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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
श्रद्धालु व्यक्ति के लिए गम्य है । एक तार्किक और बौद्धिक व्यक्ति धर्म के इस रूप को स्वीकार करने में हिचकता है । आचार्य तुलसी ने अणुव्रत के माध्यम से धर्म को व्यवहार के साथ जोड़कर उसे बुद्धिगम्य बनाने का प्रयत्न किया है । पुस्तक के आत्म-वक्तव्य में वे इस बात की पुरजोर पुष्टि करते हैं......"जिस धर्म से इस जन्म में मोक्ष का अनुभव नहीं होगा, उस धर्म से भविष्य में मोक्ष-प्राप्ति की कल्पना का क्या आधार हो सकता है ?"
पुस्तक में ४१ आलेखों के माध्यम से धर्म का क्रान्तिकारी स्वरूप, अणुव्रत आंदोलन, जैन-सिद्धान्त तथा लोकतंत्र से सम्बन्धित अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है।
सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें धर्म, संस्कृति एवं परम्परा के विषय में एक नया दृष्टिकोण एवं नई सोच से विचार किया गया है तथा धर्म का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत कर नयी मान्यताओं को भी जन्म दिया गया है । इस पुस्तक के माध्यम से आचार्य तुलसी ने सभी धर्माचार्यों को पुनः एक बार धर्म के बारे में सोचने के लिए बाध्य कर दिया है कि धर्म का शुद्ध स्वरूप क्या है ? लेखक का स्पष्ट मन्तव्य है कि चरित्र की प्रतिष्ठा ही धर्म का सक्रिय स्वरूप है।
सम्प्रदाय को ही धर्म मानकर संघर्ष करने वालों को इसमें नया प्रतिबोध दिया गया है। यह पुस्तक निश्चय ही धर्मप्रेमी लोगों को धर्म के बौद्धिक और वैज्ञानिक स्वरूप का बोध कराने में सफल है। साथ ही धार्मिक जगत् के समक्ष एक ऐसा स्वप्न प्रस्तुत करती है, जिसको साकार करने में मानव-समुदाय पुरुषार्थ और लगन से जुट जाए।
. खोए सो पाए वर्तमान युग की व्यस्त दिनचर्या में आकार छोटा और निष्कर्ष बड़ा, ऐसे साहित्य की नितान्त आवश्यकता है। आचार्य तुलसी ने युगीन मानसिकता को समझा और 'खोए मो पाए' पुस्तक द्वारा इस अपेक्षा की पूर्ति की । इस पुस्तक में नैतिकता एवं जीवन-मूल्यों की मार्मिक अभिव्यक्ति देने के साथ ही साधनापरक अनुभवों को भी नई भाषा दी गई है।
सहज ग्राह्य शैली में लिखी गयी इस पुस्तक के ८० लेखों में नैतिकता जीवन्त होकर मुखर हुई है, ऐसा प्रतीत होता है। साथ ही भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक चेतना को एक विशेष अभिव्यक्ति मिली है ।
आचार्य तुलसी एक महान साधक हैं। उन्होंने अपने जीवन में साधना के अनेक प्रयोग किए हैं। हिसार चातुर्मास १९६३ में उन्होंने एकांतवास के साथ साधना के कुछ नए प्रयोग भी किए। उस अनुष्ठान के दौरान हुए अनेक अनुभवों को उन्होंने अपनी डायरी में लिखा । उसी डायरी के कुछ
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