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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
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उपदेश की प्रेरणा गागर में सागर की भांति निहित रहती है । सूक्त / सुभाषित की एक बूंद में भी चेतना का अथाह सागर लहराता है, जो अन्तर् एवं बाह्य को आमूलचूल बदलने की क्षमता रखता है । रामप्रताप त्रिपाठी का मंतव्य है कि विधाता की इस मानव सृष्टि में सूक्तियां कल्पतरु के समान हैं । इनकी सुविस्तृत सघन छाया में जीवनपथ की थकान को ही दूर करने की शक्ति नहीं, प्रत्युत् भविष्य की दुर्गम यात्रा को सुखपूर्वक सम्पन्न करने का अक्षय तथा देवी सम्बल इनमें निहित रहता है ।
आचार्य तुलसी अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग की दिव्य मशाल हैं। उन्होंने प्रयत्नपूर्वक सूक्तियां नहीं लिखीं पर उनकी तपःपूत एवं अनुभवपूत वाणी ने स्वतः ही सूक्तियों का रूप धारण कर लिया है। इनमें उनके जीवन के अनुभवों का अमृत निहित है । वे ६० वर्षों से अनवरत प्रवचन दे रहे हैं । अनेक संदेश एवं पत्र भी उन्होंने प्रदत्त किए हैं। उन सब प्रवचनों / लेखों / संदेशों एवं काव्यों का स्वाध्याय कर पांच खंडों में लगभग २२०० पृष्ठों में सूक्तियों का संकलन तैयार गया किया है, जिसका नाम है-एक बूंद : एक सागर | आज के तीव्रगामी युग में इतने विशाल वाङमय का समग्र अध्ययन सबके लिए संभव नहीं है अतः पांच खंडों में प्रकाशित यह सूक्ति-संकलन पाठकों की इस समस्या का हल करने वाला है । इसकी हर बूंद में पाठक को अस्तित्व की पूर्णता का अनुभव होगा तथा साथ ही आचार्यवर की बहुश्रुतता का दिग्दर्शन भी ।
किसी अन्य लेखक ने ४००० से अधिक विषयों पर ज्ञानामृत की वर्षा की हो, विषय की आत्मा का स्पर्श कर उसे जनभोग्य एवं विद्वद्भोग्य बनाया हो, यह शोध का विषय है । किसी एक ही लेखक की २५ हजार सूक्तियों का संकलन भी आश्चर्य का विषय है ।
इसके प्रत्येक खंड में मूर्धन्य विद्वान् एवं समालोचक का मंतव्य भी प्रकाशित है । इसके प्रथम खंड में विजयेन्द्र स्नातक कहते हैं- "आचार्य तुलसी के सार्थक प्रयोगों को संकलित करने का समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने स्तुत्य प्रयास किया है । यह प्रयास असाधारण है, श्रमसाध्य है, मंगलमय है, स्थायी महत्त्व का है । यह ग्रंथ केवल पढ़ने और मनोरंजन का विषय न होकर मननीय, विचारणीय, वंदनीय, संग्रहणीय और दैनन्दिन जीवन के पग-पग पर हमारा पथ प्रशस्त करने वाला है । मैंने इस ग्रंथ की एक-एक बूंद में जीवन ज्योति का प्रकाश विकीर्ण होते देखा है। एक-एक बिन्दु में अमृत-बिन्दु का आह्लाद रस पाया है । जीवन - जागृति, बल और बलिदान की भावना का जैसा आलोक इस ग्रंथ की पंक्ति-पंक्ति में समाया हुआ है, वैसा मुझे अन्यत्र सुलभ
नहीं हुआ ।"
दूसरे खंड में आचार्य विद्यानंदजी तथा डा० रामप्रसाद मिश्र, तीसरे
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