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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
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से होती है - प्रथम उसमें सामयिक, नश्वर, देशविशेष और कालविशेष से संबंध रखने वाली बातों का उल्लेख हो तथा दूसरी शाश्वत, अविनश्वर सब कालों तथा सब देशों के लिए समान रूप से उपयोगी और व्यवहार्य हो ।' आचार्य तुलसी ने शाश्वत एवं सामयिक का समायोजन इतनी कुशलता से किया है कि उसकी दूसरी मिशाल मिलना मुश्किल है ।
बेकन की प्रसिद्ध उक्ति है- "कुछ पुस्तकें चखने की होती हैं, कुछ निगलने की तथा कुछ चबाने एवं पचा जाने की ।" आचार्य तुलसी की प्रत्येक पुस्तक चखने योग्य, निगलने योग्य तथा चबाकर पचाने योग्य है" - ऐसा कथन अत्युक्तिपूर्ण नहीं होगा ।
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यहां हम उनकी गद्य साहित्य की कृतियों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे पाठक उनके साहित्य का विहंगावलोकन और रसास्वादन कर सके ।
पुस्तक - परिचय में हमने सलक्ष्य सभी पुस्तकों का परिचय दिया है चाहे वे पुनर्मुद्रण में नाम परिवर्तन के साथ प्रकाशित हुई हों । यदि पुनर्मुद्रण में पुस्तक का नाम परिवर्तित हुआ है तो उसका हमने उल्लेख कर दिया है, जिससे पाठकों को भ्रांति न हो । किन्तु अणुव्रत की आचार संहिता से सम्बन्धित अनेक पुस्तकें अनेक नामों से प्रकाशित हुई हैं। जैसे- 'अणुव्रत आचार-संहिता', 'अणुव्रत : नैतिक विकास की आचार-संहिता', 'अणुव्रत आंदोलन', ‘अणुव्रत’, ‘अणुव्रत आंदोलन : एक दृष्टि' आदि पर हमने केवल अणुव्रत आंदोलन का ही परिचय दिया है ।
पुस्तकों के साथ कुछ विशेष संदेशों की पुस्तिकाओं का परिचय भी हमने इसमें समाविष्ट कर दिया है । 'अशांत विश्व को शांति का संदेश ' आदि कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण संदेश हैं, जिनका अंग्रेजी एवं संस्कृत में भी रूपान्तरण मिलता है ।
अणुव्रत आंदोलन
अणुव्रत एक ऐसी मानवीय आचार संहिता है, जिसका किसी उपासना या धर्म विशेष के साथ संबंध न होकर सत्य, अहिंसा आदि मूल्यों से है । " अणुबम एक क्षण में करोड़ों का नुकसान कर सकता है तो अणुव्रत करोड़ों का उद्धार कर सकता है" -- आचार्य तुलसी की यह उक्ति अणुव्रत आंदोलन के महत्त्व को उजागर कर रही है । इस आंदोलन ने भारत की नैतिक चेतना को प्रभावित कर आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय मूल्यों की सुरक्षा करने का प्रयत्न किया है ।
'अणुव्रत आंदोलन' पुस्तिका में अणुव्रत की आचार संहिता एवं उसके मौलिक आधार की चर्चा की गयी है । सामान्य रूप से अणुव्रत
१. गीता प्रबन्ध, भाग. १ पृ. ३ ।
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