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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
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को भरकर अपनी श्रद्धा आचार्यश्री के चरणों में अर्पित की । ४८५ पृष्ठों के इस यात्रावृत्त में पाठक को मेवाड़ी जनता के उत्साह, आस्था एवं संकल्प के साथ एक महापुरुष की तेजस्विता, पुरुषार्थ एवं प्रभावकता का सशक्त एवं जीवन्त दिग्दर्शन भी मिलेगा ।
अमरित बरसा अरावली में
आचार्यकाल के ५० वर्ष पूर्ण होने पर समाज ने आयोजना की । चूंकि आचार्य तुलसी मेवाड़ की पट्टासीन हुए थे, अतः मेवाड़ी लोगों को सहज ही यह मनाने का अवसर मिल गया । अमृत महोत्सव के इस चरणों में बांटा गया था, जो मेवाड़ के विशिष्ट क्षेत्रों में समापन उत्सव 'लाडनूं' में मनाया गया । इस यात्राग्रन्थ की उसी मेवाड़ - यात्रा का सजीव चित्र खचित हुआ है । 'जब महक उठी मरुधर माटी' का ही पूरक यात्रा ग्रन्थ कहा जा सकता है । ३८१ पृष्ठों में निबद्ध यह ग्रन्थ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक आदि अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण सामग्री पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करता
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अमृत महोत्सव की पुण्यधरा गंगापुर में महत्त्वपूर्ण आयोजन
आयोजन को चार
मनाया गया तथा
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महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने लगभग ३००० से अधिक पृष्ठों में यात्रावर्णन लिखकर एक कीर्तिमान् स्थापित किया है । उनसे पूर्व भी कुछ लेखकों ने आचार्यश्री की अमर यात्राओं के इतिहास को सुरक्षित रखने का प्रयास किया है । उनमें प्रमुख लेखक हैं-मुनि मधुकरजी, मुनि श्रीचंदजी 'कमल', मुनि सुखलालजी, मुनि सागरमलजी मुनि गुलाबचंदजी 'निर्मोही', मुनि किशनलालजी, मुनि धर्मरुचिजी, साध्वी कानकुमारीजी आदि । मुनि श्रीचंदजी 'कमल' एवं मुनि सुखलालजी द्वारा लिखित यात्राएं प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण हम नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं पर शेष लेखकों की यात्राएं जैनभारती के 'आंखों देखा: कानों सुना' तथा 'मेवाड़ पाद विहार का प्रथम सप्ताह, द्वितीय सप्ताह आदि शीर्षकों में पढ़ी जा सकती हैं, जो अभी तक प्रकाशित नहीं हो पाई हैं ।
जनपद विहार
आचार्य तुलसी की प्रथम दिल्ली यात्रा इतनी प्रभावी एवं सफल
रही कि उसने अग्रिम यात्राओं के लिए सशक्त भूमिका तैयार कर दी । साथ ही अणुव्रत आंदोलन को भी इतनी व्यापक प्रसिद्धि मिली कि उसकी गूंज विदेशों तक पहुंच गई । 'जनपद विहार, भाग-२' में आचार्य तुलसी की प्रथम दिल्ली - यात्रा का इतिहास सुरक्षित है। मात्र दो महीनों के दिल्ली - प्रवास के विविध कार्यक्रम, अनेक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों से हुई भेंट-वार्ता तथा उनके
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में आचार्य तुलसी एक दृष्टि से इसे
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