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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
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विचार समय-समय पर साप्ताहिक बुलेटिन "विज्ञप्ति' में छपते रहे हैं । इस पुस्तक में केवल धर्म और अध्यात्म की ही चर्चा नहीं है, अपितु दूरदर्शन, सोवियत महोत्सव, संयुक्तपरिवार, दक्षेससम्मेलन तथा पर्यावरण आदि अनेक सम-सामयिक विषयों पर मार्मिक एवं सटीक प्रस्तुति हुई है। ये आलेख लेखक के चौतरफी ज्ञान को तो प्रस्तुत करते ही हैं, साथ ही उनके समाधायक दृष्टिकोण को भी उजागर करने वाले हैं। इस कृति में भौतिकवाद से उत्पन्न खतरे के प्रति समाज को सावधान किया गया है। पुस्तक में समाविष्ट विषयों के बारे में स्वयं प्रश्नचिह्न उपस्थित करते हुए आचार्य तुलसी कहते हैं ..... "प्रश्न हो सकता है कि धर्माचार्यों को सामयिक प्रसंगों से क्यों जुड़ना चाहिए ? उनका तो काम होता है शाश्वत को उजागर करना।"""""पर मेरा विश्वास है कि शाश्वत के साथ पूरी तरह अनुबंधित रहने पर भी सामयिक की उपेक्षा नहीं की जा सकती। शाश्वत से वर्तमान को निकाला भी नहीं जा सकता । यदि धर्मगुरु के माध्यम से समाज को पथदर्शन न मिले, दिशाबोध न मिले, गतिशील रहने की प्रेरणा न मिले तो जागरण का संदेश कौन देगा? जनता को जगाने का दायित्व कौन निभाएगा ?" इसी उद्देश्य से इस पुस्तक में अनेक जागतिक समस्याओं के संदर्भ में चिन्तन किया गया है। यह पुस्तक भौतिकता की चकाचौंध में अपनी मौलिक संस्कृति को भूलने वाली पीढ़ी को एक नया दिशादर्शन देगी तथा असंयम और हिंसा के कुहासे में संयम और अहिंसा के तेज से युक्त नए सूरज को उगाने में भी सहयोगी बन सकेगी।
इस पुस्तक में चिंतन की मौलिकता, विवेचन की गंभीरता, विश्लेषण की सूक्ष्मता एवं शैली की प्रौढ़ता सर्वत्र दृग्गोचर है । इसका प्रत्येक आलेख संक्षिप्त, सारगर्भित और अन्तःकरण को छूने वाला है। समाज एवं देश के प्रत्येक क्षेत्र के अन्धकार की चर्चा कर आचार्यश्री ने भारतीय संस्कृति के अनुरूप अध्यात्म की लौ प्रज्वलित करने का प्रशस्य प्रयत्न किया है। अतः इस पुस्तक के शीर्षक को भी सार्थकता मिली है।
क्या धर्म बुद्धिगम्य है ? साहित्य ऐसा होना चाहिए, जिसके आकलन से दूरदर्शिता बढ़े, बुद्धि को तीव्रता प्राप्त हो, हृदय में एक प्रकार की संजीवनी शक्ति की धारा बहने लगे, मनोवेग परिष्कृत हो जाएं तथा आत्मगौरव की उद्भावना पराकाष्ठा तक पहुंच जाए---महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा दी गई सत्साहित्य की कसौटी पर आचार्य तुलसी की कृति 'क्या धर्म बुद्धिगम्य है ?' को परखा जा सकता
धर्म का सम्बन्ध प्रायः परलोक से जोड़ दिया जाता है। जो केवल
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