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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
सती प्रथा के विरोध में भी उन्होंने अपना स्वर प्रखर किया है । वे स्पष्ट कहते हैं- "समाज और धर्म के कुछ ठेकेदारों ने सती प्रथा को धार्मिक परम्परा का जामा पहना कर प्रतिष्ठित कर दिया। यह अपराध है, मातृ जाति का अपमान है और विधवा स्त्रियों के शोषण की प्रक्रिया है।"
समाज ही नहीं, धार्मिक स्थलों पर होने वाले आडम्बर और प्रदर्शन के भी वे खिलाफ हैं । धार्मिक समारोहों को भी वे रूढ़ि एवं प्रदर्शन का रूप नहीं लेने देते । उदयपुर चातुर्मास प्रवेश पर नागरिक अभिनन्दन का प्रत्युत्तर देते हुए वे कहते हैं-- “मैं नहीं चाहता कि मेरे स्वागत में बैंड बाजे बजाए जाएं, प्रवचन पंडाल को कृत्रिम फूलों से सजाया जाए। यह धर्मसभा है या महफिल ? कितना आडम्बर ! कितनी फिजूल खर्ची !! मैं यह भी नहीं चाहता कि स्थान-स्थान पर मुझे अभिनन्दन-पत्र मिलें। हार्दिक भावनाएं मौखिक रूप से भी व्यक्त की जा सकती हैं, सैंकड़ों की संख्या में उनका प्रकाशन करना धन का अपव्यय है। माना, आपमें उत्साह है पर इसका मतलब यह नहीं कि आप धर्म को आडम्बर का रूप दें।"१
बगड़ी में प्रदत्त निम्न प्रवचनांश भी उनकी महान् साधकता एवं आत्मलक्ष्यी वृत्ति की ओर इंगित करता है-..... .."प्रवचन पंडालों में अनावश्यक बिजली की जगमगाहट का क्या अर्थ है ? प्रत्येक कार्यक्रम के वीडियो कैसेट की क्या उपयोगिता है ?"२ वे कहते हैं - "धार्मिक समाज ने यदि इस सन्दर्भ में गम्भीरता से चिन्तन नहीं किया तो अनेक प्रकार की जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है।"
आचार्य तुलसी समाज की मानसिकता को बदलना चाहते हैं पर बलात् या दबाव से नहीं, अपितु हृदय-परिवर्तन से । यही कारण है कि अनेक स्थलों पर उन्हें मध्यस्थ भी रहना पड़ता है । अपनी दक्षिण यात्रा का अनुभव वे इस भाषा में प्रकट करते हैं- "मेरी दक्षिण-यात्रा में ऐसे कई प्रसंग उपस्थित हुए, जिनमें बैंड बाजों से स्वागत किया गया। हरियाली के द्वार बनाए गए । तोरणद्वार सजाए गए । पूर्ण जलकुंभ रखे गये। फलों, फूलों और फूल-मालाओं से स्वागत की रस्म अदा की गई। चावलों के साथिए बनाए गए। कन्याओं द्वारा कच्चे नारियल के जगमगाते दीपों से आरती उतारी गई। कुंकुम-केसर चरचे गए। शंखनाद के साथ वैदिक मंत्रोच्चारण हुआ। स्थान-स्थान पर मेरी अगवानी में सड़क पर घड़ों भर पानी छिड़का गया । उन लोगों को समझाने का प्रयास हुआ, पर उन्हें मना नहीं सके । वे हर मूल्य
१. जैन भारती, १० जून १९६२ । २. जीवन की सार्थक दिशाएं, पृ० ८८ । ३. आह्वान, पृ० १६ ।
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