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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
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प्रवचन डायरी भाग १-३
आचार्य तुलसी एक तेजस्वी धर्मसंघ के अनुशास्ता हैं। उनके लाखों अनुयायी हैं । लगभग ६० वर्षों से वे अनवरत प्रवचन दे रहे हैं। पदयात्रा के दौरान तो दिन में चार-चार बार भी जनता को उद्बोधित किया है । यदि उन सबका संकलन किया जाता तो आज एक विशाल वाङमय तैयार हो जाता। फिर भी संकलित प्रवचन-साहित्य विशाल मात्रा में उपलब्ध है।
सन् ५३ से ५७ तक के प्रवचनों का संपादन श्री श्रीचंदजी रामपुरिया ने 'प्रवचन डायरी' के रूप में किया है। आचार्य तुलसी ने इन प्रवचनों में अन्तरात्मा की आवाज को मानवता के हित में नियोजित करने का सत्प्रयास किया है। उनके विचारों का मूल है कि व्यक्ति-सुधार ही समष्टिसुधार का मूल है अत: व्यक्ति-सुधार की विविध प्रेरणाएं इन प्रवचनों में निहित हैं।
प्रवचन डायरियों में अणुव्रत आंदोलन के विविध पक्षों का वर्णन भी बड़े प्रभावी ढंग से किया गया है। विषय का स्पष्टीकरण अनेक उद्बोधक कथाओं से हुआ है अत: ये प्रवचन अधिक सरस बन गए हैं। आचार्य तुलसी ने अपने प्रवचनों में धर्म के सार्वभौम स्वरूप को उजागर किया है। इन प्रवचनों में वर्णित धर्म किसी सम्प्रदाय की सीमा में बन्धा हुआ नहीं है। 'प्रवचन डायरी' में संकलित अनेक प्रवचन स्कूल एवं कालेजों में हुए हैं अतः इनमें शिक्षा से जुड़ी विसंगतियों तथा धर्म एवं अध्यात्म के नाम पर पनपती विकृतियों की तस्वीर को यथार्थ रूप से प्रस्तुत कर उनका स्थायी समाधान भी प्रस्तुत किया गया है।
___ इन प्रवचनों में भारतीय संस्कृति की आत्मा छिपी हुई है, इसलिए इस साहित्य की मौलिकता एवं महत्ता पर कभी प्रश्नचिह्न नहीं लग सकता। जब कभी इनको पढ़ा जायेगा, पाठक नयी प्रेरणा एवं आध्यात्मिक खुराक प्राप्त करेगा। आचार्य तुलसी ने इनमें तर्क को नहीं, अपितु श्रद्धा और आंतरिक प्रतिध्वनि को अभिव्यक्ति दी है । इसलिए ये प्रवचन सीधे अंतर्मन को छूते
प्रवचन डायरी के प्रथम भाग में सन् ५३ एवं ५४ के, द्वितीय भाग में सन् ५५,५६ के तथा तृतीय भाग में सन् ५७ के प्रवचनों का संकलन है।
द्वितीय संस्करण में प्रवचन डायरी की सामग्री 'प्रवचन-पाथेय' भाग-९ तथा ११', 'भोर भई,' 'सूरज ढल ना जाए', 'संभल सयाने !' एवं घर का रास्ता' में परिवर्धित एवं परिष्कृत रूप में प्रकाशित हुई है।
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