________________
गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
२५९
महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी आचार्य तुलसी की लम्बी यात्राओं में सहयात्री रही हैं । उन्होंने यात्रा के संस्मरणों एवं अनुभवों को अपनी कलम की नोक से उतारने का प्रयत्न किया है। यात्रा में घटित घटनाओं एवं तथ्यों को इतिहास की भांति नीरस नहीं, अपितु कहानी की भांति सरस शैली में प्रस्तुत किया है । यात्रावृत्तों में उन्होंने भौगोलिक एवं सांस्कृतिक जानकारी तो दी ही है साथ ही आचार्य तुलसी एवं विशिष्ट व्यक्तियों के वक्तव्यों का सारांश भी जोड़ दिया है, जिससे कि यात्राग्रन्थ वैचारिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हो गए हैं । उनकी लेखनी इतनी सजीव है कि इन ग्रन्थों को पढ़ते समय पाठक स्वयं उन स्थानों की यात्रा करने लगता है ।
विद्वानों ने यात्रा - साहित्य में निम्न तत्त्वों का होना अनिवार्य माना - स्थानीयता, तथ्यपरकता, आत्मीयता, वैयक्तिकता, कल्पनाप्रियता और रोचकता । यात्रा साहित्य के ये सभी तत्त्व उनके साहित्य में प्रचुर मात्रा में मिलते हैं ।
इन यात्रा ग्रन्थों का वैशिष्ट्य आचार्य तुलसी की निम्न पंक्तियों को पढ़कर समझा जा सकता है-" यात्रा ग्रन्थों के शब्दों का संयोजन, भाषा का माधुर्य एवं भावों की सहज सजावट जन-जन के लिए मनोहारी है । .....साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा के यात्रा - साहित्य ने हमारे धर्मसंघ की साहित्यिक गतिविधियों में एक नया पृष्ठ जोड़ा है । "
इन ग्रन्थों में परिशिष्ट जोड़ने से ये ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हो गए । पदयात्रा के दौरान आए गांव, उनकी दूरी तथा उन गांवों में पड़ाव डालने की तारीख का उल्लेख भी इनमें है ।
दक्षिण के अंचल में
यह महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी द्वारा लिखित प्रथम यात्राग्रन्थ है | इस बृहत्काय ग्रन्थ में मुख्यतः आचार्य तुलसी की दक्षिण प्रदेश की यात्रा का वर्णन है । यह ग्रन्थ लगभग १००० पृष्ठों को अपने भीतर समेटे हुए हैं ।
यात्रा का क्रम राजस्थान से प्रारम्भ होकर गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा और मध्यप्रदेश से होता हुआ पुन: राजस्थान में सम्पन्न होता है । अतः लेखिका ने इन सब प्रांतों के आधार पर इस यात्रा ग्रन्थ को अनेक खण्डों में बांट दिया है। इसमें तीन महत्त्वपूर्ण परिशिष्ट भी जुड़े हुए हैं । प्रथम परिशिष्ट में सम्पूर्ण दक्षिण यात्रा के दौरान समय-समय पर आचार्य तुलसी द्वारा आशुकवित्व के रूप में रचित दोहों का संकलन है ।
दूसरे परिशिष्ट में इस यात्रा में भारत सरकार के संस्थानों से मिले सहयोगात्मक राजकीय निर्देश-पत्र हैं। तीसरे परिशिष्ट में गांवों के नाम,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org