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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
८९ हुये कहते हैं - "माटी का एक दीया भी अंधकार की सघनता को भेदने में सक्षम है । इसी प्रकार अहिंसा की दिशा में उठा हुआ एक-एक पग भी मंजिल तक पहुंचाने में कामयाबी दे सकेगा" पर अहिंसा की शक्ति की थाह पाना उनके लिए असंभव है, जो हिंसा की शक्ति में विश्वास करते हैं तथा इंसानियत की अवहेलना करते हैं । अहिंसा के अमाप्य व्यक्तित्व में योगक्षेम की जो क्षमता है, वह अतुल और अनुपमेय है। इसी भावना को आचार्य तुलसी समाज के हर वर्ग की चेतना को झकझोरते हुए कहते हैं-"अगर नेता, साहित्यकार, दार्शनिक, कलाविद् और कवि हिंसा के वातावरण को फैलाना छोड़कर अहिंसा के पुनीत वातावरण को फैलाने में जुट जाएं तो संभव है कि अहिंसक क्रांति की शक्ति का उज्ज्वल आलोक कण-कण में छलक उठे।"
अहिंसा की शक्ति के प्रति अपना अमित विश्वास व्यक्त करते हुये वे कहते हैं-“अहिंसा में इतनी शक्ति है कि हिंसक यदि अहिंसक के पास पहुंच जाए तो उसका हृदय परिवर्तित हो जाता है पर इस शक्ति का प्रयोग करने हेतु बलिदान की भावना एवं अभय की साधना अपेक्षित है।" अहिंसा की प्रतिष्ठा
___ भारतीय संस्कृति के कण-कण में अहिंसा की अनुगूंज है। यहां राम, बुद्ध, महावीर, नानक, कबीर और गांधी जैसे लोगों ने अहिंसा के महान् आदर्श को जनता के समक्ष प्रस्तुत किया है। उस महान् भारतीय जीवनशैली में हिंसा की घुसपैठ चिन्तनीय प्रश्न है।
अहिंसा की प्रतिष्ठा प्रत्येक व्यक्ति चाहता है। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मंच से भी आज अहिंसा की प्रतिष्ठा का चिन्तन चल रहा है। राजीव गांधी एवं गोर्बाच्योव ने विश्व शांति और अहिंसा के लिए दस प्रस्ताव पारित किये, उनमें अधिकांश सुझाव अहिंसा से संबंधित हैं। आचार्य तुलसी का गहरा आत्मविश्वास है "हिंसा चाहे चरम सीमा पर पहुंच जाये पर अहिंसा की मूल्यस्थापना या प्रतिष्ठा कम नहीं हो सकती, क्योंकि हिंसा हमारी स्वाभाविक अवस्था नहीं है । तूफान और उफान किसी अवधिविशेष तक ही प्रभावित कर सकते हैं, वे न स्थायी हो सकते हैं और न ही उनकी प्रतिष्ठा हो सकती है । आचार्य तुलसी देश की जनता को झकझोरते हुए कहते हैं-"प्रश्न अब अहिंसा के मूल्य का नहीं, उसकी प्रतिष्ठा का है। मैं मानता हूं, यह अहिंसा का परीक्षा-काल है, अहिंसा के प्रयोग का काल है। इस स्वर्णिम अवसर का लाभ उठाते हुए १. कुहासे में उगता सूरज, पृ० २७ २. अणुव्रत : गति प्रगति, पृ० १४१ ।
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