________________
७८
आ०
तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
चिन्तन के नए क्षितिज
आचार्य तुलसी एक ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्हें चिन्तन का अक्षय कोष कहा जा सकता है । उनके चिंतन की धारा एक ही दिशा में प्रवाहित नहीं हुई है, बल्कि उनकी वाणी ने जीवन की विविध दिशाओं का स्पर्श किया है । यही कारण है कि कोई भी महत्त्वपूर्ण विषय उनकी लेखनी से अछूता रहा हो, ऐसा नहीं लगता । उनके चिन्तन की खिड़कियां समाज को नई दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रहती हैं । उन्होंने हजारों विषयों पर अपने मौलिक विचार व्यक्त किए हैं पर उन सबको प्रस्तुत करना असम्भव है । फिर भी अहिंसा, धर्म और राष्ट्र के सन्दर्भ में उन्होंने जो नई सूझ और नई दृष्टि समाज को दी है, उसका आकलन हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। यहां उन विषयों पर उनके उद्धरणों एवं विचारों को ही ज्यादा महत्त्व दिया गया है, जिससे एक शोध - विद्यार्थी को उन पर थीसिस लिखने की सुविधा हो सके ।
Jain Education International
अहिंसा दर्शन
अहिंसा मानवीय जीवन की कुञ्जी है । अत: इसका सामयिक और इहलौकिक ही नहीं, अपितु सार्वकालिक एवं सार्वदेशिक महत्त्व है । 'अहिंसा एक अखण्ड सत्य है | उसे टुकड़ों में नहीं बांटा जा सकता । एशिया, यूरोप और अमेरिका की अहिंसा अलग-अलग नहीं हो सकती ।' महावीर अहिंसा के सन्दर्भ में कहते हैं कि ज्ञानी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह किसी की हिंसा न करे । यदि करोड़ों पद्यों का ज्ञाता होने पर भी व्यक्ति हिंसा में अनुरक्त है तो वह अज्ञानी ही है । "पुरिसा ! तुमंसि नाम सच्चेव जं हंतव्वं ति मन्नसि" - पुरुष जिसे तू हनन योग्य मानता है, वह तू ही हैयह ऐसा मंत्र महावीर ने मानव जाति को दिया है, जिसके आधार पर विश्व की सभी आत्माओं में समत्व प्रतिष्ठित हो सकता है ।
यों तो अहिंसा सभी महापुरुषों के जीवन का आभूषण है, किन्तु कुछ कालजयी व्यक्तित्व ऐसे अमिट हस्ताक्षर छोड़ जाते हैं, जो स्वयं ही अहिंसक जीवन नहीं जीते, वरन् समाज को भी उसका सक्रिय एवं प्रयोगात्मक प्रशिक्षण देते हैं । इस दृष्टि से बीसवीं सदी के महनीय पुरुष आचार्य तुलसी को मानव जाति कभी भूल नहीं पाएगी, क्योंकि उन्होंने अहिंसा के प्रशिक्षण की बात कहकर अहिंसक शक्ति को संगठित करने का भागीरथ प्रयत्न १. कुहासे में उगता सूरज, पृ० २६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org