्यष्टि मुनि परीषहप्रयुज्त सभी हुश्यिन्तामोंछा
परित्याग र परीषहोंठो सहे।
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श्री मायासंग सूत्र : 3
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