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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण हत्या को किस प्रकार बर्दाश्त किया जा सकता है, यह प्रश्नचिह्न मेरे अंतःकरण को बेचैन बना रहा है।"१
उनका चितन है कि यदि वैज्ञानिक संवेदनशील यंत्रों के माध्यम से वायुमंडल में विकीर्ण उन बेजुबान प्राणियों की करुण चीत्कारों के प्रकम्पनों को पकड़ सके और उनका अनुभव करा सके तो कृत्रिम सौन्दर्य सम्बन्धी दृष्टि बदल सकती है।
आज कन्याभ्रूणों की हत्या का जो सिलसिला बढ़ रहा है, इसे वे नारी-शोषण का आधुनिक वैज्ञानिक रूप मानते हैं तथा उसके लिए महिला समाज को ही दोषी ठहराते हैं। नारी जाति को भारतीय संस्कृति से परिचित कराती हुई उनकी निम्न प्रेरणादायिनी पंक्तियां पठनीय ही नहीं, मननीय भी हैं--.
"भारतीय मां की ममता का एक रूप तो वह था, जब वह अपने विकलांग, विक्षिप्त और बीमार बच्चे का आखिरी सांस तक पालन करती थी। परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा की गई उसकी उपेक्षा से मां पूरी तरह से आहत हो जाती थी। वही भारतीय मां अपने अजन्मे, अबोल शिशु को अपनी सहमति से समाप्त करा देती है। क्यों ? इसलिए नहीं कि वह विकलांग है, विक्षिप्त है, बीमार है पर इसलिए कि वह एक लड़की है । क्या उसकी ममता का स्रोत सूख गया है ? कन्याभ्रूणों की बढ़ती हुई हत्या एक ओर मनुष्य को नृशंस करार दे रही है, तो दूसरी ओर स्त्रियों की संख्या में भारी कमी से मानविकी पर्यावरण में भारी असंतुलन उत्पन्न कर रही है।
वे नारी जाति के विकास हेतु उचित स्वातंत्र्य के ही पक्षधर हैं, क्योंकि सावधानी के अभाव में स्वतंत्रता स्वच्छंदता में परिणत हो जाती है तथा प्रगति का रास्ता नापने वाले पग उत्पथ में बढ़ जाते हैं। विकास के नाम पर अवांछित तत्त्व भी जीवन में प्रवेश कर जाते हैं। इस दृष्टि से वे भारतीय नारी को समय-समय पर जागरूकता का दिशाबोध देते रहते हैं।
- आचार्य तुलसी पोस्टरों तथा पत्र-पत्रिकाओं में नारी-देह की अश्लील प्रस्तुति को नारी जाति के गौरव के प्रतिकूल मानते हैं। इसमें भी वे नारी जाति को ही अधिक दोषी मानते हैं, जो धन के प्रलोभन में अपने शरीर का प्रदर्शन करती है तथा सामाजिक शिष्टता का अतिक्रमण करती है । नारी के अश्लील रूप की भर्त्सना करते हुए वे कहते हैं--
"मुझे ऐसा लगता है कि एक व्यवसायी को अपना व्यवसाय चलाने
१. विचार वीथी, पृ० १७० । २. कुहासे में उगता सूरज , पृ० ९७ ।
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