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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
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चेतावनी देते हुए कहते हैं.--"मैं राजनीतिज्ञों को भी एक चेतावनी देता हूं कि हिंसात्मक क्रांति ही सब समस्याओं का समुचित साधन है, इस भ्रांति को निकाल फेंके अन्यथा उन्हें कटु परिणाम भोगना होगा। आज के हिंसक से कल का हिंसक अधिक क्रूर होगा, अधिक सुख-लोलुप होगा।" यह प्रेरक वाक्य इस ओर इंगित करता है कि राजनीति पर धर्म का अंकुश अत्यन्त आवश्यक है। इस प्रकार आकार में छोटी होते हुए भी यह पुस्तिका वैचारिक खुराक की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
तत्त्व-चर्चा भारतीय संस्कृति में तत्त्वज्ञान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। महावीर ने मोक्ष मार्ग की प्रथम सीढ़ी के रूप में तत्त्वज्ञान को स्वीकार किया
आचार्य तुलसी महान् तत्त्वज्ञ ही नहीं, वरन् तत्त्व-व्याख्याता भी हैं। समय-समय पर अनेक पूर्वी एवं पाश्चात्य विद्वान् आपके चरणों में तत्त्वजिज्ञासा लिये आ जाते हैं। हर प्रश्न का सही समाधान आपकी औत्पत्तिकी बुद्धि में पहले से ही तैयार रहता है।
तत्त्वचर्चा पुस्तक में दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डा० के. जी. रामाराव व आस्ट्रिया के यशस्वी पत्रकार डा. हर्बर्ट टिसि की जिज्ञासाओं का समाधान है। इसमें दोनों विद्वानों ने आत्मा, जीव, कर्म, पुद्गल, पुण्य आदि के बारे में तो प्रश्न उपस्थित किए ही हैं, साथ ही साधुजीवन की चर्या से संबंधित भी अनेक प्रश्नों का उत्तर है।
यह पुस्तिका जैन तत्त्वज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अतः तत्त्वज्ञान में रुचि रखने वालों के लिये पठनीय एवं मननीय है।
तीन संदेश 'तीन संदेश' पुस्तिका में आचार्य तुलसी के तीन महत्त्वपूर्ण संदेश संकलित हैं। प्रथम 'आदर्श राज्य' जो एशियाई कांफ्रेंस के अवसर पर प्रेषित किया गया था। दूसरा 'धर्म संदेश' अहमदाबाद में आयोजित 'धर्म परिषद् में पढ़ा गया था तथा तीसरा 'धर्म रहस्य' दिल्ली में एशियाई कांफ्रेंस के अवसर पर 'विश्व धर्म सम्मेलन' में प्रेषित किया गया। लगभग ४७ वर्ष पूर्व लिखित ये तीनों संदेश आज भी धर्म और राजनीति के बारे में अनेक नई धारणाओं और विचारों को अभिव्यक्त करने वाले हैं। इन संदेशों में कुछ ऐसी नवीनताएं है, जो पाठकों को यह अहसास करवाती हैं कि हम ऐसा क्यों नहीं सोच पाए ? प्रस्तुत कृति युग की ज्वलंत समस्याओं का समाधान है तथा रूढ़ लोकचेतना को झाकझोरने में भी कामयाब रही है।
यह पुस्तक भारतीय दर्शन एवं संस्कृति के विषय में नया दृष्टिकोण
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