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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण ने उसे युगबोध के साथ इस प्रकार प्रस्तुत किया है कि वह दिग्भ्रांत मानस के लिए पुष्ट आलम्बन बन सकता है। 'अणुव्रत के संदर्भ में' पुस्तक अणुव्रत के विविध पक्षों पर प्रश्नोत्तर शैली में प्रकाश डालती है। इसमें राष्ट्र, धर्म, नैतिकता और विज्ञान सम्बन्धी अनेक जिज्ञासाओं का अणुव्रत के परिप्रेक्ष्य में उत्तर दिया गया है तथा प्राचीन एवं अर्वाचीन, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय अनेक समस्याओं पर अणुव्रत-दर्शन का समाधान प्रस्तुत है । अणुव्रत दर्शन को जन-भोग्य बनाने का यह सार्थक प्रयत्न है । आज नैतिक मूल्यों में जो गिरावट आ रही है, उसे रोकने एवं जीवन-मूल्यों के प्रति आस्था जगाने में इस प्रकार का साहित्य अपनी अहंभूमिका रखता है।
यह पुस्तक अपने अगले संस्करण में कुछ संशोधन एवं परिवर्धन के साथ 'अणुव्रत : गति प्रगति' शीर्षक से प्रकाशित है।
अणुव्रत : गति-प्रगति किसी भी वैचारिक क्रांति को व्यापक बनाने में साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर अणुव्रत से सम्बन्धित आचार्य तुलसी की अनेक पुस्तकें प्रकाश में आई हैं । 'अणुव्रत : गति-प्रगति' में 'अणुव्रत' पाक्षिक पत्र में स्थायी स्तम्भ "अणुव्रत के संदर्भ में" आयी वार्ताएं तथा अन्य भी कुछ महत्त्वपूर्ण लेखों का संकलन है।
इस पुस्तक में नैतिकता के विविध रूपों की बहुत सुन्दर व्याख्या की गई है। कुछ लेखों में अणुव्रत आंदोलन का इतिहास एवं आचार-संहिता तथा कुछ वार्ताओं में सामाजिक, राष्ट्रीय, धार्मिक क्षेत्र में उत्पन्न समस्याओं का अणुव्रत द्वारा सटीक समाधान की चर्चा की गई है। 'अणुव्रत ग्राम' की सुन्दर परिकल्पना भी इसमें सन्निहित है। इसके अतिरिक्त प्रश्नोत्तरों के माध्यम से आंदोलन के अनेक वैचारिक एवं व्यावहारिक पक्ष भी आधुनिक शैली में इस पुस्तक में गुम्फित हैं। 'समाज व्यवस्था और अहिंसा' आदि कुछ वार्ताएं अहिंसा विषयक नवीन एवं मौलिक अवधारणाओं की अवगति देती हैं।
इसमें कुल ६१ लेख हैं, जिनमें १९ प्रवचन तथा ४२ वार्ताएं हैं। इस पुस्तक के प्रश्न जितने सटीक, आधुनिक और मौलिक हैं, उत्तर भी उतने ही सजीव, क्रांतिकारी और मौलिकता लिए हुए हैं। पूरी पुस्तक का मुख्य विषय अणुव्रत और नैतिकता है । अणुव्रत प्रेमी एवं अध्यात्मजिज्ञासुओं के लिए यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुस्तक है ।
अणुव्रती क्यों बनें ? आज के अनैतिक एवं भ्रष्ट वातावरण में अणुव्रत संजीवनी बूटी है। अणुव्रत के माध्यम से आचार्य तुलसी ने हर धर्म के व्यक्तियों को सही मानव बनने की प्रेरणा दी है तथा जीर्ण-शीर्ण मानवता का पुनरुद्धार करने का प्रयत्न
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